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बिना दस्तावेज़ और सहमति के फॉर्म सबमिट, बिहार की SIR प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट में आरोप

बिना दस्तावेज़ और सहमति के फॉर्म सबमिट, बिहार की SIR प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट में आरोप

बिहार में वोटर लिस्ट संशोधन को लेकर बड़ा विवाद सामने आया है। मृतकों के नाम पर फॉर्म भरने, बिना सहमति ऑनलाइन आवेदन और बीएलओ की लापरवाही के आरोप सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचे हैं।

Bihar SIR: बिहार में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) की प्रक्रिया को लेकर सुप्रीम कोर्ट में बड़ा मामला सामने आया है। चुनाव आयोग द्वारा कराए गए इस वोटर लिस्ट रिवीजन पर सवाल खड़े हो गए हैं। याचिकाकर्ताओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट में आरोप लगाया गया है कि इस प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां हुई हैं। सबसे गंभीर आरोप यह है कि मृतकों के नाम पर भी फॉर्म भरे गए और मतदाताओं की जानकारी या सहमति के बिना उनके नाम सूची से हटाने की कार्रवाई की गई।

मृतकों के नाम पर भरे गए फॉर्म

सर्वाधिक चिंता का विषय यह रहा कि कई जगहों से ऐसी शिकायतें आईं हैं कि जिन मतदाताओं की मृत्यु हो चुकी है, उनके नाम पर भी फॉर्म भर दिए गए। यह दावा न केवल मीडिया रिपोर्ट्स में सामने आया, बल्कि याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने भी सुप्रीम कोर्ट में अपने जवाब में यही बात कही।

बिना जानकारी के सबमिट हुए ऑनलाइन फॉर्म

RJD के सांसद और याचिकाकर्ता मनोज झा ने कहा कि बड़ी संख्या में मतदाताओं के फॉर्म उनकी जानकारी या अनुमति के बिना ऑनलाइन जमा कर दिए गए। कई लोगों को उनके मोबाइल पर यह मैसेज मिला कि उनका फॉर्म सफलतापूर्वक जमा हो गया है, जबकि उन्होंने खुद कोई आवेदन नहीं किया था।

फील्ड सर्वे में लापरवाही के आरोप

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में यह भी आरोप लगाए गए कि बहुत सारे मामलों में बीएलओ (Booth Level Officer) ने न तो क्षेत्र का दौरा किया, न ही मतदाताओं से संपर्क किया। मतदाता को न फॉर्म की डुप्लीकेट कॉपी दी गई और न कोई रसीद। कुछ मामलों में तो बिना फोटो लिए ही फॉर्म अपलोड कर दिए गए। ये सारी बातें इस प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े करती हैं।

दस्तावेजों के बिना जमा हुए फॉर्म

ADR और अन्य याचिकाकर्ताओं का यह भी कहना है कि अधिकतर फॉर्म बिना किसी वैध दस्तावेज के ही जमा कर दिए गए। ऐसे मामलों में मतदाता को पता भी नहीं चला कि उनकी जानकारी के बिना उनके नाम को लिस्ट से हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई। यह लोकतंत्र में नागरिक के अधिकार के खिलाफ है।

संसद में भी उठा मामला

SIR की प्रक्रिया पर विवाद केवल सुप्रीम कोर्ट तक सीमित नहीं है। संसद के मॉनसून सत्र में भी विपक्ष ने इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया है। विपक्षी सांसदों ने सरकार से सवाल किया है कि वोटर लिस्ट से लोगों के नाम बिना सूचना और सहमति के कैसे हटाए जा सकते हैं। उनका कहना है कि यह मताधिकार का हनन है और इससे बड़ी संख्या में वोटर्स मतदान से वंचित हो सकते हैं।

चुनाव आयोग ने दी सफाई

वहीं, चुनाव आयोग ने अपनी सफाई में कहा है कि इस प्रक्रिया के दौरान 18 लाख ऐसे वोटर्स की पहचान हुई है जिनकी मृत्यु हो चुकी है। इसके अलावा 26 लाख लोग बिहार से बाहर या किसी अन्य विधानसभा क्षेत्र में स्थानांतरित हो चुके हैं। साथ ही लगभग 7 लाख मतदाता ऐसे पाए गए हैं जिन्होंने दो जगहों पर वोटर आईडी बनवा रखी है। चुनाव आयोग के अनुसार, इन तीनों श्रेणियों को मिलाकर राज्य में कुल 51 लाख नाम वोटर लिस्ट से हटाए जा सकते हैं।

पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल

ADR का मानना है कि इतनी बड़ी संख्या में नाम हटाए जाने की प्रक्रिया पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांतों पर खरी नहीं उतरती। यदि मृतकों के नाम पर फर्जी फॉर्म भरे गए हैं और जीवित मतदाताओं की जानकारी के बिना उनके नाम हटाए जा रहे हैं, तो यह लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों पर प्रहार है।

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