ब्रिक्स सम्मेलन 2025 में चीन और रूस के प्रमुख नेता शामिल नहीं हो रहे हैं। इससे भारत को कूटनीतिक रूप से लाभ मिल सकता है। पीएम मोदी को प्रमुख मंच मिलने की संभावना है।
BRICS Summit 2025: ब्राजील के रियो डि जेनेरियो में इस वर्ष का ब्रिक्स (BRICS) शिखर सम्मेलन आयोजित हो रहा है। लेकिन इस बार का सम्मेलन कई कारणों से खास बन गया है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इस बैठक में हिस्सा नहीं लेंगे। उनकी अनुपस्थिति ने भारत और ब्राजील जैसे देशों के लिए नए कूटनीतिक अवसर खोल दिए हैं।
शी जिनपिंग नहीं होंगे शामिल
पिछले 12 वर्षों से लगातार ब्रिक्स सम्मेलनों में हिस्सा लेने वाले चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस बार बैठक से दूर रहेंगे। उनकी जगह चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग भाग लेंगे। चीन की ओर से इसका कारण "अन्य व्यस्तताएं" बताया गया है। विश्लेषकों का मानना है कि चीन फिलहाल अपनी घरेलू आर्थिक चुनौतियों और नीति निर्धारण पर ज्यादा ध्यान दे रहा है।
ब्रिक्स की बढ़ती अहमियत के बीच अनुपस्थिति
ब्रिक्स समूह 2024 में 10 सदस्यीय समूह बन गया है। इसमें ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के अलावा अब मिस्र, UAE, इथियोपिया, इंडोनेशिया और ईरान भी शामिल हो गए हैं। यह समूह विश्व शक्ति संतुलन को पश्चिमी देशों के प्रभाव से हटाने की दिशा में काम कर रहा है। लेकिन इस समय अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते व्यापारिक तनाव ने ब्रिक्स को और अधिक रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बना दिया है। ऐसे में शी जिनपिंग की अनुपस्थिति एक बड़ा संकेत माना जा रहा है।
पुतिन भी नहीं होंगे मौजूद
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी सम्मेलन में व्यक्तिगत रूप से शामिल नहीं होंगे। वे केवल वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से हिस्सा लेंगे। इसके पीछे कानूनी कारण हैं। ब्राजील इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (ICC) का सदस्य है और पुतिन पर यूक्रेन युद्ध अपराधों के आरोप हैं। इस स्थिति में यदि वे ब्राजील आते तो उन्हें ICC के आदेश पर गिरफ्तार किया जा सकता था। इसी कारण उन्होंने इस बैठक में वर्चुअली हिस्सा लेने का फैसला लिया।
भारत को मिल सकता है प्रमुख मंच
शी जिनपिंग और पुतिन की गैरमौजूदगी से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह सम्मेलन और भी महत्वपूर्ण बन गया है। वे इस बार व्यक्तिगत रूप से सम्मेलन में हिस्सा लेंगे और ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डा सिल्वा के साथ द्विपक्षीय बैठकें भी करेंगे। ब्राजील ने पीएम मोदी के लिए 8-9 जुलाई को ब्रासीलिया में स्टेट विजिट का आयोजन भी किया है। यह भारत के लिए अपने प्रभाव को बढ़ाने का बड़ा अवसर हो सकता है।
डॉलर की निर्भरता से छुटकारा
ब्रिक्स देशों का लंबे समय से प्रयास रहा है कि व्यापार में डॉलर की निर्भरता कम की जाए और सदस्य देशों की अपनी राष्ट्रीय मुद्राओं में लेनदेन को बढ़ावा दिया जाए। रूस और ईरान जैसे प्रतिबंधित देशों के लिए यह रणनीति और भी जरूरी हो जाती है। हालांकि इस सम्मेलन में साझा ब्रिक्स मुद्रा पर सहमति बनती नहीं दिख रही है, क्योंकि अमेरिका की ओर से ऐसी किसी भी कोशिश पर टैरिफ लगाने की धमकी पहले ही दी जा चुकी है।
ब्रिक्स का विस्तार और उसकी चुनौतियां
ब्रिक्स को अक्सर G7 का विकल्प माना जाता रहा है। 2023 में इसके विस्तार के बाद अब इसमें लोकतांत्रिक से लेकर सत्तावादी शासन वाले देश शामिल हो चुके हैं। इससे समूह की एकता और उद्देश्य को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। मिस्र, ईरान, सऊदी अरब और यूएई जैसे देशों की नीतियां ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे लोकतांत्रिक देशों से मेल नहीं खातीं। भारत की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की मांग को भी चीन समर्थन नहीं देता। इससे ब्रिक्स के भीतर विरोधाभास स्पष्ट नजर आते हैं।