कोटा स्थित IIIT के दीक्षांत समारोह में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कोचिंग सेंटर्स को लेकर चिंता जताई। उन्होंने इन्हें 'ब्लैक होल' और 'पोचिंग सेंटर्स' करार देते हुए कहा कि ये संस्थान छात्रों की रचनात्मकता को दबा रहे हैं और उन्हें परीक्षा पास करने की मशीन बना रहे हैं। उपराष्ट्रपति ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के अनुरूप कौशल विकास केंद्रों की आवश्यकता पर बल दिया और समाज से शिक्षा में समझदारी बहाल करने का आग्रह किया।
कोचिंग सेंटर्स की भूमिका पर उठे सवाल
भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (IIIT), कोटा के दीक्षांत समारोह में कोचिंग सेंटर्स की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए। अपने संबोधन में उन्होंने इन संस्थानों को 'शिकारियों के अड्डे', 'पोचिंग सेंटर्स' और 'ब्लैक होल' जैसे शब्दों से संबोधित किया। उन्होंने कहा कि ये केंद्र छात्रों की रचनात्मकता को सीमित कर रहे हैं और केवल परीक्षा पास करने पर केंद्रित एक यांत्रिक प्रणाली विकसित कर रहे हैं।
धनखड़ ने स्पष्ट किया कि यह प्रवृत्ति छात्रों को दीर्घकालिक विकास के अवसरों से दूर कर रही है। उन्होंने कहा कि ऐसे कोचिंग सेंटर्स केवल व्यावसायिक लाभ के उद्देश्य से कार्य करते हैं और छात्रों को सीमित दायरे में ढालते हैं।
NEP के खिलाफ चल रही व्यवस्था
उपराष्ट्रपति ने कहा कि वर्तमान कोचिंग मॉडल राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के उद्देश्यों के विरुद्ध कार्य कर रहा है। NEP 2020 में समग्र, अनुभवात्मक और कौशल-आधारित शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने की बात कही गई है, जो छात्रों को केवल किताबी ज्ञान नहीं बल्कि व्यावहारिक समझ और जीवन-कौशल के साथ सशक्त बनाने का प्रयास करती है।
धनखड़ ने कहा कि कोचिंग सेंटर्स इस नीति की भावना के विपरीत जाकर छात्रों को परीक्षा उतीर्ण कराने की मशीन बना रहे हैं। इससे छात्रों के अंदर स्वाभाविक जिज्ञासा और सीखने की रुचि समाप्त हो रही है। उन्होंने इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर
उपराष्ट्रपति ने अपने संबोधन में यह भी रेखांकित किया कि कोचिंग सेंटर्स के दबाव में छात्र मानसिक तनाव और सामाजिक अलगाव का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि छात्रों को 'रोबोट' की तरह तैयार किया जा रहा है, जिनके जीवन का उद्देश्य केवल अच्छे अंक प्राप्त करना बन गया है।
धनखड़ ने यह भी कहा कि इस प्रक्रिया में बच्चों की कल्पनाशीलता और सोचने-समझने की क्षमता प्रभावित हो रही है। उन्होंने शिक्षा को केवल परीक्षा केंद्रित न बनाकर उसे ज्ञान केंद्रित बनाने की आवश्यकता पर बल दिया।
शिक्षा के वैकल्पिक मॉडल की वकालत
उपराष्ट्रपति ने कोचिंग सेंटर्स से आग्रह किया कि वे अपने संसाधनों का उपयोग कौशल विकास केंद्रों के रूप में करें। उन्होंने सुझाव दिया कि ऐसे संस्थानों को छात्रों को विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षण देकर उन्हें भविष्य के लिए तैयार करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि तकनीकी कौशल को विकसित करना आज की आवश्यकता है, और इसके लिए समर्पित प्रयास किए जाने चाहिए।
धनखड़ ने कहा, “हमें एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था की ओर बढ़ना चाहिए, जो छात्रों को केवल किताबी ज्ञान देने के बजाय उन्हें सोचने, सवाल पूछने और समस्याओं का समाधान खोजने के लिए प्रेरित करे।”
तकनीकी नेतृत्व और आत्मनिर्भरता पर जोर
अपने भाषण में उपराष्ट्रपति ने भारत के तकनीकी विकास की चर्चा करते हुए कहा कि आज भारत के युवा कोडर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इंजीनियर और ब्लॉकचेन विशेषज्ञ आधुनिक भारत के निर्माता हैं। उन्होंने इस प्रगति को देशभक्ति का नया स्वरूप बताते हुए युवाओं से तकनीकी क्षेत्र में नेतृत्व करने का आह्वान किया।
धनखड़ ने कहा कि पहले भारत को तकनीकी समाधान के लिए वर्षों इंतजार करना पड़ता था, लेकिन अब देश कुछ ही सप्ताहों में नई तकनीक विकसित कर सकता है। उन्होंने इस अवसर को भारत के लिए स्वावलंबी बनने का महत्वपूर्ण क्षण बताया।
गुरुकुल प्रणाली का उल्लेख
उपराष्ट्रपति ने अपने भाषण में प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली की ओर भी इशारा किया। उन्होंने कहा कि गुरुकुल प्रणाली में ज्ञान का आदान-प्रदान सेवा, समर्पण और नैतिक मूल्यों पर आधारित होता था। उन्होंने इसे भारतीय शिक्षा की जड़ बताया, जहां गुरु निःस्वार्थ भाव से छात्रों को शिक्षा प्रदान करते थे।
धनखड़ ने वर्तमान शिक्षा व्यवस्था की तुलना करते हुए कहा कि हमें इस परंपरा से प्रेरणा लेनी चाहिए और आधुनिक शिक्षा को मूल्यों एवं उद्देश्य के साथ जोड़ना चाहिए।
सामाजिक सहभागिता की अपील
अपने संबोधन के अंत में उपराष्ट्रपति ने समाज, सिविल सोसाइटी और जनप्रतिनिधियों से शिक्षा में समझदारी बहाल करने की अपील की। उन्होंने कहा कि शिक्षा को परीक्षा-आधारित प्रणाली से निकालकर एक समग्र विकास की ओर ले जाना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
उन्होंने कहा, “हमें अपने युवाओं को एक ऐसा वातावरण देना चाहिए, जहां वे केवल डॉक्टर या इंजीनियर बनने के दबाव में न आएं, बल्कि अपने रुचि के अनुसार आगे बढ़ें। कोचिंग संस्कृति को सही दिशा में मोड़ना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।”
शिक्षा प्रणाली की पुनर्रचना की आवश्यकता
IIIT कोटा में उपराष्ट्रपति द्वारा व्यक्त की गई चिंता एक व्यापक बहस की मांग करती है। कोचिंग सेंटर्स की भूमिका, शिक्षा की गुणवत्ता और छात्रों के समग्र विकास को लेकर समाज के हर स्तर पर चिंतन आवश्यक है। उपराष्ट्रपति का यह संदेश केवल कोचिंग सेंटर्स तक सीमित नहीं, बल्कि समूचे शिक्षा तंत्र को संतुलित और उद्देश्यपूर्ण बनाने की दिशा में एक आवश्यक चेतावनी है।