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पीएम-सीएम को बर्खास्त करने वाले विधेयक पर विपक्ष में मतभेद, जेपीसी और टीएमसी का अलग रुख

पीएम-सीएम को बर्खास्त करने वाले विधेयक पर विपक्ष में मतभेद, जेपीसी और टीएमसी का अलग रुख

प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों को बर्खास्त करने संबंधी नरेंद्र मोदी सरकार के नए विधेयक को लेकर विपक्ष में बड़ा विभाजन दिखाई देने लगा है। संसद के हाल ही संपन्न मॉनसून सत्र में पेश किए गए इस विधेयक को लेकर विपक्षी खेमे में जोरदार हंगामा हुआ था।

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने हाल ही में संपन्न हुए संसद के मॉनसून सत्र में एक नया बिल पेश किया, जो पीएम और सीएम को बर्खास्त करने से जुड़ा है। जैसे ही यह विधेयक लोकसभा में पेश हुआ, विपक्षी सांसदों ने हंगामा शुरू कर दिया, जिससे सदन की कार्यवाही बाधित हुई। इस बीच, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस 130वें संविधान संशोधन विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) में भेजने का प्रस्ताव रखा, जिसे स्पीकर ने स्वीकृति दे दी। अब इस बिल पर सभी दलों के सांसदों की भागीदारी वाली JPC विचार करेगी और अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करेगी।

विधेयक क्या कहता है?

केंद्र सरकार द्वारा लाए गए इस 130वें संविधान संशोधन विधेयक के तहत यदि कोई मंत्री या मुख्यमंत्री 30 दिनों से अधिक समय तक जेल में रहते हैं, तो उन्हें अपने पद से हटना होगा। सरकार का दावा है कि यह कदम पारदर्शिता और जवाबदेही को मजबूत करेगा। लेकिन विपक्षी दलों का आरोप है कि इस कानून का इस्तेमाल मोदी सरकार विपक्ष शासित राज्यों के नेताओं को निशाना बनाने के लिए कर सकती है।

जेपीसी में भेजा गया विधेयक

लोकसभा में जब यह विधेयक पेश हुआ, तो विपक्षी सांसदों ने जोरदार हंगामा किया। स्थिति को संभालने के लिए गृह मंत्री अमित शाह ने प्रस्ताव रखा कि इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेज दिया जाए। लोकसभा स्पीकर ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दी और अब एक जेपीसी गठित की जाएगी, जिसमें विभिन्न दलों के सांसद शामिल होंगे।

जेपीसी का काम विधेयक का अध्ययन करना, उसमें मौजूद प्रावधानों का विश्लेषण करना और अपनी सिफारिशें संसद को सौंपना होगा। जहाँ विपक्षी INDIA गठबंधन के कई दल जेपीसी में शामिल होने के पक्ष में हैं, वहीं ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने इसका विरोध कर दिया है। टीएमसी का कहना है कि विपक्ष को इस समिति का हिस्सा नहीं बनना चाहिए, बल्कि बहिष्कार करना चाहिए। पार्टी का मानना है कि जेपीसी में शामिल होने से सरकार को वैधता मिल जाएगी और विपक्ष अपनी असली ताकत खो देगा।

कांग्रेस और अन्य दलों का रुख

इसके विपरीत, कांग्रेस और गठबंधन के अन्य दल जैसे डीएमके और समाजवादी पार्टी जेपीसी का हिस्सा बनने के पक्ष में हैं। कांग्रेस को उम्मीद है कि उसे पैनल में 4 से 5 सीटें मिल सकती हैं। इन दलों का मानना है कि जेपीसी ही एक ऐसा मंच है जहाँ विपक्ष अपनी राय दर्ज करा सकता है और सरकार पर दबाव बना सकता है।

हाल ही में हुई विपक्षी दलों की बैठक में इस मुद्दे पर तीखी बहस देखने को मिली। सूत्रों के मुताबिक, एक वरिष्ठ टीएमसी नेता ने स्पष्ट कहा कि विपक्ष को जेपीसी से दूर रहना चाहिए। उनका तर्क था कि सरकार अपनी संख्याबल की ताकत से अंततः विधेयक पास करवा लेगी। हालाँकि, एक छोटे दल के प्रतिनिधि ने इसका विरोध किया और कहा कि जेपीसी ही विपक्ष के लिए एक महत्वपूर्ण मंच है। उन्होंने वक्फ (संशोधन) विधेयक का उदाहरण देते हुए बताया कि जेपीसी की कार्यवाही को सुप्रीम कोर्ट ने भी संज्ञान में लिया था। यानी समिति की कार्यवाही का कानूनी और संवैधानिक महत्व है।

यह पहली बार नहीं है जब विपक्षी INDIA गठबंधन के भीतर मतभेद उभर कर सामने आए हों। संसद के मॉनसून सत्र के दौरान हालांकि विपक्षी दल एकजुट नजर आए, लेकिन अंतिम दिन पेश किए गए तीन विधेयकों ने उनकी एकता पर सवाल खड़े कर दिए।

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