भारत सरकार विदेशी निवेश को आकर्षित करने और परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए परमाणु दायित्व कानून (Nuclear Liability Law) को आसान बनाने की योजना पर काम कर रही है।
नई दिल्ली: भारत सरकार परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए बड़ा कानूनी सुधार करने जा रही है। सूत्रों के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार 2010 के सिविल लायबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट (CLND) में ऐसे संशोधन लाने की तैयारी में है, जिससे आपूर्तिकर्ताओं की ज़िम्मेदारी सीमित कर दी जाएगी।
इस बदलाव का मुख्य मकसद है, अमेरिकी और अन्य विदेशी कंपनियों की उस चिंता को दूर करना, जो अब तक असीमित दायित्व की वजह से भारतीय न्यूक्लियर बाजार में कदम रखने से हिचक रही थीं।
2047 तक 100 गीगावाट परमाणु ऊर्जा का लक्ष्य
सरकार की दीर्घकालिक योजना भारत की परमाणु ऊर्जा उत्पादन क्षमता को वर्तमान 6.8 गीगावाट से बढ़ाकर 2047 तक 100 गीगावाट तक पहुंचाने की है। इस महत्वाकांक्षी योजना को साकार करने के लिए देश में उन्नत तकनीक, आधुनिक रिएक्टर डिज़ाइन और विदेशी उपकरणों की आवश्यकता होगी। इसके लिए अमेरिका की वेस्टिंगहाउस और जनरल इलेक्ट्रिक जैसी कंपनियों का साथ अहम माना जा रहा है।
क्या होगा नया?
प्रस्तावित संशोधन के तहत, किसी भी परमाणु दुर्घटना की स्थिति में रिएक्टर के ऑपरेटर द्वारा आपूर्तिकर्ता से मुआवजा मांगने की सीमा अनुबंधित राशि तक सीमित होगी। अभी तक CLND एक्ट की धारा 17(b) आपूर्तिकर्ताओं पर असीमित ज़िम्मेदारी डालती है—यही कारण है कि अधिकांश विदेशी कंपनियां भारत में साझेदारी से कतराती हैं।
परमाणु ऊर्जा: स्वच्छ और रणनीतिक जरूरत
ऊर्जा विशेषज्ञ देबाशीष मिश्रा का कहना है, 'भारत के लिए परमाणु ऊर्जा न केवल कम कार्बन उत्सर्जन वाली स्वच्छ ऊर्जा का स्रोत है, बल्कि यह बेसलोड पावर के लिए भी बेहद ज़रूरी है।' सरकार का मानना है कि यदि दायित्व से जुड़ी अनिश्चितताएं खत्म की जाती हैं, तो यह सेक्टर निवेश के लिए और अधिक आकर्षक बन जाएगा।
भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों को मिल सकता है नया आयाम
अधिकारियों के अनुसार, यह प्रस्ताव सिर्फ ऊर्जा क्षेत्र तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह भारत-अमेरिका के व्यापार संबंधों को भी मजबूती देगा। दोनों देशों का लक्ष्य है कि 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 500 बिलियन डॉलर तक पहुंचाया जाए, जिसमें ऊर्जा एक प्रमुख सेक्टर हो सकता है। बताया जा रहा है कि सरकार जुलाई 2025 के मानसून सत्र में इन संशोधनों को संसद में पेश करेगी और उम्मीद की जा रही है कि इसे मंजूरी मिल जाएगी।
अगर यह कानून पारित होता है, तो यह न केवल भारत की ऊर्जा रणनीति के लिए मील का पत्थर साबित होगा, बल्कि वैश्विक निवेशकों के लिए भी एक बड़ा सकारात्मक संकेत होगा।