विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है और ऐसे में राजद, कांग्रेस, भाकपा-माले जैसे घटक दलों वाला महागठबंधन 20 साल से चले आ रहे राजनीतिक सूखे को खत्म करने के लिए अपनी रणनीति में बदलाव कर रहा है।
पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में राजनीतिक रणभूमि गरम होती जा रही है। महागठबंधन (RJD, कांग्रेस, भाकपा-माले) आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटा है और सीटों के बंटवारे को लेकर मंथन जारी है। इस बार राजद ने पालीगंज, घोसी और आरा जैसी सीटों पर अपनी दावेदारी स्पष्ट कर दी है, जिससे भाकपा-माले में असंतोष फैल गया है। वहीं, एनडीए (भाजपा-जदयू) भी महागठबंधन के खिलाफ मजबूत उम्मीदवार उतारने की रणनीति बना रहा है।
महागठबंधन में सीट बंटवारे का मंथन
महागठबंधन के नेताओं के अनुसार, इस बार गठबंधन की प्राथमिकता 2020 जैसी विचारधारात्मक संतुलन नहीं बल्कि जीतने योग्य सीटों पर ध्यान केंद्रित करना है। महागठबंधन 20 साल से लंबित सूखे को खत्म करने और सत्ता हासिल करने के लिए अपनी रणनीति बदल रहा है। पिछले चुनावों में घटक दलों को कई ऐसी सीटें दी गई थीं, जहां उनकी जीत पक्की थी। लेकिन इस बार राजद ने स्पष्ट किया है कि वह सिर्फ जीतने वाली और अपेक्षाकृत कमजोर सीटों का समान रूप से बंटवारा करेगा।
ताजा बैठक में RJD अध्यक्ष तेजस्वी यादव और लालू यादव ने सीट बंटवारे पर संकेत दिए। रिपोर्ट्स के मुताबिक, राजद ने पालीगंज और घोसी, जहां भाकपा-माले के विधायक हैं, और आरा, जहां वे दूसरे नंबर पर रहे थे, पर वीटो लगाया है।
माले में असंतोष और राजद की रणनीति
राजद के इस फैसले से भाकपा-माले के नेताओं में नाराजगी देखी जा रही है। माले का कहना है कि जो सीटें मेहनत और संघर्ष के दम पर जीती गई हैं, उन्हें राजनीतिक समझौते के तहत छोड़ना महागठबंधन के नुकसान का कारण बनेगा। भाकपा-माले के नेताओं ने स्पष्ट किया है कि घोसी के अलावा कोई अन्य सीट छोड़ने पर वे राजी नहीं होंगे।
राजद की रणनीति स्पष्ट है: जीतने योग्य सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारकर सत्ता की बागडोर अपने हाथ में लेना। वहीं, घटक दलों के कार्यकर्ता भी इस रणनीति पर नजर बनाए हुए हैं, क्योंकि जमीनी स्तर पर मनोबल और समर्थन को प्रभावित करने वाली सीटें राजनीति की दिशा तय करती हैं।
सीट बंटवारे में सहयोगी दलों के समीकरण
राजद के नेताओं का मानना है कि अब बिहार की राजनीति में विनिंग सीट का निर्धारण सिर्फ जातीय समीकरण से नहीं बल्कि गठबंधन की सामंजस्य क्षमता और जनाधार से तय होता है। पालीगंज, घोसी और आरा की पिछली जीत और दूसरे नंबर पर रहने का कारण यही सामंजस्य था। इस बार राजद का पूरा ध्यान महागठबंधन की जीत सुनिश्चित करने वाली सीटों पर है। पार्टी यह सुनिश्चित करना चाहती है कि प्रत्येक घटक दल अपनी ताकत और संसाधनों का संतुलित उपयोग करे।
एनडीए की भी तैयारी जोरों पर है। भाजपा और जदयू उन क्षेत्रों में अपने मजबूत उम्मीदवारों को टिकट देने पर विचार कर रहे हैं, जहां वर्तमान विधायकों के खिलाफ असंतोष है। एनडीए यह रणनीति बना रहा है कि महागठबंधन के नए चेहरों के सामने अपने मजबूत उम्मीदवार खड़ा कर चुनाव में बढ़त हासिल की जाए।
राजद और भाकपा-माले के बीच चल रही बैठकों का असर एनडीए के रणनीतिक निर्णयों पर भी पड़ सकता है। विश्लेषकों का कहना है कि सीट बंटवारे और उम्मीदवार चयन में हर दल की छोटी से छोटी गलती चुनावी नतीजों पर बड़ा प्रभाव डाल सकती है।