31 अगस्त को चीन में होने वाले SCO समिट में पीएम मोदी, पुतिन और जिनपिंग समेत 20 देशों के नेता एक साथ आएंगे। समिट में अमेरिका की टैरिफ नीति और क्षेत्रीय सुरक्षा पर अहम फैसले होने की उम्मीद है।
SSO Summit: 31 अगस्त को चीन के तियानजिन में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन पर पूरी दुनिया की नज़रें टिकी हैं। इस समिट में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग समेत 20 देशों के बड़े नेता एक मंच पर दिखाई देंगे। यह बैठक न केवल क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक सहयोग के लिहाज से अहम है, बल्कि अमेरिका की टैरिफ नीतियों पर करारा जवाब देने के तौर पर भी देखी जा रही है।
चीन के राजदूत शू फेइहोंग ने पीएम मोदी की इस यात्रा को बेहद महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि यह न केवल एससीओ बल्कि भारत-चीन द्विपक्षीय संबंधों के लिए भी एक बड़ी घटना होगी।
अमेरिका की टैरिफ पॉलिसी पर चर्चा की उम्मीद
पिछले कुछ समय से अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ युद्ध खुलकर सामने आया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत समेत कई देशों पर 50% तक टैरिफ लगाने की घोषणा की है। यहां तक कि उन्होंने यह भी कहा है कि अगर कोई देश रूस से तेल खरीदता है, तो उसे सख्त आर्थिक पाबंदियों का सामना करना होगा।
ऐसे में इस समिट से उम्मीद की जा रही है कि सभी सदस्य देश एक संयुक्त घोषणा पत्र (Joint Declaration) पर हस्ताक्षर करेंगे। माना जा रहा है कि इस दस्तावेज़ में अमेरिका की टैरिफ नीति का कड़ा विरोध दर्ज किया जाएगा। साथ ही क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास और व्यापार सहयोग के नए रास्तों पर भी सहमति बन सकती है।
SCO समिट में कौन-कौन होगा शामिल
इस शिखर सम्मेलन में कई बड़े देशों के शीर्ष नेता शामिल होंगे। इनमें शामिल हैं:
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी – भारत
- राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन – रूस
- राष्ट्रपति शी जिनपिंग – चीन
- राष्ट्रपति मसूद पेज़ेशकियान – ईरान
- उप प्रधानमंत्री इशाक डार – पाकिस्तान
- राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोआन – तुर्की
- प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम – मलेशिया
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रमुख
इन सभी नेताओं की एक साथ मौजूदगी इस बात का संकेत है कि यह समिट वैश्विक राजनीतिक और आर्थिक समीकरणों को बदलने में बड़ी भूमिका निभा सकती है।
पीएम मोदी की मौजूदगी क्यों है अहम
भारत में चीन के राजदूत शू फेइहोंग ने कहा कि पीएम मोदी की इस यात्रा का इंतजार न केवल चीन बल्कि अन्य सदस्य देश भी कर रहे हैं। यह दौरा भारत-चीन रिश्तों में नई ऊर्जा भरने के साथ-साथ एससीओ की मजबूती को भी दर्शाता है।
भारत और चीन के बीच पिछले कुछ वर्षों में कई बार तनाव की स्थिति बनी है, लेकिन ऐसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर पीएम मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग का आमने-सामने होना दोनों देशों के लिए रिश्ते सुधारने का अवसर दे सकता है।
अमेरिका को घेरने की तैयारी
इस बैठक में चीन अमेरिका की नीतियों पर जवाबी रणनीति बनाने की कोशिश कर सकता है। चीन के सहायक विदेश मंत्री लियू बिन ने कहा कि एससीओ का उद्देश्य किसी देश को निशाना बनाना नहीं है, लेकिन जो देश अपने राष्ट्रीय हित को दूसरों के ऊपर रखते हैं, उन्हें यह संदेश ज़रूर जाएगा कि अब एशिया समेत पूरी दुनिया एकजुट हो रही है।
लियू बिन ने बिना नाम लिए अमेरिका पर निशाना साधते हुए कहा कि एससीओ का मकसद Zero-Sum Game यानी एक की जीत और दूसरे की हार जैसी पुरानी सोच से अलग है। यह संगठन सभी देशों के लिए सहयोग और साझा विकास का मंच है।
सुरक्षा और आर्थिक एजेंडे पर फोकस
समिट के दौरान आर्थिक सहयोग, व्यापार नीति, क्षेत्रीय सुरक्षा और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई जैसे मुद्दों पर गहन चर्चा होगी। भारत के लिए यह समिट इसलिए भी अहम है क्योंकि यह मंच पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसी देशों के साथ सीधी बातचीत का मौका देता है।
संयुक्त घोषणा पत्र में आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने और क्षेत्रीय स्थिरता बढ़ाने पर जोर दिया जा सकता है। इसके अलावा सदस्य देश SCO Development Strategy को भी मंजूरी देंगे, जो आने वाले वर्षों में आर्थिक सहयोग के नए रास्ते खोलेगा।
ग्लोबल राजनीति में बढ़ेगा SCO का दबदबा
पिछले कुछ वर्षों में एससीओ ने तेजी से अपनी पहचान बनाई है। यह संगठन अब केवल एशिया तक सीमित नहीं रहा, बल्कि मध्य एशिया, यूरोप और मध्य पूर्व के देशों की भी इसमें दिलचस्पी बढ़ी है। रूस, चीन और भारत जैसे बड़े देशों की मौजूदगी ने इसे वैश्विक राजनीति में और भी प्रभावशाली बना दिया है।