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भारत बंद 2025: 9 जुलाई की हड़ताल में गूंज उठी मज़दूरों की आवाज़, जानिए क्या है वजह 

भारत बंद 2025: 9 जुलाई की हड़ताल में गूंज उठी मज़दूरों की आवाज़, जानिए क्या है वजह 

भारत बंद 2025 में 25 करोड़ से अधिक श्रमिकों ने सरकार की श्रम नीतियों के विरोध में हड़ताल की, जिससे बैंक, बिजली, बीमा और परिवहन सेवाएं प्रभावित हुईं।

Bharat Bandh 2025: आज देश भर में 'भारत बंद' की गूंज सुनाई दी, जब करोड़ों श्रमिक, किसान और ग्रामीण मजदूर एक साथ एकजुट होकर सड़कों पर उतर आए। केंद्र सरकार की श्रम और कृषि नीतियों के विरोध में आयोजित यह हड़ताल, हालिया वर्षों की सबसे व्यापक औद्योगिक कार्रवाई में से एक मानी जा रही है।' इस आंदोलन की अगुवाई देश की 10 प्रमुख केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने की, जिसमें बैंक, डाक, बीमा, कोयला खनन, बिजली, निर्माण और सार्वजनिक परिवहन जैसे प्रमुख क्षेत्रों के कामगारों ने भाग लिया। माना जा रहा है कि इस ऐतिहासिक बंद में करीब 25 करोड़ कामगारों की भागीदारी रही।

बैंकिंग सेवाएं बाधित, नकदी निकासी पर संकट

भारत बंद 2025 के तहत बैंक कर्मचारियों ने हड़ताल में हिस्सा लिया, जिससे कई राज्यों में बैंकिंग सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हुईं। बंगाल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और झारखंड जैसे इलाकों में बैंक शाखाएं बंद रहीं और एटीएम में नकदी की भारी कमी देखी गई। इससे आम लोगों को पैसे निकालने, जमा करने और अन्य बैंकिंग कार्यों में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।

बिजली सेवाओं पर बड़ा असर, कई जगहों पर ब्लैकआउट की स्थिति

भारत बंद 2025 के दौरान बिजली विभाग के करीब 27 लाख कर्मचारियों के हड़ताल में शामिल होने से कई जगहों पर बिजली की सप्लाई ठप हो गई। खासतौर पर ग्रामीण और औद्योगिक क्षेत्रों में इसका गंभीर असर पड़ा। दिल्ली, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों के कई इलाकों में 4 से 6 घंटे तक बिजली गुल रही, जिससे आम लोगों और व्यापारिक कामों में काफी दिक्कतें आईं।

रेलवे सेवाएं चालू लेकिन देरी और अव्यवस्था

भारत बंद 2025 के दौरान रेलवे सेवाएं पूरी तरह बंद नहीं हुईं, लेकिन हड़ताल की वजह से कई ट्रेनों की आवाजाही में देरी देखने को मिली। कई जगहों पर मजदूरों ने पटरियों पर धरना दिया और विरोध प्रदर्शन किए, जिससे ट्रेनों को रोका गया। खासकर हावड़ा, मुंबई और भुवनेश्वर जैसे बड़े रेलवे स्टेशनों पर यात्री काफी परेशान नजर आए और उन्हें अपनी यात्रा में असुविधा का सामना करना पड़ा।

बीमा और डाक विभाग में भी कामकाज ठप

एलआईसी और अन्य बीमा कंपनियों के कर्मचारियों ने हड़ताल में भाग लिया और सरकार की निजीकरण नीति का विरोध किया। इसके चलते बीमा दावे और अन्य सेवाएं प्रभावित रहीं। साथ ही डाक विभाग के कर्मचारियों के शामिल होने से चिट्ठियों और पार्सल की डिलीवरी में देरी हुई। कई शहरों में लोगों को जरूरी दस्तावेज और सामान समय पर नहीं मिल सके, जिससे आम जनता को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा।

किसानों और ग्रामीण मजदूरों का भी समर्थन

सिर्फ मजदूरों ही नहीं, बल्कि किसानों और ग्रामीण मजदूरों का भी पूरा समर्थन मिला। ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) की महासचिव अमरजीत कौर ने बताया कि कई किसान संगठनों ने इस हड़ताल में हिस्सा लिया। पंजाब, हरियाणा, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में किसान सड़कों पर उतर आए और सरकार की नीतियों के खिलाफ नारेबाजी कर अपनी एकता और नाराज़गी जाहिर की। इससे आंदोलन को और ताकत मिली।

स्कूल-कॉलेज खुले रहे, पर उपस्थिति रही कम

सरकार ने स्कूल और कॉलेजों के लिए कोई छुट्टी घोषित नहीं की, इसलिए वे खुले रहे। लेकिन कई इलाकों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट के प्रभावित होने के कारण छात्र और शिक्षक समय पर नहीं पहुंच सके। खासकर छोटे शहरों और गांवों में उपस्थिति बहुत कम देखी गई, जिससे कक्षाओं का संचालन ठीक से नहीं हो पाया और पढ़ाई पर असर पड़ा।

मनरेगा में सुधार और रोजगार की मांग

मजदूर संगठनों ने मनरेगा योजना में सुधार की जोरदार मांग उठाई। उन्होंने कहा कि काम के दिनों की संख्या बढ़ाई जाए और मजदूरी दर में सुधार किया जाए, क्योंकि ग्रामीण इलाकों में बेरोज़गारी बहुत ज्यादा बढ़ गई है। यूनियनों का कहना है कि सरकार की योजनाएं केवल कागज़ों तक सीमित हैं और ज़मीनी स्तर पर लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा, जिससे गरीब परिवारों की हालत और खराब होती जा रही है।

सरकार के चार नए श्रम कानून बने विवाद का केंद्र

भारत बंद 2025 के पीछे एक बड़ी वजह सरकार द्वारा लागू किए गए चार नए श्रम कानून हैं, जिन्हें ट्रेड यूनियनें मजदूरों के खिलाफ मानती हैं। उनका कहना है कि इन कानूनों से काम के घंटे बढ़ा दिए गए हैं, जिससे मजदूरों पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है। साथ ही उन्हें अब सामूहिक रूप से अपने हक के लिए आवाज उठाने का अधिकार भी नहीं मिल रहा। यूनियनों का यह भी कहना है कि इन कानूनों ने नियोक्ताओं की जवाबदेही कम कर दी है, जिससे मजदूरों के शोषण का खतरा बढ़ गया है।

'व्यापार की आसानी' के नाम पर मजदूरों के हक छीने जा रहे हैं

ट्रेड यूनियनों ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह 'Ease of Doing Business' यानी व्यापार को आसान बनाने के नाम पर सिर्फ बड़े उद्योगपतियों का फायदा देख रही है। उनका कहना है कि इन नीतियों से मजदूरों और किसानों के अधिकारों की अनदेखी हो रही है। नए नियमों ने श्रमिकों को कमजोर बना दिया है और उन्हें सुरक्षा या न्याय नहीं मिल रहा। यह हड़ताल इसी असमानता और शोषण के खिलाफ एक जन-आंदोलन बनकर उभरी है, जिसमें लाखों लोगों ने अपनी आवाज़ उठाई।

सरकार से दो टूक – मांगें मानो या संघर्ष होगा तेज

ट्रेड यूनियनों ने साफ तौर पर सरकार को चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगों को जल्द नहीं माना गया, तो यह आंदोलन और भी बड़ा रूप ले सकता है। यूनियनों का कहना है कि वे अब संसद सत्र के दौरान देशभर में बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन की योजना बना रहे हैं। उनका उद्देश्य है कि सरकार मजदूरों और किसानों की आवाज को नजरअंदाज न करे, वरना संघर्ष और तेज किया जाएगा। यह हड़ताल एक चेतावनी है, न कि अंत।

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