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बिहार में NRC की तर्ज पर वोटर वेरिफिकेशन? ओवैसी का गंभीर आरोप, चुनाव आयोग में मची हलचल

बिहार में NRC की तर्ज पर वोटर वेरिफिकेशन? ओवैसी का गंभीर आरोप, चुनाव आयोग में मची हलचल

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले चुपचाप एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स) लागू किया जा रहा है। 

नई दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सियासी तापमान चढ़ गया है और इसी बीच एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने चुनाव आयोग पर बड़ा आरोप लगाकर नई बहस छेड़ दी है। ओवैसी ने दावा किया कि चुनाव आयोग बिहार में चुपचाप नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (NRC) की तर्ज पर एक प्रक्रिया लागू कर रहा है, जिससे लाखों लोगों के वोटिंग अधिकार प्रभावित हो सकते हैं।

ओवैसी का कहना है कि चुनाव आयोग मतदाता सूची को शुद्ध करने के नाम पर ऐसा कदम उठा रहा है, जिसमें हर नागरिक को अपने जन्म और माता-पिता के जन्म से जुड़ा प्रमाण दिखाना होगा। खासकर जिनकी जन्मतिथि जुलाई 1987 से पहले की है, उन्हें जन्मतिथि और जन्मस्थान बताने वाले 11 में से किसी एक दस्तावेज को पेश करना होगा।

गरीब और पिछड़े इलाकों के लिए भारी चुनौती

ओवैसी ने सोशल मीडिया पोस्ट में चेतावनी दी कि बिहार के सीमांचल जैसे गरीब और बाढ़ प्रभावित इलाकों में रहने वाले लोग पहले ही गरीबी और बेरोजगारी से जूझ रहे हैं। वहां के अधिकतर लोगों के पास अपने माता-पिता के जन्म प्रमाण पत्र या अन्य जरूरी कागजात नहीं हैं। ऐसे में उनसे इस तरह के दस्तावेज मांगना ‘क्रूर मजाक’ है।

उन्होंने लिखा, अनुमान के मुताबिक केवल तीन चौथाई जन्म ही पंजीकृत होते हैं, वो भी कई बार सरकारी दस्तावेजों में भारी गलतियों के साथ। ऐसे में गरीब लोग, जिनके पास दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से है, उनसे माता-पिता के जन्म प्रमाण मांगना अमानवीय है।

1987 से 2004 के बीच जन्म वालों पर भी सख्ती

ओवैसी ने आगे बताया कि अगर किसी व्यक्ति का जन्म 1987 से 2004 के बीच हुआ है, तो उसे न सिर्फ अपना जन्म प्रमाण पत्र देना होगा बल्कि माता-पिता में से किसी एक के जन्म प्रमाण से जुड़ा दस्तावेज भी पेश करना होगा। अगर माता या पिता में से कोई एक भारतीय नागरिक नहीं है तो फिर उन्हें पासपोर्ट और वीजा जैसे दस्तावेज भी दिखाने होंगे।

ओवैसी ने सवाल उठाया कि जब विधानसभा चुनाव बस कुछ महीने दूर हैं, तो इतनी बड़ी आबादी में इस तरह की कड़ी जांच प्रक्रिया को निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से पूरा करना लगभग नामुमकिन है।

लाल बाबू हुसैन केस का दिया हवाला

एआईएमआईएम प्रमुख ने अपनी दलील के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट का उदाहरण भी दिया। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने लाल बाबू हुसैन केस में साफ कहा था कि किसी व्यक्ति का नाम मतदाता सूची में शामिल होने के बाद बिना उचित प्रक्रिया के उसे हटाया नहीं जा सकता। ओवैसी ने लिखा कि अगर चुनाव आयोग किसी को वोटर लिस्ट से हटाता है, तो पहले उसे नोटिस देना और सुनवाई का अवसर देना जरूरी है, वरना यह पूरी तरह असंवैधानिक होगा।

ओवैसी ने चुनाव आयोग पर भरोसा कमजोर होने की आशंका जताई। उन्होंने कहा कि अगर इस तरह के कदमों से लाखों लोग वोट देने से वंचित हो जाएंगे तो इसका असर सीधा जनता के विश्वास पर पड़ेगा। ओवैसी ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग NRC जैसे फार्मूले को बिना स्पष्ट कानूनी प्रक्रिया के लागू करने की कोशिश कर रहा है, जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक साबित होगा।

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से भी अपील की कि वे चुनाव आयोग को निर्देश दें कि किसी भी तरह की नागरिकता सत्यापन प्रक्रिया को पारदर्शी और संविधान सम्मत बनाया जाए, ताकि किसी भारतीय नागरिक का हक ना छीना जाए।

वोटर वेरिफिकेशन या एनआरसी?

हालांकि चुनाव आयोग ने इस मुद्दे पर अभी तक कोई औपचारिक सफाई नहीं दी है, लेकिन ओवैसी के आरोपों ने बिहार चुनाव से पहले राजनीतिक माहौल गर्म कर दिया है। सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे को लेकर तीखी बहस चल रही है। कई लोगों का मानना है कि वोटर लिस्ट को दुरुस्त करने के लिए कुछ सख्त कदम जरूरी हैं, लेकिन ओवैसी जैसे नेताओं का तर्क है कि यह कदम NRC जैसे विवादास्पद मसले का रूप ले सकता है और गरीब तबके को बुरी तरह प्रभावित करेगा।

बिहार में सीमांचल समेत कई इलाकों में बाढ़, विस्थापन और गरीबी की वजह से कागज-पत्रों का अभाव आम बात है। ऐसे में अगर चुनाव आयोग अपने दिशा-निर्देशों में लचीलापन नहीं दिखाता तो लाखों लोगों के नाम वोटर लिस्ट से कटने की आशंका बन सकती है।

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