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CII अपडेट से फाइनेंशियल प्लानिंग खतरे में? जानिए सरकार की नई चाल

CII अपडेट से फाइनेंशियल प्लानिंग खतरे में? जानिए सरकार की नई चाल

इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने वित्त वर्ष 2025-26 (असेसमेंट ईयर 2026-27) के लिए कॉस्ट इंफ्लेशन इंडेक्स (CII) जारी कर दिया है। यह इंडेक्स महंगाई के आधार पर किसी असेट की खरीद कीमत को समायोजित करने में मदद करता है, जिससे टैक्सेबल कैपिटल गेन की राशि घट जाती है।

अगर आपने हाल ही में मकान बेचा है या बेचने की योजना बना रहे हैं, तो यह खबर आपके लिए अहम है। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए कॉस्ट इंफ्लेशन इंडेक्स यानी CII का नया आंकड़ा जारी कर दिया है। यह आंकड़ा उस फॉर्म्युला की तरह है जिससे यह तय होता है कि किसी संपत्ति को बेचने पर कितना टैक्स देना होगा।

CII से तय होती है टैक्स की गणना

कॉस्ट इंफ्लेशन इंडेक्स का इस्तेमाल किसी संपत्ति की खरीद लागत को महंगाई के अनुसार सुधारने में किया जाता है। जब कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति जैसे प्लॉट, मकान या फ्लैट को बेचता है और उसे उससे मुनाफा होता है, तो उस मुनाफे पर कैपिटल गेन टैक्स लगता है। लेकिन सरकार ने यह सुविधा दी है कि अगर आपने वह संपत्ति तीन साल से ज्यादा समय तक रखी है, तो आप महंगाई के हिसाब से उस समय की लागत को सुधार सकते हैं। इसी प्रक्रिया को इंडेक्सेशन कहा जाता है।

नया इंडेक्स नंबर 363 तय किया गया

इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने 1 जुलाई 2025 को एक नोटिफिकेशन जारी कर बताया कि वित्त वर्ष 2025-26 (जिसका असेसमेंट ईयर 2026-27 होगा) के लिए CII को 363 रखा गया है। पिछले वित्त वर्ष 2024-25 के लिए यह आंकड़ा 348 था। इसका मतलब यह हुआ कि इस बार टैक्स कैलकुलेशन के लिए खरीदी गई संपत्ति की लागत थोड़ी और बढ़ाकर मानी जाएगी, जिससे कैपिटल गेन थोड़ी कम होगी और टैक्स का बोझ हल्का पड़ेगा।

कैसे होता है कैपिटल गेन की गणना

जब आप कोई मकान या फ्लैट बेचते हैं, तो उसे बेचने से जो राशि मिलती है, उसमें से संपत्ति को खरीदने की लागत और बिक्री के दौरान हुए खर्चे जैसे ब्रोकर की फीस, स्टांप ड्यूटी, रजिस्ट्रेशन चार्ज आदि को घटाया जाता है। लेकिन अगर वह संपत्ति तीन साल से ज्यादा पुरानी है, तो उसकी खरीद लागत को इंडेक्सेशन के जरिए अपडेट किया जाता है।

इंडेक्सेशन की मदद से यह माना जाता है कि संपत्ति की लागत समय के साथ बढ़ी है, और उस हिसाब से मुनाफा यानी टैक्सेबल अमाउंट घट जाता है।

फॉर्म्युला क्या होता है

अगर आपने साल 2010 में एक मकान 20 लाख रुपये में खरीदा था और साल 2025 में उसे 80 लाख रुपये में बेचा, तो सीधे तौर पर देखने में 60 लाख रुपये का मुनाफा लगता है। लेकिन इंडेक्सेशन की मदद से उस 20 लाख रुपये की लागत को बढ़ाकर दिखाया जाएगा।

मान लीजिए साल 2010-11 का CII था 167 और अब का 363 है, तो इंडेक्स लागत होगी:

इंडेक्स लागत = (363 ÷ 167) × 20,00,000 = लगभग 43,47,904 रुपये

अब टैक्स कैलकुलेशन होगा

कैपिटल गेन = 80,00,000 – 43,47,904 = 36,52,096 रुपये

यानी अब 60 लाख की जगह केवल करीब 36.5 लाख रुपये पर टैक्स देना होगा।

किन संपत्तियों पर लागू होता है CII

CII का उपयोग उन्हीं संपत्तियों पर होता है जो लॉन्ग टर्म कैपिटल एसेट्स की श्रेणी में आती हैं। यानी वे संपत्तियां जो आपने कम से कम 36 महीने (तीन साल) तक रखी हों। इसमें मकान, फ्लैट, जमीन, दुकान आदि शामिल हैं।

अगर आपने कोई संपत्ति तीन साल से पहले बेच दी, तो वह शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन में आएगी और उस पर इंडेक्सेशन का फायदा नहीं मिलेगा। ऐसी स्थिति में मुनाफा आपकी अन्य इनकम के साथ जुड़कर टैक्स के दायरे में आएगा।

बदलाव से जुड़ी नई बातें

हाल ही में सरकार ने नई टैक्स व्यवस्था लागू की है, जिसमें कुछ कटौतियां हटा दी गई हैं। लेकिन पुराने टैक्स सिस्टम के तहत CII का उपयोग अब भी जारी है। अगर आप पुराने टैक्स सिस्टम को अपनाते हैं, तो आप इंडेक्सेशन का फायदा ले सकते हैं।

इसके अलावा कुछ म्यूचुअल फंड्स में भी इंडेक्सेशन का लाभ अब नहीं दिया जा रहा है। लेकिन रियल एस्टेट और कुछ अन्य फिजिकल एसेट्स में यह अभी भी मान्य है।

CII से कौन-कौन से फायदे

CII न सिर्फ मकान जैसी संपत्तियों के लिए उपयोगी है, बल्कि यह गहनों, जमीन, और दूसरी पूंजीगत संपत्तियों पर भी लागू होता है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि महंगाई के हिसाब से आपकी असली लागत को समझा जा सकता है और टैक्स की गणना ज्यादा पारदर्शी हो जाती है।

इसके जरिए इनकम टैक्स डिपार्टमेंट यह मानता है कि आपने जो प्रॉपर्टी खरीदी थी, उसकी आज की वैल्यू उस समय की तुलना में ज्यादा हो चुकी है और उसी के आधार पर मुनाफे की गणना होती है।

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