तेज़ डिलीवरी का वादा करने वाले क्विक कॉमर्स प्लेटफॉर्म जैसे स्विगी इंस्टामार्ट, जेप्टो और ब्लिंकिट शहरी लोगों की ज़िंदगी का हिस्सा बन चुके हैं। कुछ साल पहले तक 10 मिनट में किराने का सामान घर पहुंच जाना एक अजूबा लगता था, लेकिन आज यह आम बात हो गई है। हालांकि, अब इसी सुविधा पर सवाल उठने लगे हैं। वजह है हर ऑर्डर पर लगने वाले तरह-तरह के चार्ज।
चार्ज बढ़ने से ग्राहकों में असंतोष
अब ये कंपनियां केवल प्रोडक्ट की कीमत नहीं ले रहीं, बल्कि हैंडलिंग चार्ज, डिलीवरी चार्ज, छोटा ऑर्डर शुल्क, बारिश शुल्क, और यहां तक कि सर्ज चार्ज भी वसूल रही हैं। इन अतिरिक्त शुल्कों के कारण एक सामान्य किराना ऑर्डर पर ग्राहकों को 30 से 50 रुपये तक ज्यादा देने पड़ सकते हैं।
दिल्ली की रहने वाली उर्वशी शर्मा कहती हैं, “मैं पहले जेप्टो से सब्जियां मंगाती थी, लेकिन अब मैं पास की दुकान से ही लेती हूं। ऑनलाइन टमाटर 20 रुपये किलो हैं, लेकिन जब चार्ज जुड़ते हैं, तो वही 40 रुपये तक पहुंच जाते हैं।”
धीरे-धीरे बदल रही है लोगों की आदत
जहां एक समय ग्राहक दिन में कई बार क्विक कॉमर्स प्लेटफॉर्म से ऑर्डर किया करते थे, वहीं अब वे सोच-समझकर ही आर्डर कर रहे हैं। कुछ लोग एक ही बार में ज़्यादा सामान मंगा लेते हैं ताकि बार-बार चार्ज न देना पड़े, जबकि कई ग्राहक अब ऑफलाइन खरीदारी की तरफ लौटने लगे हैं।
मार्केट रिसर्च फर्म Datum Intelligence के सलाहकार सतीश मीना ने कहा कि ग्राहकों का व्यवहार बदल रहा है और यह कंपनियों की ग्रॉस ऑर्डर वैल्यू (GOV) को प्रभावित कर सकता है। इससे डार्क स्टोर की ऑपरेशनल लागत भी बढ़ सकती है।
फीस को ट्रैक करना हो रहा मुश्किल
हर प्लेटफॉर्म का चार्ज स्ट्रक्चर अलग है, जिससे ग्राहकों को समझना मुश्किल हो जाता है कि उन्हें वास्तव में कितना भुगतान करना है।
- स्विगी इंस्टामार्ट पर हैंडलिंग चार्ज 10 से 15 रुपये तक हो सकता है।
- जेप्टो छोटे ऑर्डर पर 13 रुपये और बड़े ऑर्डर पर करीब 21 रुपये वसूलता है।
- ब्लिंकिट पर 11 रुपये का हैंडलिंग चार्ज फिक्स है, लेकिन डिलीवरी तभी फ्री होती है जब ऑर्डर 500 रुपये या उससे ऊपर का हो।
इसके अलावा बारिश और सर्ज चार्ज का भी समय-समय पर बिल में जुड़ना ग्राहकों को भ्रमित करता है। सर्ज चार्ज आमतौर पर 30 रुपये और बारिश चार्ज 15 रुपये तक हो सकता है।
अब पहले जैसा नहीं रहा सस्ता सौदा
पहले क्विक कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स से खरीदारी करने पर ग्राहकों को लोकल दुकानों से भी सस्ती कीमतें मिल जाती थीं। लेकिन अब सर्विस फीस और अन्य चार्जेस के कारण यह अंतर लगभग खत्म हो गया है।
मुंबई के रहने वाले एक छात्र प्रतीक ने कहा, “पहले मैं दिन में दो बार जेप्टो से कुछ न कुछ मंगवा लेता था। अब मैं एक ही बार में बड़ा ऑर्डर करता हूं, या फिर पास की दुकान से खरीद लेता हूं।”
प्लेटफॉर्म दे रहे नए प्लान, लेकिन असर धीमा
ग्राहकों को वापस जोड़ने के लिए कुछ प्लेटफॉर्म अब Super Saver और Maxxsaver जैसे सब्सक्रिप्शन प्लान दे रहे हैं, जहां सीमित ऑर्डर पर फ्री डिलीवरी का विकल्प मिलता है। हालांकि, इन प्लान्स को अपनाने वाले ग्राहकों की संख्या अभी बहुत कम है।
कंपनियों को हो रहा घाटा, ग्राहक बन रहे सावधान
क्विक कॉमर्स कंपनियों का बिजनेस मॉडल अभी भी घाटे में चल रहा है। यही कारण है कि वे हर ऑर्डर से कुछ ना कुछ शुल्क वसूलने की कोशिश कर रही हैं। लेकिन ग्राहक हर बार इन शुल्कों को वहन नहीं कर पा रहे हैं, खासकर तब जब ऑर्डर छोटा होता है।
एक और ग्राहक, पूनम गुप्ता का कहना है, “अगर मुझे केवल ब्रेड और दूध लेना है, तो उस पर 40 रुपये का चार्ज देना समझदारी नहीं लगती। इसलिए अब मैं थोड़ा इंतजार करके सारे सामान एक साथ मंगवाती हूं।”
क्विक कॉमर्स की शुरुआत थी ‘सुविधा’ से
इन सेवाओं की शुरुआत ही इसलिए हुई थी ताकि ग्राहक जरूरत के सामान को जल्दी और आसानी से मंगवा सकें। लेकिन अब सुविधा के साथ जुड़ते चार्जेस इसे एक महंगा सौदा बना रहे हैं।
ग्राहकों का कहना है कि यदि कंपनियां इसी तरह हर चीज़ पर शुल्क जोड़ती रहीं, तो उन्हें इस ‘क्विक सुविधा’ का इस्तेमाल करने से पहले दो बार सोचना पड़ेगा।
आने वाले वक्त में क्या होगा बदलाव
कंपनियों की तरफ से अभी कोई स्पष्ट नीति नहीं आई है कि ये चार्ज स्थायी हैं या भविष्य में हटाए जा सकते हैं। कुछ प्लेटफॉर्म्स ट्रायल के तौर पर इन्हें लागू कर रहे हैं, ताकि घाटा कम किया जा सके।
लेकिन जो तस्वीर उभर रही है, वह यह दिखा रही है कि शहरी ग्राहक भी अब खर्च को लेकर सजग हो रहे हैं और सुविधा के साथ मूल्य की तुलना करने लगे हैं।