एलन मस्क, सुंदर पिचाई, सत्य नडेला और इंद्रा नूयी जैसे दिग्गज पहले एच-1बी वीजा के जरिए अमेरिका जाकर अपने “अमेरिकन ड्रीम” को साकार कर चुके हैं।
वॉशिंगटन: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक चौंकाने वाला फैसला लेकर भारतीय पेशेवरों और आईटी सेक्टर के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं। हाल ही में घोषित नियम के तहत अब कंपनियों को एच-1बी वीजा धारकों को रखने के लिए 1 लाख डॉलर (करीब 88 लाख रुपये) तक चुकाने होंगे। यह फैसला सीधे तौर पर भारतीय इंजीनियरों और टेक प्रोफेशनल्स को प्रभावित करेगा, क्योंकि हर साल जारी होने वाले एच-1बी वीजा का लगभग 72 प्रतिशत हिस्सा भारतीयों को जाता है।
इस फैसले ने न केवल भारतीय ‘अमेरिकन ड्रीम’ को झटका दिया है, बल्कि यह भी सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या ट्रंप ने अपने घरेलू राजनीतिक लाभ के लिए भारतीयों को निशाना बनाया है।
भारतीयों पर सीधा असर
हर साल हजारों भारतीय युवा अमेरिका जाकर नौकरी के जरिए अपना भविष्य संवारते हैं। गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई, माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्य नडेला, स्पेसएक्स और टेस्ला के सीईओ एलन मस्क के साथ काम कर चुकीं इंद्रा नूयी—इन सभी का करियर कभी न कभी एच-1बी वीजा से जुड़ा रहा है। लेकिन आज अगर ये दिग्गज पहली बार अमेरिका जाकर नौकरी करने की कोशिश करें, तो उन्हें भी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।
औसतन एक भारतीय प्रोफेशनल की शुरुआती सैलरी अमेरिका में 65,000 डॉलर सालाना होती है। ऐसे में कंपनियां दोबारा सोचेंगी कि क्या किसी कर्मचारी को इतनी अधिक लागत पर रखना सही होगा।
ट्रंप का तर्क: ‘अमेरिकी नौकरियां सुरक्षित करना’
डोनाल्ड ट्रंप और उनके समर्थकों का दावा है कि एच-1बी वीजा प्रोग्राम का दुरुपयोग हो रहा है और इसकी वजह से अमेरिकी कामगारों की नौकरियां खतरे में पड़ रही हैं। चुनावी राजनीति में यह मुद्दा ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ कैंपेन को मजबूत करने का साधन बन गया है। ट्रंप ने साफ कहा कि यह फैसला अमेरिकी हितों के लिए लिया गया है। उनके अनुसार, प्रवासी कामगार, खासकर भारतीय इंजीनियर, स्थानीय लोगों की नौकरियां छीन रहे हैं।
भारत में इस फैसले की तीखी आलोचना हो रही है। माकपा ने बयान जारी कर कहा कि यह निर्णय हजारों भारतीय पेशेवरों और उनके परिवारों की आजिविका पर सीधा हमला है। पार्टी ने केंद्र सरकार से मांग की है कि वह अमेरिकी दबाव के आगे न झुके और इस मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाए।
क्या अमेरिका खुद को नुकसान पहुंचा रहा है?
यह भी सच है कि अमेरिकी कंपनियों की सफलता में भारतीयों का योगदान बेहद अहम रहा है। सिलिकॉन वैली से लेकर वॉल स्ट्रीट तक, भारतीयों ने इनोवेशन और मैनेजमेंट दोनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन, एप्पल, वॉलमार्ट और जेपी मॉर्गन जैसी कंपनियों में बड़ी संख्या में भारतीय पेशेवर काम करते हैं।
अगर आगे भारतीय टैलेंट अमेरिका नहीं जाएगा, तो इन कंपनियों के लिए योग्य और कुशल कर्मचारी ढूंढना मुश्किल हो सकता है। यानी ट्रंप का यह फैसला अमेरिका की तकनीकी और आर्थिक ताकत को भी कमजोर कर सकता है।