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अकोला सांप्रदायिक हिंसा: सुप्रीम कोर्ट ने बनाई SIT, महाराष्ट्र पुलिस की पक्षपातपूर्ण जांच पर जताई नाराजगी

अकोला सांप्रदायिक हिंसा: सुप्रीम कोर्ट ने बनाई SIT, महाराष्ट्र पुलिस की पक्षपातपूर्ण जांच पर जताई नाराजगी

सुप्रीम कोर्ट ने अकोला दंगा मामले में SIT गठित करने का आदेश दिया। कोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस की पक्षपातपूर्ण जांच पर सख्त नाराजगी जताई और कहा कि पुलिस को वर्दी की गरिमा रखते हुए धर्म-जाति से ऊपर उठकर निष्पक्ष जांच करनी चाहिए।

Maharashtra: सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के अकोला जिले में मई 2023 में भड़की सांप्रदायिक हिंसा की जांच के लिए विशेष जांच दल (SIT) बनाने का आदेश दिया है। इस SIT में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को शामिल किया जाएगा ताकि जांच पूरी तरह निष्पक्ष और भरोसेमंद हो। अदालत ने कहा कि पुलिस की जिम्मेदारी सिर्फ कानून लागू करना है, न कि जाति और धर्म के आधार पर पक्षपात करना।

याचिकाकर्ता की गुहार और पुलिस की लापरवाही

यह आदेश 17 वर्षीय मोहम्मद अफजल मोहम्मद शरीफ की याचिका पर आया है। अफजल ने आरोप लगाया था कि दंगों के दौरान उन पर जानलेवा हमला हुआ, लेकिन पुलिस ने उनकी शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की। उन्होंने कहा कि उन्होंने 15 मई 2023 को अस्पताल में भर्ती रहते हुए पुलिस को बयान दर्ज कराया था, लेकिन न तो FIR दर्ज की गई और न ही जांच शुरू की गई। याचिकाकर्ता के मुताबिक पुलिस ने जानबूझकर मामले को दबाने की कोशिश की।

अकोला में कैसे भड़की थी हिंसा

मई 2023 में अकोला के पुराने शहर इलाके में एक सोशल मीडिया पोस्ट ने माहौल गरमा दिया। देखते ही देखते विवाद बढ़ा और सांप्रदायिक हिंसा फैल गई। इस दौरान विलास महादेवराव गायकवाड़ नामक युवक की मौत हो गई और कई लोग घायल हो गए। अफजल भी गंभीर रूप से घायल हुए। हिंसा इतनी तेजी से बढ़ी कि पुलिस हालात संभालने में नाकाम रही।

हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक की लड़ाई

अफजल ने पहले बॉम्बे हाई कोर्ट (नागपुर बेंच) में याचिका दायर की थी और पुलिस की निष्क्रियता पर सवाल उठाए थे। उन्होंने पुलिस अधिकारियों के खिलाफ सिविल और क्रिमिनल कार्रवाई की मांग की थी। लेकिन जुलाई 2024 में हाई कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी। इसके बाद अफजल ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां से उन्हें राहत मिली।

सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणियां

जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक अराधे की बेंच ने महाराष्ट्र पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि "वर्दी पहनने के बाद जाति और धर्म से ऊपर उठकर काम करना चाहिए।" कोर्ट ने कहा कि पुलिस को निष्पक्ष रहकर कानून का पालन करना होगा। अदालत ने यह भी माना कि अगर पुलिस पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाएगी तो पीड़ितों का न्याय में विश्वास खत्म हो जाएगा।

SIT में दोनों समुदायों के अफसर क्यों

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया कि SIT का गठन करते समय हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के वरिष्ठ अफसर शामिल किए जाएं। यह इसलिए अहम है ताकि जांच पर पक्षपात का आरोप न लगे और पीड़ितों को भरोसा हो कि सच सामने आएगा। यह पहली बार है जब अदालत ने किसी सांप्रदायिक दंगे की जांच के लिए ऐसी शर्त रखी है।

दंगों के पीछे की सच्चाई उजागर होगी

SIT के गठन से अब यह उम्मीद की जा रही है कि दंगों के पीछे की असली वजह और जिम्मेदार लोगों की पहचान हो सकेगी। कई बार देखा गया है कि सांप्रदायिक दंगों में जांच एकतरफा होती है और कमजोर पक्ष न्याय से वंचित रह जाता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से हालात बदल सकते हैं।

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