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अमेरिका-चीन टैरिफ वॉर: चीन पर 245% तक का टैरिफ, व्हाइट हाउस ने बताई वजह

अमेरिका-चीन टैरिफ वॉर: चीन पर 245% तक का टैरिफ, व्हाइट हाउस ने बताई वजह
अंतिम अपडेट: 16-04-2025

अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक टकराव एक बार फिर सुर्खियों में है। अमेरिका ने चीन से आने वाले कुछ उत्पादों पर 245 प्रतिशत तक का आयात शुल्क (टैरिफ) लगा दिया है। व्हाइट हाउस द्वारा जारी एक फैक्ट शीट में यह दावा किया गया है कि यह फैसला चीन की जवाबी कार्रवाई के चलते लिया गया है।

US News: व्हाइट हाउस ने साफ किया है कि अमेरिका ने शुरुआत में सभी उन देशों पर 10 प्रतिशत टैरिफ लगाने का ऐलान किया था, जो अमेरिकी सामान पर ज्यादा टैक्स लगाते हैं। हालांकि बाद में यह फैसला अस्थायी रूप से टाल दिया गया क्योंकि 75 से अधिक देश अमेरिका के साथ नई व्यापारिक डील के लिए बातचीत करने सामने आए।

लेकिन चीन को इस छूट से बाहर रखा गया। इसकी वजह बताते हुए अमेरिकी सरकार ने कहा कि चीन ने जवाबी कार्रवाई करते हुए अमेरिका पर आर्थिक दबाव बनाने की कोशिश की। इसी के चलते अब उसे अमेरिकी बाजार में अपने उत्पाद भेजने पर भारी-भरकम टैरिफ का सामना करना पड़ रहा है, जिसकी दर 245 प्रतिशत तक जा रही है।

चीन को अलग क्यों रखा गया अमेरिकी टैरिफ नीति से?

फैक्ट शीट के मुताबिक, लिबरेशन डे के मौके पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उन देशों पर 10 प्रतिशत का टैरिफ लगाया जो अमेरिका के खिलाफ असमान व्यापारिक नीतियां अपना रहे थे। लेकिन जब इतने सारे देशों ने बातचीत की इच्छा जताई, तो अमेरिका ने टैरिफ लगाने के फैसले को रोके रखा – सिवाय चीन के, जिसने इसका जवाब टकराव से दिया।

चीन की चेतावनी

अमेरिका के इस कदम पर चीन ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने कहा,अगर अमेरिका वाकई बातचीत से हल चाहता है तो उसे दबाव बनाना, धमकी देना और ब्लैकमेल करना बंद करना चाहिए। 

लिन जियान का बयान उस समय आया जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने साफ शब्दों में कहा कि अब गेंद चीन के पाले में है। प्रेस सेक्रेटरी कैरोलिन लेविट ने एक प्रेस ब्रीफिंग में राष्ट्रपति का बयान पढ़ते हुए कहा, चीन को अब खुद तय करना है कि वह समझौते की मेज पर आना चाहता है या नहीं। अमेरिका इसके लिए तैयार है, लेकिन शर्तें चीन को भी समझनी होंगी।

दोनों देशों के बीच तनाव जारी

इस घटनाक्रम ने अमेरिका-चीन व्यापारिक रिश्तों को और जटिल बना दिया है। पहले ही कई अमेरिकी कंपनियां चीन से मैन्युफैक्चरिंग हटाकर अन्य देशों में निवेश की राह पकड़ रही हैं। वहीं, चीन ने भी हाल के महीनों में रूस और अन्य एशियाई देशों के साथ अपने आर्थिक संबंध मजबूत किए हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के टैरिफ से दोनों देशों के व्यापारियों पर असर पड़ेगा, लेकिन लॉन्ग टर्म में यह चीन की अर्थव्यवस्था को ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है। अमेरिका का बाजार अभी भी दुनिया के सबसे बड़े और अहम बाजारों में शामिल है, और उस तक पहुंच महंगी होने का असर चीनी निर्यातकों पर पड़ेगा।

अमेरिका का इशारा: हम तैयार हैं, लेकिन शर्तों के साथ

व्हाइट हाउस की तरफ से दिए गए संकेत यह बताते हैं कि अमेरिका बातचीत के लिए तैयार है, लेकिन वह इसे अपनी शर्तों पर ही चाहता है। चीन पर दबाव बनाए रखना फिलहाल अमेरिका की रणनीति का हिस्सा लगता है। उधर चीन कह रहा है कि वह भी किसी दबाव में नहीं झुकेगा और अगर अमेरिका ने इसी तरह टकराव की नीति अपनाई तो वह उसका जवाब देगा।

अमेरिका और चीन के बीच यह टैरिफ वॉर केवल आर्थिक मोर्चे की लड़ाई नहीं रह गई है, यह अब राजनीतिक और रणनीतिक समीकरणों का हिस्सा बनती जा रही है। दोनों देशों के बीच की यह खींचतान वैश्विक बाजारों को भी प्रभावित कर रही है, और आने वाले दिनों में इसका असर आम लोगों तक भी पहुंच सकता है।

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