बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सुगबुगाहट अभी से शुरू हो चुकी है और इस बार समीकरण पहले से कहीं ज़्यादा उलझे हुए नजर आ रहे हैं। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की अगुवाई में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जहां शांत, संयमित और पूरी तैयारी के साथ नजर आ रहे हैं, वहीं महागठबंधन में सबकुछ ठीक-ठाक नहीं दिख रहा।
Bihar Politics: बिहार की राजनीति एक बार फिर दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने की बात बार-बार दोहराई जा रही है, और सत्तारूढ़ दलों के बीच इस पर बाहरी तौर पर सहमति भी नजर आ रही है। हालांकि, असली चुनौती अब विपक्षी खेमे में उभरती दिख रही है। लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के हालिया पटना दौरे और उनके बयानों ने संकेत दिए हैं कि कहीं कांग्रेस 2010 की तरह 'अलग राह' पर चलने की तैयारी में तो नहीं है।
अगर ऐसा होता है तो तेजस्वी यादव को अपनी रणनीति बेहद सतर्कता से तय करनी होगी। अब तक की सियासी गतिविधियों और तैयारियों से यह स्पष्ट है कि 2025 का चुनाव वर्ष 2000 और 2010 के बाद तीसरी बार ऐसा हो सकता है, जब बिहार की सभी सीटों पर कोई एक दल या कई विपक्षी दल अलग-अलग चुनाव मैदान में उतर सकते हैं।
कांग्रेस की 2010 वाली 'हिम्मत' फिर से दोहराने की तैयारी?

बिहार की राजनीति में यह बात किसी से छिपी नहीं है कि कांग्रेस के पास राज्य में न तो ज़मीनी पकड़ रही है और न ही स्थायी वोट बैंक। फिर भी 2010 में पार्टी ने अपने बूते सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ा था और परिणाम बेहद निराशाजनक रहे। केवल चार सीटों पर जीत मिली और 216 सीटों पर जमानत तक जब्त हो गई थी।
अब 2025 में फिर से कांग्रेस वैसी ही आक्रामक मुद्रा में दिख रही है, लेकिन इस बार सिर्फ बातें नहीं, कार्य भी कर रही है। नए प्रभारी की नियुक्ति, प्रदेश अध्यक्ष के रूप में दलित चेहरे राजेश राम की ताजपोशी और जिलाध्यक्षों में पिछड़ी जातियों का बढ़ता प्रतिनिधित्व इस बात का संकेत दे रहे हैं कि कांग्रेस किसी भी कीमत पर अपनी उपयोगिता साबित करने के लिए तैयार है, चाहे सीटों के लिए राजद पर दबाव बनाना पड़े या फिर 243 सीटों पर अकेले उतरना क्यों न पड़े।
राजद के लिए मुश्किलें बढ़ा सकती है कांग्रेस की ‘स्वतंत्र रणनीति’
तेजस्वी यादव अब तक महागठबंधन के नैतिक नेता माने जाते रहे हैं, लेकिन अगर कांग्रेस खुद को उनके समकक्ष मानकर ‘डील’ की जगह ‘डिक्टेट’ करने की कोशिश करती है, तो यह अंदरूनी घर्षण का कारण बन सकता है। लोकसभा चुनाव 2024 में भी कांग्रेस ने कई सीटों पर नाराजगी जताई थी, लेकिन तब वह सिर्फ 'बातें' कर रही थी, इस बार वह 'जमीनी तैयारी' कर रही है।
तेजस्वी के लिए यह स्थिति 2010 के जदयू-भाजपा गठबंधन की याद दिला सकती है, जब मतों का बंटवारा विपक्ष को भारी पड़ा था। इस बार भी अगर कांग्रेस और राजद अलग-अलग चुनाव लड़ते हैं, तो नीतीश कुमार को स्पष्ट बहुमत मिलने की संभावना बन सकती है।
जन सुराज और ‘हिंद सेना’ भी बनाएंगे समीकरण रोचक

प्रशांत किशोर की 'जन सुराज पार्टी' पहले ही साफ कर चुकी है कि वह सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। अब शिवदीप लांडे की 'हिंद सेना' के मैदान में उतरने से मुकाबला और रोचक हो गया है। दोनों पार्टियां विशेष रूप से युवा और पहली बार वोट देने वालों को टारगेट कर रही हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि ये नए चेहरे किसके वोट काटते हैं, NDA के या विपक्ष के।
विपक्ष की अंदरूनी लड़ाई के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भाजपा को बहुत कुछ कहने की ज़रूरत नहीं पड़ रही। वे बस अपने गठबंधन को संगठित रख कर, विकास कार्यों और जातीय समीकरणों के दम पर चुनावी मोर्चे पर डटे रहने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।












