अफगानिस्तान में तालिबान सरकार के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी का भारत दौरा इस समय सुर्खियों में है। छह दिवसीय यात्रा पर आए मुत्ताकी का यह दौरा न केवल भारत-अफगानिस्तान संबंधों के लिहाज से अहम है, बल्कि उत्तर प्रदेश के सहारनपुर स्थित देवबंद की चर्चा ने इसे और खास बना दिया है।
Afghani Foreign Minister in Deoband: उत्तर प्रदेश के सहारनपुर स्थित देवबंद एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार चर्चा का कारण बना है तालिबान सरकार के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी का संभावित दौरा।दरअसल, अफगानिस्तान में तालिबान सरकार के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी गुरुवार से छह दिवसीय भारत दौरे पर हैं।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की ओर से यात्रा प्रतिबंध में अस्थायी छूट मिलने के बाद वे 9 अक्टूबर को रूस से होते हुए नई दिल्ली पहुंचे हैं। उनका यह दौरा 15 अक्टूबर तक चलेगा। इस दौरान वर्ष 2021 के बाद भारत और अफगानिस्तान के बीच पहली उच्च-स्तरीय बातचीत होगी।
भारत-अफगानिस्तान के बीच पहली उच्चस्तरीय बातचीत
यह दौरा 15 अक्टूबर तक चलेगा और यह वर्ष 2021 में तालिबान की सत्ता वापसी के बाद दोनों देशों के बीच होने वाली पहली उच्च-स्तरीय कूटनीतिक बातचीत होगी। मुत्ताकी की भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से मुलाकात तय मानी जा रही है। तालिबान सरकार को यह छूट संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की अस्थायी मंजूरी के तहत मिली है, जिससे वे अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक दौरों में भाग ले सकें।
क्यों अहम है देवबंद दौरा?
मुत्ताकी का दारुल उलूम देवबंद दौरा तालिबान की वैचारिक पृष्ठभूमि से गहराई से जुड़ा हुआ है। देवबंद को इस्लामी विचारधारा की हनफी शाखा का केंद्र माना जाता है। यही विचारधारा पाकिस्तान के दारुल उलूम हक्कानिया में भी प्रचलित है — जिसे “तालिबान की पाठशाला” कहा जाता है। तालिबान के कई शीर्ष नेता, जिनमें संस्थापक मुल्ला उमर भी शामिल हैं, हक्कानिया से पढ़े हुए हैं।
हक्कानिया के संस्थापक मौलाना अब्दुल हक ने खुद देवबंद में शिक्षा प्राप्त की थी। उनके बेटे मौलाना सामी-उल-हक, जिन्हें “तालिबान का जनक” कहा जाता है, ने देवबंदी विचारधारा को तालिबान के सिद्धांतों में गहराई से स्थापित किया। ऐसे में मुत्ताकी का देवबंद आना सिर्फ धार्मिक सम्मान का नहीं, बल्कि एक वैचारिक जुड़ाव का प्रतीक भी है।
तालिबान की छवि सुधारने की कोशिश?
कूटनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि मुत्ताकी का यह दौरा तालिबान की वैश्विक छवि को बेहतर करने का प्रयास है। तालिबान अब खुद को कट्टर संगठन के बजाय धार्मिक और शैक्षणिक संवाद का समर्थक दिखाना चाहता है। दारुल उलूम देवबंद की यात्रा को तालिबान द्वारा “धार्मिक सौहार्द” और “शिक्षा के प्रति सम्मान” के संदेश के रूप में देखा जा रहा है। इस दौरान मुत्ताकी देवबंद में अफगानी छात्रों से भी मुलाकात कर सकते हैं। माना जा रहा है कि दोनों पक्ष नई छात्रवृत्तियों और शैक्षणिक सहयोग पर चर्चा करेंगे।
दारुल उलूम के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने भी कहा कि यह दौरा “भारत और अफगानिस्तान के उलेमा संबंधों को पुनर्जीवित करने की दिशा में अहम कदम” साबित हो सकता है।
देवबंद की ऐतिहासिक और धार्मिक पहचान
देवबंद सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि भारतीय और वैश्विक इस्लामी शिक्षा का केंद्र है। यहां स्थित दारुल उलूम देवबंद की स्थापना 31 मई 1866 को मौलाना मुहम्मद कासिम नानोत्वी और हाजी आबिद हुसैन जैसे विद्वानों ने की थी। इसका उद्देश्य इस्लाम की शुद्ध शिक्षाओं का प्रचार करना और सामाजिक चेतना जगाना था।
यह संस्थान देवबंदी आंदोलन का जन्मस्थान माना जाता है, जिसने भारतीय मुसलमानों की धार्मिक और सामाजिक सोच पर गहरा प्रभाव डाला। आज देवबंद से निकले छात्र न केवल भारत में, बल्कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, ब्रिटेन, अफ्रीका और खाड़ी देशों में भी शिक्षा का प्रचार कर रहे हैं। देवबंदी आंदोलन सुन्नी इस्लाम की हनफी परंपरा से जुड़ा एक सुधारवादी विचारधारा है, जो इस्लाम की मूल शिक्षाओं को पुनर्स्थापित करने पर बल देती है। इसकी शिक्षाएं बरेलवी और अहले हदीस जैसे अन्य सुन्नी समूहों से कुछ मामलों में भिन्न हैं।
चूंकि अफगानिस्तान की लगभग 85% आबादी सुन्नी मुसलमानों की है, इसलिए देवबंदी विचारधारा वहां की धार्मिक संरचना में गहराई से प्रभावशाली है। यही कारण है कि तालिबानी विदेश मंत्री का देवबंद दौरा धार्मिक, राजनीतिक और कूटनीतिक — तीनों दृष्टियों से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है।