अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सरकारी एजेंसियों में 'Woke AI' के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया है। यह आदेश AI की वैचारिक तटस्थता सुनिश्चित करने की कोशिश है। ट्रंप का दावा है कि कई AI मॉडल DEI जैसे एजेंडों से प्रभावित हैं।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तकनीकी और वैचारिक मोर्चे पर एक बड़ा कदम उठाते हुए सरकारी एजेंसियों में उपयोग होने वाले 'Woke AI' मॉडल्स पर प्रतिबंध लगाने का आदेश जारी किया है। यह आदेश न केवल अमेरिका की एआई नीति को प्रभावित करेगा, बल्कि भारत जैसे देशों के लिए भी एक बड़ा संकेतक साबित हो सकता है, जहां वैचारिक तटस्थता और डिजिटल नैतिकता को लेकर चर्चाएं तेज़ होती जा रही हैं।
क्या है 'Woke AI'?
'Woke' शब्द मूल रूप से एक सकारात्मक जागरूकता को दर्शाता था — जैसे नस्लभेद, लिंग असमानता और सामाजिक अन्याय के खिलाफ चेतना। लेकिन बीते वर्षों में इस शब्द का राजनीतिक और वैचारिक इस्तेमाल बढ़ गया है, और अब इसे अकसर उन विचारों और तकनीकों के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो ज़रूरत से ज़्यादा सामाजिक सुधार की कोशिश में वस्तुनिष्ठता को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। 'Woke AI' उन एआई मॉडल्स को कहा जा रहा है जो Diversity, Equity, और Inclusion (DEI) जैसे विचारों को अपनी प्रतिक्रिया में प्राथमिकता देते हैं — कभी-कभी ऐतिहासिक तथ्यों या वैज्ञानिक सच्चाइयों की कीमत पर।
ट्रंप का एग्जीक्यूटिव ऑर्डर: आदेश की प्रमुख बातें
डोनाल्ड ट्रंप के नए आदेश में निम्नलिखित प्रमुख प्रावधान हैं:
1. वैचारिक तटस्थता की अनिवार्यता
अब से अमेरिकी सरकारी एजेंसियां केवल उन्हीं LLMs (Large Language Models) का उपयोग कर सकेंगी, जो सत्य, तथ्यों और विचारधारात्मक निष्पक्षता का पालन करें।
2. कड़े अनुबंध नियम
एआई प्रदाता कंपनियों को यह प्रमाण देना होगा कि उनके मॉडल किसी भी प्रकार के सामाजिक या राजनीतिक एजेंडे से प्रभावित नहीं हैं। यदि ऐसा प्रमाणित होता है कि मॉडल पक्षपाती है, तो उसका अनुबंध रद्द किया जा सकता है और नुकसान की भरपाई भी उसी कंपनी से की जाएगी।
3. AI से सत्य और वस्तुनिष्ठता की अपेक्षा
मॉडल्स को केवल तथ्यों पर आधारित उत्तर देना होगा, चाहे विषय इतिहास हो, विज्ञान हो या समाजशास्त्र।
वैश्विक असर: भारत के लिए क्यों है यह आदेश महत्वपूर्ण?
1. AI नीति निर्माण पर प्रभाव
अमेरिका की यह पहल वैश्विक AI नीति की दिशा को प्रभावित कर सकती है। भारत, जो AI नीति पर सक्रिय रूप से काम कर रहा है, उसके लिए यह आदेश एक विचारणीय दृष्टिकोण पेश करता है कि 'क्या एआई केवल तकनीक है या यह वैचारिक उत्पाद भी है?'
2. भारत में भी वोक बनाम तटस्थ एआई की बहस
भारत में भी कुछ टेक प्लेटफॉर्म्स पर 'लिबरल पूर्वाग्रह' और "संवेदनशील सेंसरशिप" को लेकर सवाल उठे हैं। ऐसे में यह आदेश भारतीय नीतिगत विमर्श को और धार दे सकता है।
3. टेक्नोलॉजी का वैचारिक डीएनए
अब बहस इस बात पर भी है कि जिस तरह मनुष्यों का वैचारिक झुकाव होता है, क्या उसी तरह एआई को भी विचारधाराओं से बचाया जा सकता है?
तकनीकी कंपनियों की चुनौती बढ़ी
डोनाल्ड ट्रंप के आदेश के बाद अब AI डेवलपमेंट कंपनियों पर एक नई जिम्मेदारी आ गई है। उन्हें यह सिद्ध करना होगा कि उनका मॉडल किसी विचारधारा से नहीं जुड़ा है और पूरी तरह निष्पक्ष है। यह कार्य आसान नहीं है क्योंकि AI मॉडल्स को प्रशिक्षित करने वाला डेटा खुद मानवीय पूर्वाग्रहों से भरा होता है।
भारत में क्या हो सकता है अगला कदम?
भारत में डिजिटल पॉलिसी पर मंथन लगातार चल रहा है। भारतीय नीति-निर्माताओं के सामने अब यह सवाल अधिक स्पष्ट रूप से आ गया है — क्या हमें भी अपने AI टूल्स के लिए विचारधारात्मक तटस्थता के मानक तय करने चाहिए? साथ ही, भारत के AI डेवलपर्स और स्टार्टअप्स के लिए यह एक अवसर भी है कि वे वैश्विक स्तर पर तटस्थ और पारदर्शी AI टूल्स विकसित कर विश्व बाजार में प्रतिस्पर्धा करें।