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'भारत महाशक्ति नहीं बनेगा, सेवा और वैश्विक कल्याण की राह पर चलेगा': मोहन भागवत

'भारत महाशक्ति नहीं बनेगा, सेवा और वैश्विक कल्याण की राह पर चलेगा': मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को महाराष्ट्र के नागपुर में आर्ट ऑफ लिविंग द्वारा आयोजित 'सोमनाथ ज्योतिर्लिंग महा रुद्र पूजा' कार्यक्रम में हिस्सा लिया।

नागपुर: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को महाराष्ट्र के नागपुर में ‘सोमनाथ ज्योतिर्लिंग महा रुद्र पूजा’ कार्यक्रम में भाग लेते हुए कहा कि भारत आज की महाशक्तियों जैसा नहीं बनेगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत का असली स्वरूप सेवा, सहयोग और वैश्विक कल्याण की भावना में निहित है। 

भागवत ने कहा कि दुनिया में विज्ञान, तकनीक और संपत्ति में प्रगति होने के बावजूद असंतोष और संघर्ष बढ़ रहे हैं, ऐसे में भारत को दुनिया को एक नया मार्ग दिखाना होगा।

भारत का चरित्र सेवा में निहित

मोहन भागवत ने अपने संबोधन में कहा कि भारत का चरित्र शक्ति प्रदर्शन या प्रभुत्व में नहीं, बल्कि सेवा और करुणा में है। उन्होंने कहा, भारत का चरित्र सेवाभाव में निहित है। यही भावना आज की महाशक्तियों की तरह बनकर विश्व पर प्रभाव जमाने की जगह तटस्थता से सेवा करने में हमारी पहचान बनेगी।उन्होंने बताया कि भारत का उद्देश्य किसी पर शासन करना नहीं है, बल्कि मानवता की भलाई के लिए मार्गदर्शन देना है। 

भागवत ने यह भी कहा कि जब मनुष्य के पास विज्ञान, तकनीक और संसाधनों की कोई कमी नहीं है, तब भी दुनिया संघर्षों और असंतोष में उलझी हुई है। इसका समाधान शक्ति से नहीं, बल्कि करुणा, संतुलन और सहयोग से संभव है।

भारत दुनिया को नया रास्ता दिखाएगा

RSS प्रमुख ने कहा, हम विश्व को कोई उपकार नहीं कर रहे, हम तो उसी विश्व का हिस्सा हैं। हमें पूरे विश्व का कल्याण करना है। दुनिया भारत को ‘गुरु’ कहेगी, लेकिन हम उन्हें ‘मित्र’ कहेंगे। हमारा उद्देश्य सत्ता नहीं, सेवा है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि भारत महाशक्ति बनने की दौड़ में शामिल नहीं होगा। इसके बजाय, वह विश्व को एक संतुलित, व्यवस्थित और तटस्थ दृष्टिकोण देगा। भागवत ने कहा कि आज की वैश्विक राजनीति शक्ति प्रदर्शन, आर्थिक प्रभुत्व और सैन्य सामर्थ्य पर केंद्रित है, लेकिन भारत का मार्ग भिन्न होगा।

भागवत ने कहा कि आधुनिक विज्ञान और तकनीक ने मनुष्य को अनेक सुख-सुविधाएँ दी हैं, लेकिन इसके बावजूद विश्व असंतोष, हिंसा और युद्धों से जूझ रहा है। लोगों के पास सब कुछ है, फिर भी वे संतुष्ट नहीं हैं। इसका कारण यह है कि बाहरी उपलब्धियाँ आंतरिक शांति नहीं ला सकतीं। दुनिया लड़खड़ा रही है और उसे दिशा देने वाला कोई नहीं है। भारत को यह जिम्मेदारी निभानी होगी।

उन्होंने बताया कि भारत की भूमिका मार्गदर्शक की होगी, जहाँ शक्ति का प्रदर्शन नहीं बल्कि सेवा और सहयोग से विश्व में स्थिरता और समृद्धि लाई जा सकती है।

तटस्थता और सहयोग का संदेश

मोहन भागवत ने भारत की विदेश नीति का आधार भी सेवा और तटस्थता बताया। हम किसी से प्रतिद्वंद्विता नहीं करेंगे, न ही सत्ता की होड़ में शामिल होंगे। हम विश्व के साथ मिलकर आगे बढ़ेंगे और सभी देशों को समान दृष्टि से देखेंगे। भारत की नीति ‘विश्व बंधुत्व’ पर आधारित होगी।” उन्होंने कहा कि यह नीति न केवल मानवता की सेवा का मार्ग है बल्कि विश्व में शांति, स्थिरता और समरसता स्थापित करने का भी माध्यम बनेगी।

भागवत ने अपने भाषण में यह भी कहा कि भारत की संस्कृति केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि उसका वास्तविक उद्देश्य मानवता की सेवा है। आध्यात्मिकता का अर्थ केवल पूजा-पाठ नहीं है। यह मानवता के दुःख को समझने और उन्हें दूर करने की प्रक्रिया है। भारत की आत्मा सेवा में बसती है और यही उसे विश्व में विशिष्ट बनाती है।

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