श्री बांकेबिहारी के तोषखाने का रहस्य अब केवल इन्वेंटरी के माध्यम से ही सामने आ सकेगा। उस समय की इन्वेंटरी का पता लगाने के लिए कमेटी स्तर पर प्रयास शुरू कर दिए गए हैं। 29 अक्टूबर को होने वाली बैठक में अध्यक्ष पुरानी इन्वेंटरी को लेकर सेवायत सदस्य और मंदिर के मैनेजर से जवाब तलब करेंगे।
UP News: मथुरा का प्रसिद्ध श्री बांकेबिहारी मंदिर अपने अद्भुत तोषखाने और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। वर्षों से इस मंदिर के खजाने को लेकर सवाल उठते रहे हैं और अब इस रहस्य को उजागर करने के लिए बड़े फैसले लिए जा सकते हैं। हाईपावर्ड कमेटी की आगामी बैठक में 1971 में तैयार की गई पुरानी इन्वेंटरी पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
1971 में मंदिर के तोषखाने को खोला गया था और उस समय की इन्वेंटरी को ही अब मंदिर के खजाने से जुड़े सभी रहस्यों का समाधान माना जा रहा है। इस पुरानी इन्वेंटरी की तलाश के लिए कमेटी स्तर पर कदम उठाए जा रहे हैं। 29 अक्टूबर को होने वाली बैठक में अध्यक्ष मंदिर के मैनेजर और सेवायत सदस्यों से स्पष्टीकरण मांग सकते हैं।
1971 का तोषखाना और उसका रहस्य

हाईपावर्ड कमेटी के आदेश पर प्रशासन ने धनतेरस के दो दिन पहले सिविल जज जूनियर डिवीजन के नेतृत्व में तोषखाने में विस्तृत खोज अभियान चलाया। इस अभियान में सोने-चांदी की छड़ियां, रत्न, चांदी के छत्र और कुछ पुराने बर्तन जैसे कीमती सामान ही प्राप्त हुए। हालांकि, सेवायतों की राय अलग रही, और उन्होंने खजाने की स्थिति पर सवाल उठाए।
सेवायतों का कहना है कि “ठाकुर जी का वास्तविक खजाना आखिर कहां गया?” इस सवाल के जवाब के लिए जांच की मांग भी की गई। इतिहासकार प्रहलाद बल्लभ गोस्वामी और सेवायत दिनेश गोस्वामी के अनुसार, जब खजाना आखिरी बार सूचीबद्ध किया गया था, तो कुछ सामान को श्री बांकेबिहारी जी महाराज के नाम से स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, मथुरा शाखा में बक्सों में सुरक्षित रखा गया था।
इन्वेंटरी की महत्ता और प्रबंधन इतिहास
1971 में मुंसिफ कोर्ट द्वारा पूरी इन्वेंटरी तैयार की गई थी। इसकी प्रतिलिपि उस समय की मंदिर प्रबंध समिति को सौंपी गई थी। समिति के सदस्यों में प्यारेलाल गोयल (अध्यक्ष), कृष्णगोपाल गोस्वामी, दीनानाथ गोस्वामी, केवलकृष्ण गोस्वामी, रामशंकर गोस्वामी और शांतिचरण पिंडारा शामिल थे। इसके अलावा तत्कालीन प्रशासक मुंसिफ मथुरा और प्रबंधक कुंदनलाल चतुर्वेदी को भी इन्वेंटरी की जानकारी थी।
इन्वेंटरी की प्रतिलिपि एक सुरक्षित बक्से में रखी गई थी, ताकि खजाने से जुड़े सभी दस्तावेज सुरक्षित रहें। अब करीब 50 साल बाद, यह दस्तावेज मंदिर के खजाने से जुड़े रहस्यों को उजागर करने की कुंजी साबित हो सकता है। 29 अक्टूबर को होने वाली हाईपावर्ड कमेटी की बैठक में इन्वेंटरी के मुद्दे पर मंदिर के मैनेजर से स्पष्टीकरण मांगा जाएगा। बैठक में यह तय किया जाएगा कि खजाने के बाकी हिस्सों और उनसे जुड़ी संपत्तियों का क्या किया जाए।













