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जिला न्यायपालिका में ठहराव पर CJI की नाराजगी, युवाओं का सेवा छोड़ना चिंता का विषय

जिला न्यायपालिका में ठहराव पर CJI की नाराजगी, युवाओं का सेवा छोड़ना चिंता का विषय

उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India) ने मंगलवार को जिला न्यायपालिका में प्रतिभा पलायन और वरिष्ठ न्यायिक अधिकारियों की नियुक्तियों में देरी पर गंभीर चिंता व्यक्त की। 

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को जिला न्यायपालिका में ठहराव पर अफसोस जताया और इस बात पर जोर दिया कि कई प्रतिभाशाली युवा कुछ वर्षों के बाद ही सेवा छोड़ देते हैं, क्योंकि वे सेवानिवृत्ति तक भी जिला न्यायाधीश नहीं बन पाते। इस दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता जयंत भूषण ने दीवानी (सिविल) न्यायाधीशों की ओर से दलील दी कि उन्हें भी ‘बार कोटा’ के तहत जिला न्यायाधीश बनने के लिए सीधी भर्ती परीक्षा में भाग लेने की अनुमति मिलनी चाहिए। 

उन्होंने कहा कि वर्तमान व्यवस्था के तहत सिविल न्यायाधीशों को इस अवसर से वंचित रखा गया है, जिससे न्यायपालिका में उनके करियर की संभावनाएं सीमित हो जाती हैं।

CJI ने जताई नाराजगी

मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई ने स्पष्ट किया, ‘‘अधीनस्थ न्यायपालिका में शामिल होने वाले कई प्रतिभाशाली युवा सिर्फ दो साल में ही नौकरी छोड़ देते हैं क्योंकि वे प्रधान जिला न्यायाधीश (Principal District Judge) नहीं बन पाते और सेवानिवृत्त हो जाते हैं।’’ उन्होंने कहा कि यह स्थिति न केवल न्यायिक प्रणाली के लिए चिंताजनक है, बल्कि न्यायिक सेवाओं में प्रतिभा की कमी का कारण भी बन रही है।

न्यायमूर्ति सुंदरेश ने अपनी पूर्व विधि लिपिक का उदाहरण देते हुए कहा कि एक टॉपर विधि लिपिक ने अधीनस्थ न्यायपालिका की परीक्षा पास करने के बाद भी सेवा छोड़ने की इच्छा जताई। उन्होंने कहा, ‘‘यह युवा मन की आकांक्षाओं के साथ धोखा है।’

अनुच्छेद 233 और जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति

पीठ फिलहाल संविधान के अनुच्छेद 233 की व्याख्या पर विचार कर रही है, जो जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति और पदोन्नति से संबंधित है। अनुच्छेद 233 के अनुसार, ‘‘किसी राज्य में जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति और पदस्थापन राज्यपाल द्वारा उस राज्य के उच्च न्यायालय के परामर्श से किया जाएगा।’ इसके तहत यह भी कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति केवल तभी जिला न्यायाधीश नियुक्त होने के पात्र होगा यदि उसने न्यूनतम सात वर्ष तक अधिवक्ता के रूप में अभ्यास किया हो और उच्च न्यायालय द्वारा उसकी सिफारिश की गई हो।

बार कोटे के तहत आवेदन पर विवाद

वरिष्ठ अधिवक्ता जयंत भूषण ने पीठ के समक्ष दलील दी कि कई न्यायिक अधिकारियों को बार में सात वर्ष का अनुभव होने के बावजूद बार कोटे के तहत सीधे जिला न्यायाधीश पद के लिए आवेदन करने से रोका गया। उन्होंने कहा, ‘‘इस कारण से प्रतिभाशाली न्यायाधीश जिला न्यायपालिका में शामिल होने के बाद भी पदोन्नति के अवसरों से वंचित रह जाते हैं और कई वर्ष सेवा करने के बाद भी जिला न्यायाधीश नहीं बन पाते।’’

भूषण ने चार प्रमुख संवैधानिक प्रश्न उठाए हैं, जिनमें यह सवाल भी शामिल है कि क्या कोई न्यायिक अधिकारी, जिसने बार में सात वर्ष का अनुभव पूरा कर लिया है, अतिरिक्त जिला न्यायाधीश (ADJ) के रूप में बार कोटे के तहत नियुक्ति का हकदार है।

प्रतिभा पलायन और न्यायिक सेवा की समस्याएँ

सुनवाई में यह बात सामने आई कि कई प्रतिभाशाली युवा अधीनस्थ न्यायपालिका में शामिल होने के कुछ वर्षों के भीतर ही सेवा छोड़ देते हैं, क्योंकि उन्हें जिला न्यायाधीश बनने के लिए लंबे समय तक इंतजार करना पड़ता है। सीजेआई गवई ने कहा, ‘‘अधीनस्थ जिला न्यायपालिका में वर्षों तक रहते हुए भी कई युवा प्रधान जिला न्यायाधीश बनने का अवसर नहीं पा रहे हैं।’’ न्यायमूर्ति सुंदरेश ने भी इस मुद्दे पर चिंता जताते हुए कहा कि यह युवा न्यायाधीशों के करियर और न्यायपालिका की गुणवत्ता दोनों के लिए हानिकारक है।

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