बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सीमांचल क्षेत्र में AIMIM फिर प्रमुख चर्चा में है। मुस्लिम वोटों और स्थानीय प्रतिनिधित्व के सवाल पर पार्टी RJD और कांग्रेस को कड़ी चुनौती दे रही है। किशनगंज, पूर्णिया और कटिहार की कई सीटों पर मुकाबला बेहद दिलचस्प हो गया है।
Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सीमांचल इलाके की राजनीतिक तस्वीर एक बार फिर दिलचस्प होती दिखाई दे रही है। इस बार भी चर्चा के केंद्र में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM है। 2020 के विधानसभा चुनाव में AIMIM ने सीमांचल की कई सीटों पर अप्रत्याशित सफलता हासिल कर राजनीतिक समीकरणों को बदल दिया था। अब 2025 के चुनाव में यह पार्टी एक बार फिर उसी रणनीति के साथ मैदान में उतर रही है। इससे महागठबंधन, खासकर RJD और कांग्रेस, को चुनौती मिल रही है क्योंकि सीमांचल का बड़ा वोट बैंक मुस्लिम समुदाय से आता है और AIMIM उसी पर सीधा प्रभाव डालती है।
सीमांचल की राजनीति क्यों है खास
बिहार का सीमांचल क्षेत्र कटिहार, किशनगंज, पूर्णिया और अररिया जिलों को मिलाकर बनता है। यहां कई सीटों पर मुस्लिम आबादी 40 से 70 प्रतिशत तक है। इस कारण यहां वोटिंग पैटर्न अक्सर धार्मिक और सामाजिक मुद्दों पर आधारित रहता है। लंबे समय तक यहां RJD और कांग्रेस को मजबूत समर्थन मिलता रहा। लेकिन 2020 में AIMIM के उभार ने यह परंपरागत राजनीतिक संतुलन बदल दिया। उस चुनाव में AIMIM ने सीमांचल में 14 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और उनमें से 5 सीटें जीत ली थीं। यह जीत सिर्फ चुनावी आंकड़ा नहीं थी, बल्कि एक संकेत थी कि मुस्लिम वोट अब पूरी तरह महागठबंधन के साथ नहीं रह गए हैं।
ओवैसी की रणनीति
AIMIM इस बार सीमांचल में 15 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इनमें किशनगंज और पूर्णिया में चार-चार, कटिहार में पांच और अररिया में दो सीटें शामिल हैं। पार्टी का फोकस सीधा है — मुस्लिम मतदाताओं की नाराजगी और राजनीतिक प्रतिनिधित्व का सवाल उठाना। पार्टी अपने चुनाव प्रचार में यह बात बार-बार दोहरा रही है कि RJD और कांग्रेस ने मुस्लिमों को सिर्फ वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया है और उनके लिए न तो विकास किया और न ही राजनीतिक नेतृत्व में उचित प्रतिनिधित्व दिया।
AIMIM के नेता यह सवाल सीधे जनता के बीच रख रहे हैं कि जब बिहार में 2 प्रतिशत आबादी वाले समुदाय से डिप्टी CM बनाया जा सकता है, तो 18 प्रतिशत आबादी वाले मुस्लिम समाज से मुख्यमंत्री क्यों नहीं। यह सवाल सीमांचल के कई इलाकों में तेज़ी से प्रभाव डाल रहा है। खासकर युवा मतदाता AIMIM की इस लाइन से प्रभावित हो रहे हैं।
किशनगंज: ओवैसी का मजबूत गढ़
किशनगंज जिला AIMIM के सबसे मजबूत इलाकों में गिना जाता है। 2020 में पार्टी ने यहां बहादुरगंज और कोचाधामन दोनों सीटों पर जीत दर्ज की थी। इस बार भी पार्टी ने चारों सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं।

कोचाधामन सीट पर मुकाबला बेहद रोचक हो गया है। यहां AIMIM ने सरवर आलम को मैदान में उतारा है, जबकि राजद ने टिकट बदलकर नया उम्मीदवार दिया है। 68 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाली इस सीट पर चुनाव का पूरा फोकस पहचान और नेतृत्व की राजनीति पर है। बहादुरगंज में AIMIM के तौसीफ आलम और कांग्रेस के मुसब्बिर आलम के बीच सीधा मुकाबला दिखाई दे रहा है। किशनगंज और ठाकुरगंज में इस बार प्रतिस्पर्धा कठिन है, लेकिन पार्टी ने अपना जनाधार बनाए रखने की पूरी कोशिश की है।
पूर्णिया: अमौर और बायसी में AIMIM का प्रभाव
पूर्णिया जिले में AIMIM की वास्तविक ताकत अमौर और बायसी सीटों पर है। अमौर में 2020 में अख्तरूल ईमान ने 52 हजार से अधिक वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी। इस बार भी पार्टी ने उन पर भरोसा जताया है। यहां मुकाबला त्रिकोणीय है क्योंकि कांग्रेस और जदयू दोनों मजबूत दावेदारों के साथ मैदान में हैं।
बायसी सीट पर पिछले चुनाव में AIMIM के रूकनुद्दीन जीत गए थे, लेकिन अब वह RJD में शामिल हो चुके हैं और उन्हें टिकट भी नहीं मिला। इससे स्थिति बदल गई है। AIMIM ने यहां गुलाम सरवर को उम्मीदवार बनाया है। भाजपा के विनोद यादव और राजद के नए उम्मीदवार के साथ यह सीट प्रतिस्पर्धात्मक हो गई है।
कसबा और धमदाहा जैसी सीटों पर AIMIM महागठबंधन के वोट बैंक को सीधे चुनौती दे रही है। यहां की राजनीति अब सिर्फ विकास के मुद्दों पर नहीं, बल्कि सम्मान और प्रतिनिधित्व की बहस पर टिकी है।
कटिहार: नए दांव
कटिहार जिले में AIMIM पांच सीटों पर चुनाव लड़ रही है। प्राणपुर में 2020 में पार्टी को बहुत कम वोट मिले थे। लेकिन इस बार उसने आफताब आलम को उतारकर चुनाव में परिवर्तन लाने की कोशिश की है। कटिहार, बरारी, कदवा और बलरामपुर में भी AIMIM के उम्मीदवार महागठबंधन के पारंपरिक समीकरणों में सेंध लगा सकते हैं।
अररिया और जोकीहाट: सबसे दिलचस्प मुकाबला
अररिया जिले की दोनों मुस्लिम बहुल सीटें AIMIM के लिए खास महत्व रखती हैं। अररिया सीट पर मंजूर आलम पार्टी के प्रत्याशी हैं। 2020 में कांग्रेस यहां बड़ी जीत हासिल की थी, लेकिन इस बार मुकाबला पूरी तरह खुला है।
जोकीहाट का चुनाव सीमांचल का सबसे हाई-प्रोफाइल मुकाबला माना जा रहा है। यहां तस्लीमुद्दीन के दोनों बेटे आमने-सामने हैं। राजद से शाहनवाज आलम, जनसुराज से सरफराज आलम, AIMIM से मुर्शीद आलम और जदयू से मंज़र आलम — यानी मुकाबला चौतरफा हो गया है। ऐसी स्थिति में थोड़ा-सा भी वोट ट्रांसफर परिणाम को पलट सकता है।
महागठबंधन की चुनौती
महागठबंधन के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि मुस्लिम वोट अब एकतरफा उनकी ओर नहीं हैं। AIMIM न सिर्फ वोट मांग रही है, बल्कि प्रतिनिधित्व, सम्मान और राजनीतिक नेतृत्व का मुद्दा उठा रही है। यह बात जमीनी स्तर पर असर डाल रही है। RJD और कांग्रेस को इस चुनौती से निपटने के लिए स्थानीय स्तर पर तेज़ और भावनात्मक अभियान चलाना होगा, वरना 2025 में सीमांचल के परिणाम फिर चौंका सकते हैं।













