बिना डॉक्टर की सलाह के दवा लेना या गलत डोज़ में दवा खाना सेहत के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है। फार्मासिस्ट नरेंद्र शर्मा के अनुसार, इससे ड्रग रेजिस्टेंस, ओवरडोज़ और नकली दवाओं के सेवन का खतरा बढ़ता है। सही दवा हमेशा डॉक्टर की सलाह और रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट की निगरानी में ही लेनी चाहिए।
Self medication: गाजियाबाद के जिला एमएमजी अस्पताल के फार्मासिस्ट नरेंद्र शर्मा ने बताया कि आजकल लोग सिरदर्द, बुखार या खांसी-जुकाम जैसी आम बीमारियों में बिना डॉक्टर की सलाह के खुद ही दवा ले रहे हैं, जो बेहद खतरनाक ट्रेंड बन गया है। गलत दवा या गलत डोज़ से ड्रग रेजिस्टेंस, एलर्जी और ओवरडोज जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं। शर्मा ने कहा कि फार्मासिस्ट की जिम्मेदारी है कि बिना पर्चे दवा न दें और मरीजों को सही समय व मात्रा में दवा लेने की जानकारी दें।
खुद से दवा खाने का चलन क्यों बढ़ा
फार्मासिस्ट नरेंद्र शर्मा कहते हैं कि लोगों में अब छोटे-मोटे रोगों को लेकर डॉक्टर के पास जाने की आदत कम हो गई है। बुखार या सिरदर्द हुआ नहीं कि मेडिकल स्टोर से पैरासिटामोल या कोई एंटीबायोटिक दवा ले ली जाती है।
कई लोग अपने पुराने अनुभव या किसी परिचित की सलाह के आधार पर भी दवा खरीद लेते हैं। इसके अलावा, गूगल और सोशल मीडिया पर उपलब्ध ढेरों ‘स्वास्थ्य सलाहें’ भी लोगों को खुद इलाज करने के लिए प्रेरित करती हैं।
गलत डोज़ लेना क्यों है नुकसानदेह

नरेंद्र शर्मा के मुताबिक, अगर किसी दवा को पांच दिन तक खाने की जरूरत है और कोई व्यक्ति उसे तीन दिन में ही बंद कर देता है या सात दिन तक खाता रहता है, तो दोनों ही स्थितियां नुकसानदायक हैं।
एंटीबायोटिक दवाओं के साथ यह समस्या सबसे ज्यादा देखने को मिलती है। जब लोग इनका सेवन बिना जरूरत या गलत अवधि तक करते हैं, तो शरीर में ड्रग रेजिस्टेंस यानी दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है। इसका मतलब यह है कि एक समय के बाद दवाएं शरीर पर असर करना बंद कर देती हैं।
यह स्थिति बेहद खतरनाक होती है क्योंकि आगे चलकर किसी गंभीर संक्रमण के दौरान सही दवा देने पर भी शरीर उस पर प्रतिक्रिया नहीं करता।
फार्मासिस्ट की भूमिका क्यों जरूरी है
भारत में कई दवाएं आसानी से ओवर द काउंटर यानी बिना पर्ची के मिल जाती हैं। फार्मासिस्ट नरेंद्र शर्मा का मानना है कि इस पर सख्त नियम लागू होना चाहिए।
फार्मासिस्ट की सबसे बड़ी भूमिका यही है कि वह मरीज को सही जानकारी दे। दवा कब, कितनी मात्रा में और कितने दिन तक लेनी है, यह बताना जरूरी है। अगर लोग फार्मासिस्ट की सलाह मानें तो ओवरडोज या गलत दवा लेने की घटनाएं काफी हद तक कम हो सकती हैं।
वे यह भी कहते हैं कि सरकार को ऐसे कानून बनाने चाहिए, जिससे कोई भी मेडिकल स्टोर बिना डॉक्टर की पर्ची के एंटीबायोटिक या स्ट्रॉन्ग मेडिसिन न दे सके। इससे न सिर्फ लोगों की सेहत सुरक्षित रहेगी, बल्कि दवाओं का दुरुपयोग भी घटेगा।
ऑनलाइन दवाएं खरीदने में कितनी सुरक्षा है

डिजिटल युग में अब दवाएं भी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से खरीदी जाने लगी हैं। नरेंद्र शर्मा कहते हैं कि ऑनलाइन दवा खरीदना सुरक्षित तो है, लेकिन सावधानी जरूरी है।
कई बार लोग सोशल मीडिया या किसी अनजान वेबसाइट के लिंक पर क्लिक करके दवा ऑर्डर कर लेते हैं। ऐसी स्थिति में नकली या घटिया गुणवत्ता की दवाएं मिलने का खतरा रहता है।
इसलिए हमेशा उन्हीं वेबसाइटों से दवा खरीदनी चाहिए जो CDSCO (केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन) से रजिस्टर्ड हों। उन्होंने बताया कि असली और प्रमाणित वेबसाइटों पर दवा की जानकारी, बैच नंबर और निर्माता का पूरा विवरण दर्ज होता है।
नकली दवाओं की पहचान कैसे करें
नरेंद्र शर्मा बताते हैं कि जब भी आप मेडिकल स्टोर से दवा लें, तो सबसे पहले उसकी पैकेजिंग को ध्यान से देखें। अगर पैकिंग फटी हुई, फीकी या खराब स्थिति में है तो वह दवा न खरीदें।
हर दवा के पैक पर एक बैच नंबर और एक्सपायरी डेट जरूर लिखी होती है। इसे जांचना बेहद जरूरी है। आजकल कई दवा कंपनियां अपने उत्पाद पर QR कोड भी देती हैं। इसे मोबाइल से स्कैन करके दवा की असलियत जांची जा सकती है।
अगर किसी दवा पर यह जानकारी नहीं दी गई है या पैकिंग बहुत पुरानी लगती है, तो उस दवा से दूर रहना ही बेहतर है।
क्यों जरूरी है सही जानकारी और जागरूकता
भारत में आज भी बहुत से लोग मामूली बीमारियों को हल्के में लेते हैं और बिना विशेषज्ञ की राय के दवा खा लेते हैं। लेकिन ऐसा करना शरीर के लिए धीरे-धीरे नुकसानदायक साबित होता है।
फार्मासिस्ट नरेंद्र शर्मा कहते हैं कि छोटी बीमारी को नजरअंदाज करना और बड़ी बीमारी का खुद इलाज करना दोनों ही गलत हैं। दवा का सही उपयोग तभी संभव है जब वह डॉक्टर की सलाह और फार्मासिस्ट की निगरानी में ली जाए।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ लगातार यह चेतावनी दे रहे हैं कि खुद से दवा लेने का चलन न केवल व्यक्ति बल्कि पूरे समाज के लिए खतरा बन सकता है। क्योंकि जब दवाएं असर करना बंद कर देंगी, तो इलाज और मुश्किल हो जाएगा।













