भारत-यूके फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) से भारत का एल्युमिनियम निर्यात 2030 तक तीन गुना बढ़ने की उम्मीद है। हालांकि, UK का जनवरी 2027 से लागू होने वाला कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) निर्यातकों के लिए चुनौती बनेगा, क्योंकि यह प्रति टन CO₂ 150 डॉलर तक का अतिरिक्त टैक्स लगा सकता है।
India-UK FTA: भारत और यूनाइटेड किंगडम के बीच हाल ही में हुए फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) से भारत का एल्युमिनियम निर्यात 2030 तक मौजूदा 21 किलोटन प्रति वर्ष से बढ़कर लगभग 65 किलोटन तक पहुंच सकता है। UK ने 2-10% इंपोर्ट ड्यूटी को समाप्त किया है, जिससे भारतीय उत्पाद अधिक प्रतिस्पर्धी होंगे। हालांकि, जनवरी 2027 से लागू होने वाला कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) 14-35% तक कार्बन टैक्स लगा सकता है, जो FTA के लाभ को सीमित कर सकता है।
FTA से मिलेगा ड्यूटी-फ्री फायदा
FTA के तहत UK ने भारत से आयात होने वाले एल्युमिनियम पर पहले से लागू 2 से 10 फीसदी की ड्यूटी को खत्म कर दिया है। वेदांता एल्युमिनियम के CEO राजीव कुमार के अनुसार, मौजूदा समय में भारत का UK निर्यात लगभग 21 किलोटन प्रति वर्ष है, जिसकी कीमत 93 मिलियन डॉलर है। FTA लागू होने के बाद यह निर्यात 2030 तक 65 किलोटन तक पहुंच सकता है, जिसकी वैल्यू करीब 220 मिलियन डॉलर होगी। ड्यूटी-फ्री होने से भारतीय एल्युमिनियम मैन्युफैक्चरिंग ऑटोमोटिव पार्ट्स, फूड और ड्रिंक पैकेजिंग और रिन्यूएबल एनर्जी इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे सेक्टर्स में अधिक आकर्षक बनेगा।
CBAM से बढ़ सकती है लागत
UK का CBAM निर्यातकों के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह मैकेनिज्म एल्युमिनियम पर 14 से 35 फीसदी तक टैरिफ लगा सकता है, जो प्रति टन CO₂ पर लगभग 150 डॉलर के बराबर है। राजीव कुमार ने चेतावनी दी कि उच्च उत्सर्जन वाले उत्पादकों के लिए यह कार्बन ड्यूटी 50 फीसदी से अधिक भी हो सकती है। इससे निर्यात की लागत इतनी बढ़ जाएगी कि FTA का लाभ कम हो सकता है। डेलॉइट के पार्टनर राजीब मैत्रा के अनुसार, FTA में कार्बन टैक्स पर कोई छूट नहीं मिली है, जो निर्यातकों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकती है।
FTA लागू होने से निर्यात को फायदा
वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 2024-25 में भारत ने UK से 3,244 करोड़ रुपये का एल्युमिनियम आयात किया, जिसमें 86 फीसदी स्क्रैप एल्युमिनियम शामिल था। वहीं, भारत ने UK को 794 करोड़ रुपये के वैल्यू-एडेड एल्युमिनियम प्रोडक्ट्स का निर्यात किया। FTA लागू होने से इन प्रोडक्ट्स की प्रतिस्पर्धात्मकता और बढ़ेगी।
R&D और रिसाइक्लिंग में अवसर
FTA से रिसर्च एंड डेवलपमेंट (R&D) सेक्टर में भी नए अवसर खुल सकते हैं। एल्यूमिना प्रोसेसिंग से निकलने वाले रेड मड में गैलियम, टाइटेनियम और वैनेडियम जैसे महत्वपूर्ण खनिज होते हैं। भारत हर साल करीब 90 लाख टन रेड मड पैदा करता है। इसके अलावा एल्युमिनियम ड्रॉस से भी रिसाइक्लिंग और खनिज निकालने की संभावनाएं हैं।
ग्रीन एल्युमिनियम से वैश्विक बाजार में बढ़त
विशेषज्ञों का कहना है कि FTA के पूरे लाभ को हासिल करने के लिए नीतिगत कदम उठाना जरूरी होगा। राजीब मैत्रा के अनुसार, एल्युमिनियम को कोर सेक्टर का दर्जा दिया जाना चाहिए और घरेलू कार्बन प्राइसिंग तथा ट्रेडिंग सिस्टम लागू करना चाहिए। इसके साथ ही छोटे और मध्यम उद्योगों को प्रोत्साहन देकर नई तकनीक का समर्थन किया जाना चाहिए। ग्रीन एल्युमिनियम सर्टिफिकेशन फ्रेमवर्क तैयार किया जाना चाहिए, जिससे कम कार्बन वाले उत्पादों को बढ़ावा मिलेगा और वैश्विक बाजार में भारत की प्रतिस्पर्धा मजबूत होगी।