आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बेंगलुरु में कहा कि संगठन की स्थापना 1925 में हुई और तब पंजीकरण संभव नहीं था। उन्होंने स्पष्ट किया कि गैर-पंजीकृत आरएसएस कानूनी रूप से वैध है और इसे अदालतों और कानून ने मान्यता दी है।
New Delhi: आरएसएस (Rashtriya Swayamsevak Sangh) के पंजीकरण को लेकर कांग्रेस द्वारा लगातार सवाल उठाए जाते रहे हैं। हाल ही में कांग्रेस नेता प्रियांक खड़गे ने आरएसएस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि राष्ट्र की सेवा करने का दावा करने वाला संगठन क्यों अपंजीकृत है। इस पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बेंगलुरु में व्याख्यान श्रृंखला "संघ की यात्रा के 100 वर्ष: नए क्षितिज" में प्रतिक्रिया दी।
भागवत ने कहा कि आरएसएस की स्थापना 1925 में हुई थी, जो भारत की आज़ादी से बहुत पहले की बात है। उन्होंने पूछा कि क्या उस समय संगठन को ब्रिटिश सरकार के अधीन पंजीकृत कराने की उम्मीद रखना तर्कसंगत था। उन्होंने कहा, "क्या आप हमसे उम्मीद करते हैं कि हम उस समय ब्रिटिश सरकार के पास पंजीकरण कराते, जिनके खिलाफ हम काम कर रहे थे? स्वतंत्र भारत में कानून में पंजीकरण अनिवार्य नहीं है। गैर-पंजीकृत संगठनों को भी कानूनी दर्जा दिया गया है। इसलिए हमें इस श्रेणी में रखा गया है और एक संगठन के रूप में मान्यता दी गई है।"
हिंदू धर्म का उदाहरण
मोहन भागवत ने यह भी कहा कि कई चीजें पंजीकृत नहीं हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि हिंदू धर्म भी पंजीकृत नहीं है। उन्होंने स्पष्ट किया कि आयकर विभाग और अदालतों ने आरएसएस को व्यक्तियों का समूह माना है और संगठन को आयकर से छूट दी गई है।

भागवत ने यह भी बताया कि आरएसएस को तीन बार प्रतिबंधित किया गया, जिसका अर्थ है कि सरकार ने इसे मान्यता दी थी। उन्होंने कहा, "अगर हम अस्तित्व में नहीं होते, तो सरकार किस पर प्रतिबंध लगाती? हर बार अदालतों ने प्रतिबंध हटाया और आरएसएस को वैध संगठन के रूप में मान्यता दी।"
आरएसएस में सदस्यता
आरएसएस में केवल हिंदुओं को सदस्यता दी जाती है। मोहन भागवत ने कहा कि संघ में भगवा ध्वज को गुरु माना जाता है, लेकिन भारतीय तिरंगे के प्रति गहरा सम्मान है। उन्होंने कहा, "हम हमेशा अपने तिरंगे का सम्मान करते हैं, उसे श्रद्धांजलि देते हैं और उसकी रक्षा करते हैं।"
भागवत ने बताया कि ब्राह्मण, मुसलमान या ईसाई किसी भी संप्रदाय के लोग संघ की शाखाओं में आ सकते हैं, बशर्ते वे अपनी "अलगाव" भावना को त्यागकर "भारत माता के पुत्र" के रूप में आएं। उन्होंने जोर दिया कि संघ में कोई धर्म या जाति आधारित भेदभाव नहीं है, सभी को समान दर्जा मिलता है। उन्होंने कहा, "हम उनकी गिनती नहीं करते और यह नहीं पूछते कि वे कौन हैं। हम सभी भारत माता के पुत्र हैं। संघ इसी तरह काम करता है।"











