बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन (SIR) को लेकर सियासत गर्म है। कांग्रेस और ओवैसी ने इस प्रक्रिया को जल्दबाजी बताया। उन्होंने कहा कि इससे दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्गों को नुकसान पहुंचेगा। सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित है।
Bihar SIR Controversy: बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी Special Intensive Revision (SIR) को लेकर राजनीतिक बहस छिड़ गई है। कांग्रेस और AIMIM दोनों ने इस प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं और इसे लेकर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग की मंशा पर संदेह जताया है। विपक्ष का आरोप है कि यह कवायद सामाजिक न्याय से जुड़े समुदायों को प्रभावित कर सकती है।
कांग्रेस का आरोप: दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग होंगे प्रभावित
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि बिहार में SIR को लेकर जो प्रक्रिया अपनाई जा रही है, उसका सीधा असर दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं और पिछड़े वर्गों पर पड़ेगा। उन्होंने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि ये काम लोकसभा चुनाव से पहले क्यों नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनाव से पहले यह कवायद शुरू करना राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित लगता है।
सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित, फिर भी जल्दबाजी क्यों?
जयराम रमेश ने बताया कि यह मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है और 28 जुलाई को दूसरी सुनवाई होनी है। इसके बावजूद चुनाव आयोग ने इसे राज्य भर में लागू करने की बात कही है। उन्होंने कहा कि नागरिकता साबित करना चुनाव आयोग का काम नहीं है और यह भूमिका आयोग की परंपरागत जिम्मेदारियों से बाहर है।
सीमांचल को लेकर ओवैसी की चिंता
AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी SIR प्रक्रिया पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि सीमांचल क्षेत्र के 60-70 प्रतिशत युवा आजीविका के लिए दूसरे राज्यों में रहते हैं। ऐसे में यदि आधार पर पहचान की प्रक्रिया जल्दबाजी में की जाएगी, तो सैकड़ों लोगों के नाम मतदाता सूची से हट सकते हैं। उन्होंने चुनाव आयोग से मांग की कि वह BLO यानी बूथ स्तर के अधिकारियों के संपर्क नंबर सार्वजनिक करे ताकि स्थानीय लोग उनसे जानकारी ले सकें।
ओवैसी का तंज: नेपाल-बांग्लादेश से लोग कहां मिले?
ओवैसी ने चुनौती देते हुए कहा कि चुनाव आयोग को यह बताना चाहिए कि BLO को नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार के लोग कहां मिले। उन्होंने कहा कि आधार कार्ड, EPIC और राशन कार्ड को पहचान के दस्तावेज के रूप में स्वीकार करना चाहिए, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया है।
AIMIM का दावा: हमने सबसे पहले उठाया मुद्दा
AIMIM नेता ओवैसी ने कहा कि उनकी पार्टी ने सबसे पहले इस बात को उठाया था कि SIR प्रक्रिया एनआरसी को पिछले दरवाजे से लागू करने जैसा है। उन्होंने कहा कि उनके बिहार अध्यक्ष अख्तरुल ईमान इस मुद्दे को लेकर याचिका में शामिल हैं और उन्होंने चुनाव आयोग से स्पष्ट दिशा-निर्देश की मांग की है।
आयोग को अधिकार किसने दिया?
ओवैसी ने यह भी सवाल उठाया कि भारत के चुनाव आयोग को यह अधिकार किसने दिया कि वह तय करे कि कोई व्यक्ति नागरिक है या नहीं। उन्होंने कहा कि वोटर लिस्ट में नाम दर्ज करने का मतलब नागरिकता का प्रमाण नहीं होता, लेकिन जिस तरह SIR प्रक्रिया को लागू किया जा रहा है, उससे यही संकेत मिल रहा है।