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केरल की पुरानी परंपरा जहां महिलाएं रखती थीं कई पति: क्या था 'संबंधम'

केरल की पुरानी परंपरा जहां महिलाएं रखती थीं कई पति: क्या था 'संबंधम'

केरल के त्रावणकोर इलाके में पहले एक ऐसी परंपरा थी जिसमें औरतें एक से ज़्यादा पुरुषों से रिश्ता रख सकती थीं। इसे ‘संबंधम’ कहा जाता था। इसमें शादी जैसा कोई बंधन नहीं होता था और न ही पति को बच्चों या संपत्ति में कोई हक मिलता था। ये सब कुछ मां के नाम पर चलता था। ये परंपरा 20वीं सदी में धीरे-धीरे खत्म हो गई, जब कानून और समाज में बदलाव आया।

क्या था ‘संबंधम’?

केरल के पुराने समय के त्रावणकोर इलाके में नायर जाति की औरतों के लिए एक खास परंपरा थी, जिसे ‘संबंधम’ कहा जाता था। इस प्रथा में औरतें एक बार थाली पहनने की रस्म (थाली केट्टू कल्याणम) निभाती थीं, लेकिन उसके बाद वो अपने मन से एक नहीं, कई पुरुषों से रिश्ता रख सकती थीं।

इन रिश्तों में कोई बंधन नहीं होता था — न कोई पति कहलाता था, न पत्नी। लेकिन समाज इसे पूरी तरह से मानता था। औरत जब चाहती, रिश्ता तोड़ सकती थी। पुरुष भी ऐसा कर सकता था।

ये कोई छुप-छुपाकर होने वाली चीज नहीं थी, बल्कि खुले तौर पर मानी हुई सामाजिक व्यवस्था थी।

सिर्फ रात में आते थे पुरुष

संबंधम में जो पुरुष औरत से रिश्ता बनाता था, उसे दिन में उसके घर जाने या मिलने की इजाजत नहीं थी। ये 'पति' सिर्फ रात में ही आ सकते थे, और जाते वक्त अपने अस्त्र-शस्त्र (जैसे तलवार) दरवाजे पर रख देते थे, जिससे पता चलता था कि उस समय उस महिला के पास कोई पुरुष है।

इन पुरुषों को कुछ लोग ‘विज़िटिंग हसबैंड’ भी कहते हैं, क्योंकि वो बस कुछ समय के लिए आते थे — ना बच्चों पर उनका कोई हक होता था, ना संपत्ति पर।

मां से चलता था वंश, पिता का नाम नहीं जुड़ता था

नायर समाज में मातृसत्तात्मक प्रणाली चलती थी, जिसे मरूमक्कथयम कहते थे। मतलब, वंश, नाम और संपत्ति सब कुछ मां की तरफ से चलता था।

बच्चे मां के परिवार में गिने जाते थे। पिता की कोई ज़िम्मेदारी नहीं होती थी। मामा यानी लड़की का भाई ही बच्चों की पढ़ाई, शादी और देखभाल करता था।

महिलाओं के पास अपना घर (थारावाडु), ज़मीन, खेत और आमदनी होती थी। वो खुद ज़मीन की मालकिन होती थीं और किराया भी वसूल करती थीं।

परंपरा को क्यों और कैसे खत्म किया गया?

जब अंग्रेज़ों का राज आया और ईसाई मिशनरी केरल पहुंचे, तो उन्हें ये सब ‘असभ्य’ और 'अजीब' लगा। उन्होंने शादी को लेकर अपने कानून और सोच को समाज पर लागू करना शुरू किया।

धीरे-धीरे नायर समाज के पढ़े-लिखे लोगों ने भी इस परंपरा पर सवाल उठाने शुरू कर दिए।

इसके बाद 1925 में 'नायर एक्ट' आया, जिसमें संबंधम को कानूनी शादी मानने से मना कर दिया गया। फिर 1933 में 'त्रावणकोर विवाह अधिनियम' लाया गया और इस परंपरा को खत्म कर दिया गया।

आखिरकार, जब 1955 में हिंदू विवाह अधिनियम आया, तो नायर समाज भी बाकी समाजों की तरह कानूनी शादी करने लगा। संबंधम पूरी तरह बंद हो गया।

आज की तस्वीर क्या कहती है?

अब नायर समाज की औरतें पहले जैसी परंपरा तो नहीं निभातीं, लेकिन उनके अंदर आज भी एक आत्मनिर्भरता और खुला सोच दिखता है।

केरल की महिलाएं पढ़ी-लिखी, नौकरीपेशा और आत्मनिर्भर हैं। यही वजह है कि केरल की साक्षरता दर 96% से ऊपर है, जो देश में सबसे ज़्यादा है।

पुरानी परंपरा भले खत्म हो गई हो, लेकिन उसकी झलक अब भी केरल की औरतों की सोच, जीवनशैली और आत्मविश्वास में दिखती है।

संबंधम एक ऐसी प्रथा थी, जो भारत के बाकी समाज से एकदम अलग थी। ये दिखाती है कि भारत में हर जगह एक जैसी सामाजिक सोच नहीं रही।

जहां ज़्यादातर हिस्सों में पुरुषों को प्राथमिकता दी जाती थी, वहीं त्रावणकोर में महिलाएं समाज का केंद्र थीं।

आज भले ही ये परंपरा इतिहास बन चुकी हो, लेकिन ये भारत की सांस्कृतिक विविधता और सामाजिक सोच की गहराई को समझने का अहम हिस्सा है।

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