भारतीय स्टेट बैंक (SBI), बैंक ऑफ बड़ौदा और एचडीएफसी बैंक ने हाल ही में ब्याज दरों में कटौती की घोषणा की है। इन कटौतियों का उद्देश्य ऋण को सस्ता बनाकर उपभोक्ता खर्च और निवेश को बढ़ावा देना है, जिससे अर्थव्यवस्था में मांग को गति मिल सके।
भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों को साफ संदेश दिया है कि हाल ही में नीतिगत ब्याज दरों में की गई कटौती का सीधा लाभ आम ग्राहकों तक तुरंत पहुंचना चाहिए। आरबीआई के जून 2025 बुलेटिन में प्रकाशित एक लेख में यह बात प्रमुखता से उठाई गई है। आरबीआई ने बैंकों को कहा कि 0.50 प्रतिशत की रेपो रेट कटौती के बाद बैंकों को चाहिए कि वे कर्ज पर लगने वाली ब्याज दरों में भी उतनी ही तेजी से कटौती करें, ताकि ग्राहक इसका लाभ उठा सकें।
वित्तीय माहौल फिलहाल अनुकूल
जून बुलेटिन के अनुसार, देश की मौजूदा वित्तीय स्थिति रेपो रेट में की गई कटौती को ग्राहकों तक पहुंचाने के लिए पूरी तरह से अनुकूल है। बुलेटिन में छपे लेख में कहा गया है कि दरों में कटौती के प्रभावी प्रसारण के लिए बाजार की स्थिति सकारात्मक बनी हुई है। इसमें यह भी बताया गया है कि फरवरी से अप्रैल 2025 के बीच बैंकों द्वारा की गई दरों में कटौती का फायदा अब धीरे-धीरे ग्राहकों को मिल रहा है। कई प्रमुख बैंक जैसे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ बड़ौदा और एचडीएफसी बैंक ने तो रेपो कटौती के कुछ ही दिनों के भीतर अपने कर्ज की दरें घटा दी थीं।
रेपो रेट में आधे प्रतिशत की कटौती
आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने जून 2025 की समीक्षा बैठक में रेपो रेट में 0.50 प्रतिशत की कटौती का निर्णय लिया था। इसके तहत रेपो रेट को घटाकर 6.00 प्रतिशत किया गया। रेपो रेट वह दर होती है जिस पर आरबीआई बैंकों को अल्पकालिक ऋण देता है। रेपो रेट घटने का मतलब है कि बैंकों के लिए आरबीआई से पैसा उधार लेना सस्ता हो जाता है, और इसका असर ग्राहकों को दिए जाने वाले कर्ज की ब्याज दरों पर पड़ता है।
बैंकों ने तेजी से दरें घटाईं
आरबीआई की अपील और मौद्रिक नीति निर्णय के बाद कई बैंकों ने अपने कर्ज की दरों में तेजी से कटौती की है। खासकर रेपो लिंक्ड लेंडिंग रेट (RLLR) या एक्सटर्नल बेंचमार्क लिंक्ड रेट (EBLR) वाले लोन पर ब्याज दरों में गिरावट देखने को मिली है। बैंक ऑफ बड़ौदा और एचडीएफसी बैंक जैसे बैंकों ने 6 जून को हुई रेपो कटौती के कुछ ही दिन बाद अपने कर्ज उत्पादों की दरों में लगभग इतनी ही कटौती कर दी थी।
सीआरआर में भी 1 प्रतिशत की कटौती
रेपो रेट के साथ-साथ आरबीआई ने नकद आरक्षित अनुपात (CRR) में भी 100 बेसिस पॉइंट यानी 1 प्रतिशत की कटौती करने का फैसला किया था। सीआरआर वह राशि होती है जो बैंकों को अपने कुल जमा का एक निश्चित हिस्सा आरबीआई के पास रखना होता है। जून बुलेटिन के अनुसार, यह कटौती चरणबद्ध तरीके से लागू की जाएगी और इसका असर दिसंबर 2025 तक बैंकिंग सिस्टम पर दिखेगा। इससे करीब 2.5 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त तरलता प्रणाली में आ सकती है।
जमा दरों में भी गिरावट का असर
सिर्फ लोन की दरों में ही नहीं, बल्कि जमा दरों में भी बदलाव देखने को मिला है। फरवरी से अप्रैल 2025 की अवधि में घरेलू सावधि जमा पर नई और पहले से मौजूद दरों में भी कमी दर्ज की गई है। आंकड़ों के मुताबिक, इस दौरान नई सावधि जमाओं की औसत ब्याज दर 27 बेसिस पॉइंट और बकाया जमाओं की दर में 1 बेसिस पॉइंट की गिरावट आई है। इससे साफ है कि ब्याज दरों के मोर्चे पर बैंकिंग प्रणाली में व्यापक बदलाव हो रहा है।
सरकार और आरबीआई की सख्ती
आरबीआई की तरफ से बैंकों को यह सलाह देना यह भी दर्शाता है कि अब नियामक संस्थाएं बैंकों के रवैये पर निगरानी और सख्ती बढ़ा रही हैं। ग्राहकों तक रेपो रेट कटौती का फायदा समय पर नहीं पहुंचाना एक बड़ा मुद्दा रहा है, जिसे अब आरबीआई नजरअंदाज नहीं कर रही। यही कारण है कि इस बार स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि कटौती का लाभ तुरंत ग्राहकों को देना चाहिए।