‘मंडला मर्डर्स’ नेटफ्लिक्स की डार्क थ्रिलर सीरीज है। वाणी कपूर के ओटीटी डेब्यू वाली इस सीरीज में अच्छी सिनेमैटोग्राफी है, लेकिन धीमी कहानी और कमजोर संवादों की वजह से यह दर्शकों को पूरी तरह बांध नहीं पाती।
Mandala Murders Review: नेटफ्लिक्स पर हाल ही में रिलीज़ हुई वेब सीरीज ‘मंडला मर्डर्स’ ने दर्शकों का ध्यान अपनी डार्क और रहस्यमय थीम के कारण खींचा। गोपी पुथरन और मनन रावत द्वारा निर्देशित यह सीरीज उत्तर प्रदेश के काल्पनिक शहर चरणदासपुर में घटित होती है। इसमें वाणी कपूर, सुरवीन चावला, वैभव राज गुप्ता, रघुबीर यादव और श्रिया पिलगांवकर मुख्य भूमिकाओं में नजर आए हैं। यह सीरीज भारतीय पौराणिक कथाओं, अंधविश्वास और क्राइम ड्रामा को मिलाकर एक थ्रिलिंग अनुभव देने का प्रयास करती है।
कहानी की शुरुआत और प्लॉट
सीरीज की कहानी कई हत्याओं के सिलसिले से शुरू होती है। रिया थॉमस (वाणी कपूर) नाम की एक सीआईबी एजेंट और पुलिसकर्मी विक्रम सिंह (वैभव राज गुप्ता) इन रहस्यमयी हत्याओं की जांच में जुटते हैं। जल्द ही उन्हें पता चलता है कि ये केस सिर्फ एक सामान्य मर्डर मिस्ट्री नहीं है, बल्कि यह एक गुप्त समाज और एक प्राचीन मशीन से जुड़ा है। कहा जाता है कि यह मशीन इंसान की इच्छाएं पूरी करने के लिए मानव बलि मांगती है। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, यह कई सब-प्लॉट्स में उलझती चली जाती है। कई ऐसे किरदार और घटनाएं सामने आती हैं, जो रहस्य तो बढ़ाती हैं लेकिन कहानी को धीमा कर देती हैं।
वाणी कपूर का ओटीटी डेब्यू – उम्मीद और कमी
‘मंडला मर्डर्स’ वाणी कपूर की पहली वेब सीरीज है। वह सीआईबी एजेंट रिया के किरदार में एक सख्त और प्रोफेशनल महिला का रूप दिखाने की कोशिश करती हैं। हालांकि, उनके रोल को जिस गहराई और इमोशनल लेयरिंग की जरूरत थी, वह स्क्रीन पर नज़र नहीं आती। नतीजतन, उनका अभिनय औसत रह जाता है।
सुरवीन चावला और वैभव राज गुप्ता का प्रदर्शन
सुरवीन चावला एक बार फिर एक मजबूत किरदार निभाती हैं, लेकिन यह रोल पहले भी कई वेब सीरीज में देखा जा चुका है। नई बात की कमी के कारण उनका काम प्रभावी होते हुए भी अलग पहचान नहीं बना पाता। वहीं, गुल्लक फेम वैभव राज गुप्ता इस सीरीज का पॉजिटिव सरप्राइज हैं। उन्होंने अपने किरदार विक्रम सिंह को पूरी ईमानदारी के साथ निभाया है। उनकी परफॉर्मेंस वाणी कपूर से कहीं ज्यादा नैचुरल लगती है।
सिनेमैटोग्राफी बनी सीरीज की ताकत
अगर ‘मंडला मर्डर्स’ में किसी चीज़ की सबसे ज्यादा तारीफ बनती है, तो वह है इसकी सिनेमैटोग्राफी। चरणदासपुर का डार्क और रहस्यमय माहौल बेहद रियल और विजुअली स्ट्रॉन्ग दिखता है। लाइटिंग, कैमरा एंगल और लोकेशन्स इस सीरीज को विजुअली रिच बनाते हैं।
कमजोरियां जो भारी पड़ीं
- धीमी रफ्तार: कहानी कछुए की चाल से आगे बढ़ती है।
- अनुत्तरित सवाल: कई महत्वपूर्ण घटनाओं के जवाब अंत तक नहीं मिलते।
- संवादों की कमी: डायलॉग्स उतने प्रभावी नहीं हैं कि दर्शक पर गहरी छाप छोड़ सकें।
- अत्यधिक सब-प्लॉट्स: बहुत सारी चीजें एक साथ दिखाने की कोशिश ने सीरीज का मजा कम कर दिया।