होम लोन लेने से पहले ब्याज दर का चुनाव बेहद अहम है, क्योंकि यह लंबे समय तक आपकी जेब और फाइनेंशियल प्लानिंग को प्रभावित करता है। फिक्स्ड रेट स्थिरता देता है लेकिन महंगा पड़ता है, जबकि फ्लोटिंग रेट जोखिम भरा होते हुए भी लंबे समय में सस्ता साबित हो सकता है। सही विकल्प आपकी उम्र, आय स्थिरता और जोखिम उठाने की क्षमता पर निर्भर करता है।
Home Loan: घर खरीदने से पहले होम लोन की ब्याज दर चुनना एक बड़ा वित्तीय फैसला होता है। फिक्स्ड रेट लोन में EMI स्थिर रहती है, लेकिन ब्याज दर अधिक होने से यह महंगा साबित होता है। वहीं फ्लोटिंग रेट लोन बाजार दरों पर निर्भर करता है दरें घटने पर फायदा, बढ़ने पर बोझ बढ़ सकता है। अगर आपने पहले ऊंची दर पर लोन लिया था, तो बैलेंस ट्रांसफर के जरिए लाखों की बचत संभव है। ऐसे में कौन-सा विकल्प आपके लिए सही है, यह आपकी आय, उम्र और जोखिम झेलने की क्षमता पर निर्भर करता है।
फिक्स्ड रेट: स्थिर EMI का आराम, लेकिन ज्यादा खर्च
फिक्स्ड रेट वाले होम लोन में सबसे बड़ी खासियत यह होती है कि आपकी EMI हर महीने एक जैसी रहती है। बाजार में कितना भी उतार-चढ़ाव हो, आपकी किस्त तय रहती है। इससे आपका बजट प्लान करना आसान हो जाता है और मन में स्थिरता बनी रहती है। कई लोग इसी वजह से फिक्स्ड रेट को चुनना पसंद करते हैं।
हालांकि, इस स्थिरता की कीमत चुकानी पड़ती है। आमतौर पर फिक्स्ड रेट होम लोन की ब्याज दर फ्लोटिंग रेट से करीब 1 से 1.5 प्रतिशत ज्यादा होती है। यानी शुरुआत में जो स्थिरता अच्छी लगती है, वही लंबे समय में जेब पर भारी पड़ सकती है।
मान लीजिए आपने 20 लाख रुपए का लोन 9.5 प्रतिशत फिक्स्ड रेट पर लिया है, जबकि किसी और ने वही लोन 8 प्रतिशत फ्लोटिंग रेट पर लिया। दोनों की EMI में फर्क भले कम लगे, लेकिन पूरी लोन अवधि में फिक्स्ड रेट वाला व्यक्ति लाखों रुपए ज्यादा चुका देगा।
इसके अलावा, अगर भविष्य में ब्याज दरें घट जाती हैं, तो फिक्स्ड रेट वाले ग्राहकों को उसका कोई फायदा नहीं मिलता। वे उन्हीं ऊंची किस्तों का भुगतान करते रहते हैं, जबकि फ्लोटिंग रेट वाले लोगों की EMI घट जाती है।
फ्लोटिंग रेट: सस्ता विकल्प लेकिन रिस्क के साथ
फ्लोटिंग रेट होम लोन बाजार की स्थिति के हिसाब से ऊपर-नीचे होता है। यह आमतौर पर RBI की रेपो रेट या बैंक की बेंचमार्क दर से जुड़ा होता है। जब बाजार में ब्याज दरें घटती हैं, तो आपकी EMI भी घट जाती है। यही इसकी सबसे बड़ी खासियत है।
लेकिन इसमें रिस्क भी उतना ही बड़ा होता है। अगर कभी RBI ब्याज दरें बढ़ा देता है, तो आपकी EMI अचानक बढ़ सकती है। इससे महीने का बजट बिगड़ सकता है और वित्तीय दबाव बढ़ सकता है।
हालांकि, लंबे समय के नजरिए से देखा जाए तो फ्लोटिंग रेट आमतौर पर सस्ता साबित होता है। क्योंकि ब्याज दरें हमेशा ऊंची नहीं रहतीं। बाजार में उतार-चढ़ाव आता रहता है और लंबे समय में दरें नीचे आने की संभावना अधिक रहती है।
फिक्स्ड से फ्लोटिंग रेट पर शिफ्ट करने का विकल्प

कई बार लोग ऊंची ब्याज दर पर फिक्स्ड रेट लोन ले लेते हैं और बाद में बाजार में दरें घट जाती हैं। ऐसे में वे सोचते हैं कि अब क्या किया जाए। इस स्थिति में बैलेंस ट्रांसफर एक समझदारी भरा कदम हो सकता है।
बैलेंस ट्रांसफर का मतलब है कि आप अपना लोन किसी दूसरे बैंक में ट्रांसफर कर दें जो कम ब्याज दर दे रहा हो। अगर ब्याज दर में सिर्फ 0.5 प्रतिशत या 1 प्रतिशत की भी कमी हो, तो इससे पूरे लोन अवधि में लाखों रुपए की बचत हो सकती है।
हालांकि, ट्रांसफर करते समय बैंक कुछ प्रोसेसिंग फीस या ट्रांसफर चार्ज लेता है। इसलिए फैसला लेने से पहले इन लागतों को ध्यान में रखना जरूरी है।
किसके लिए कौन-सा लोन बेहतर है
अगर आप नौकरी में नए हैं और आपके पास लंबा समय है तो फ्लोटिंग रेट लोन आपके लिए बेहतर हो सकता है। इसमें लचीलापन होता है और लंबे समय में ब्याज दर घटने की संभावना भी रहती है।
वहीं अगर आप रिटायरमेंट के करीब हैं या निश्चित आय पर निर्भर हैं, तो फिक्स्ड रेट लोन चुनना समझदारी है। इससे हर महीने की EMI एक जैसी रहेगी और किसी अचानक बदलाव का असर आपकी जेब पर नहीं पड़ेगा।
कुछ बैंक हाइब्रिड लोन भी देते हैं। इसमें शुरुआती कुछ साल ब्याज दर फिक्स रहती है और उसके बाद फ्लोटिंग रेट लागू होता है। यह उन लोगों के लिए अच्छा विकल्प हो सकता है जो स्थिरता के साथ लचीलापन भी चाहते हैं।
ब्याज दर का छोटा फर्क, बड़ी बचत
कई बार लोग सोचते हैं कि 0.5 या 1 प्रतिशत का फर्क क्या मायने रखता है। लेकिन जब बात होम लोन की आती है, तो यही फर्क लाखों रुपए तक की बचत या नुकसान में बदल सकता है।
उदाहरण के लिए, अगर आपने 25 लाख रुपए का लोन 8.5 प्रतिशत की दर पर लिया और कोई दूसरा व्यक्ति 9.5 प्रतिशत पर, तो दोनों के बीच ब्याज में करीब 3 लाख रुपए से ज्यादा का फर्क आ सकता है।
इसलिए होम लोन लेते समय केवल EMI देखकर फैसला न करें। ब्याज दर के हर छोटे फर्क को समझें और अपनी वित्तीय स्थिति के हिसाब से सही विकल्प चुनें।












