अमेरिका ने H-1B वीजा पर नया शुल्क लगाया। भारतीय पेशेवर और अमेरिकी टेक कंपनियां प्रभावित। कंपनियों ने यात्रा पर रोक लगाई। शुल्क केवल नए वीजा पर लागू होगा। टेक सेक्टर में विदेशी विशेषज्ञों की लागत बढ़ेगी।
Trump: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने हाल ही में H-1B वीजा पर नए शुल्क लागू करने का एलान किया है। इस फैसले के तहत H-1B वीजा पर 1 लाख डॉलर तक का शुल्क लगाया जाएगा। H-1B वीजा अमेरिका में काम करने वाले विदेशी पेशेवरों के लिए अहम है, खासकर टेक्नोलॉजी और इंजीनियरिंग सेक्टर में। इस घोषणा के बाद प्रवासी कर्मचारी और उनकी कंपनियों में भारी असमंजस की स्थिति बन गई है।
सिलिकॉन वैली की कई बड़ी टेक कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को सलाह दी है कि वे अमेरिका से बाहर यात्रा न करें। कंपनियों का डर है कि अगर कर्मचारी विदेश यात्रा करते हैं तो वापस लौटने में समस्याएं आ सकती हैं। हालांकि व्हाइट हाउस ने बाद में स्पष्ट किया कि यह शुल्क केवल नए वीजा आवेदन पर और एक बार ही लागू होगा।
अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है असर
विशेषज्ञों का कहना है कि H-1B वीजा पर यह नया शुल्क अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए नकारात्मक साबित हो सकता है। टेक कंपनियां इंजीनियर, वैज्ञानिक और आईटी विशेषज्ञों को लाने के लिए इस वीजा पर निर्भर रहती हैं। अर्थशास्त्री आताकान बाकिस्कन का कहना है कि विदेशी प्रतिभा लाना अब मुश्किल होगा, जिससे उत्पादकता और विकास दर पर असर पड़ेगा।
उनकी रिपोर्ट में बताया गया है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था की विकास दर 2% होने का अनुमान था, लेकिन अब इसे घटाकर 1.5% कर दिया गया है। ब्रोकरेज फर्म XTB की रिसर्च डायरेक्टर कैथलीन ब्रूक्स ने कहा कि अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल और एप्पल जैसी कंपनियों में बड़ी संख्या में H-1B वीजा कर्मचारी कार्यरत हैं। टेक सेक्टर तो अतिरिक्त खर्च उठा सकता है, लेकिन हेल्थकेयर, शिक्षा और रिसर्च जैसे क्षेत्र इसके लिए चुनौतीपूर्ण होंगे।
भारतीयों को सबसे अधिक फायदा
H-1B वीजा प्रोग्राम में भारतीय पेशेवर सबसे आगे हैं। करीब 70% वीजा भारतीयों को मिलते हैं। इसी वजह से गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और IBM जैसी कंपनियों में भारतीय मूल के CEO हैं। केवल टेक सेक्टर ही नहीं, बल्कि अमेरिका में डॉक्टरों और रिसर्च विशेषज्ञों में भी लगभग 6% भारतीय मूल के पेशेवर हैं। ऐसे में यह नया शुल्क सीधे भारत से जुड़े पेशेवरों और उनकी कंपनियों पर असर डाल सकता है।
अमेरिकी कंपनियों पर बढ़ेगा दबाव
विशेषज्ञों का मानना है कि शुरुआत में यह बदलाव भारत के पेशेवरों के लिए चुनौती बन सकता है, लेकिन असली दबाव अमेरिकी कंपनियों पर पड़ेगा। NASSCOM ने चेताया है कि इससे कई प्रोजेक्ट अटक सकते हैं और क्लाइंट नई शर्तें लागू कर सकते हैं। भारतीय आईटी कंपनियां जैसे TCS और इंफोसिस पहले से ही अमेरिका में लोकल वर्कफोर्स बढ़ा रही हैं और कई प्रोजेक्ट्स को भारत या अन्य देशों में शिफ्ट कर रही हैं।
CIEL के एचआर के. आदित्य नारायण मिश्रा का कहना है कि कंपनियां अब वीजा की बढ़ी लागत से बचने के लिए रिमोट कॉन्ट्रैक्टिंग, ऑफशोर डिलीवरी और गिग वर्कर्स पर अधिक भरोसा कर सकती हैं। इससे अमेरिका में स्थायी कर्मचारियों की संख्या पर भी असर पड़ सकता है।
टेक्नोलॉजी सेक्टर की चुनौतियां
H-1B वीजा पर बढ़ा शुल्क टेक्नोलॉजी सेक्टर के लिए एक गंभीर चुनौती बन सकता है। अमेरिका में कई बड़े प्रोजेक्ट्स में विदेशी विशेषज्ञों की जरूरत होती है। यह शुल्क विदेशी कर्मचारियों को लाने की लागत बढ़ा देगा और कंपनियों को या तो स्थानीय कर्मचारियों पर निर्भर रहना पड़ेगा या परियोजनाओं को धीमा करना पड़ेगा। इससे अमेरिकी टेक सेक्टर की प्रतिस्पर्धा पर भी असर पड़ सकता है।