इस वर्ष दीपावली 20 अक्तूबर 2025 (सोमवार) को मनाई जाएगी, न कि 21 अक्तूबर को। पंचांग गणना के अनुसार इस दिन अमावस्या तिथि प्रदोष और महानिशीथ काल तक रहेगी, जो लक्ष्मी पूजन के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। 21 अक्तूबर की शाम तक अमावस्या समाप्त हो जाएगी, इसलिए मुख्य पूजा 20 अक्तूबर की रात को ही की जाएगी।
Diwali 2025: दीपावली को लेकर लोगों में भ्रम था कि त्योहार 20 या 21 अक्तूबर को मनाया जाएगा। पंडितों के अनुसार, इस वर्ष कार्तिक कृष्ण अमावस्या 20 अक्तूबर की दोपहर 3:44 बजे से प्रारंभ होकर पूरी रात व्यापिनी रहेगी, जबकि 21 अक्तूबर को सूर्यास्त के बाद समाप्त हो जाएगी। इसलिए शास्त्रों के अनुसार, जब अमावस्या प्रदोष और महानिशीथ काल दोनों में रहे, उसी दिन लक्ष्मी पूजन श्रेष्ठ माना जाता है। इस प्रकार, इस वर्ष दीपावली का महापर्व 20 अक्तूबर 2025 सोमवार को मनाया जाएगा। साथ ही, धनतेरस 18 अक्तूबर, नरक चतुर्दशी 19 अक्तूबर, गोवर्धन पूजा 22 अक्तूबर और भाई दूज 23 अक्तूबर को मनाए जाएंगे।
दीपावली का धार्मिक महत्व
दीपावली का पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। यह दिन मां लक्ष्मी, भगवान गणेश और कुबेर देव की आराधना के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। मान्यता है कि इस दिन जो व्यक्ति प्रदोष काल या महानिशीथ काल में विधिपूर्वक पूजा करता है, उसके घर में धन, सुख और समृद्धि का वास होता है। दीपों से जगमग यह पर्व अंधकार पर प्रकाश और नकारात्मकता पर सकारात्मकता की विजय का प्रतीक माना जाता है।
20 अक्तूबर को क्यों मनाई जाएगी दीपावली
पंडितों के अनुसार, धर्मशास्त्रों में उल्लेख है कि दीपावली का पर्व उसी दिन मनाया जाना चाहिए जब अमावस्या तिथि प्रदोष काल और महानिशीथ काल में व्यापिनी हो। इस बार 20 अक्तूबर 2025 को चतुर्दशी तिथि दोपहर 03 बजकर 44 मिनट तक रहेगी, जिसके बाद अमावस्या तिथि प्रारंभ हो जाएगी और पूरी रात तक रहेगी। इस कारण से 20 अक्तूबर की रात्रि में दीपावली मनाई जाएगी।
21 अक्तूबर को अमावस्या तिथि सूर्योदय से शाम 05 बजकर 54 मिनट तक ही रहेगी, उसके बाद कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा प्रारंभ हो जाएगी। इस दिन सूर्यास्त के बाद केवल 24 मिनट तक अमावस्या रहेगी, इसलिए रात का पूजन काल उपयुक्त नहीं रहेगा। यही कारण है कि 21 अक्तूबर को दीपावली नहीं बल्कि स्नान-दान की अमावस्या मानी जाएगी।
चौघड़िया के अनुसार शुभ समय
पंडितों के अनुसार, 20 अक्तूबर को शाम 05 बजकर 36 मिनट से 07 बजकर 10 मिनट तक चर चौघड़िया का समय रहेगा। इसके बाद लाभ चौघड़िया की वेला सुबह 10 बजकर 19 मिनट से 11 बजकर 53 मिनट तक और रात्रि में 01 बजकर 28 मिनट से 06 बजकर 11 मिनट तक शुभ, अमृत और चर चौघड़िया का संयोग बनेगा। इन सभी मुहूर्तों में लक्ष्मी पूजन करना अत्यंत मंगलकारी रहेगा।
21 अक्तूबर की स्थिति
21 अक्तूबर 2025 मंगलवार को अमावस्या तिथि सूर्योदय से शाम 05 बजकर 54 मिनट तक रहेगी, उसके बाद कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा प्रारंभ हो जाएगी। इस दिन प्रदोष काल शाम 05 बजकर 36 मिनट से रात 08 बजकर 07 मिनट तक रहेगा, लेकिन उस समय अमावस्या तिथि सूर्यास्त के बाद मात्र 24 मिनट तक ही रहेगी।
इसके बाद वृषभ लग्न 06 बजकर 55 मिनट से शुरू होगी, तब तक अमावस्या समाप्त हो जाएगी। इस कारण 21 अक्तूबर की रात में न तो अमावस्या रहेगी और न ही स्थिर लग्न में पूजन संभव होगा। यही कारण है कि 21 अक्तूबर को दीपावली का पूजन उचित नहीं माना गया है।
दीपावली के साथ जुड़े अन्य पर्व
इस बार पांच दिवसीय दीपोत्सव 18 अक्तूबर से शुरू होगा।
- 18 अक्तूबर को धनतेरस का पर्व मनाया जाएगा।
- 19 अक्तूबर को नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली मनाई जाएगी।
- 20 अक्तूबर को दीपावली का मुख्य पर्व रहेगा।
- 21 अक्तूबर को स्नान दान की अमावस्या का पुण्य काल रहेगा।
- 22 अक्तूबर को गोवर्धन पूजा और अन्नकूट उत्सव मनाया जाएगा।
- 23 अक्तूबर को भाई दूज का पर्व मनाया जाएगा।
प्रदोष काल और महानिशीथ काल का महत्व
धर्मशास्त्रों में प्रदोष काल और महानिशीथ काल को दीपावली पूजन के लिए सबसे शुभ माना गया है। प्रदोष काल वह समय होता है जो सूर्यास्त के लगभग दो घंटे बाद तक चलता है। इस अवधि में मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा करने से विशेष पुण्य फल प्राप्त होता है।
20 अक्तूबर को प्रदोष काल शाम 05 बजकर 36 मिनट से रात 08 बजकर 07 मिनट तक रहेगा। इस दौरान वृषभ लग्न 06 बजकर 59 मिनट से 08 बजकर 56 मिनट तक रहेगा, जो स्थिर लग्न माना जाता है। स्थिर लग्न में किया गया पूजन दीर्घकालिक सुख-संपन्नता का कारक माना जाता है।
इसके बाद महानिशीथ काल रात 11 बजकर 45 मिनट से 12 बजकर 39 मिनट तक रहेगा। इस दौरान भी अमावस्या तिथि प्रभावी रहेगी, जिससे इस समय पूजन अत्यंत फलदायी रहेगा।
दीपावली पूजन का विधि-विधान
दीपावली के दिन सबसे पहले घर की अच्छी तरह सफाई की जाती है और मुख्य द्वार पर रंगोली बनाई जाती है। पूजा स्थल पर चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर माता लक्ष्मी, भगवान गणेश और कुबेर देव की प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं। पूजन में गंगाजल, अक्षत, पुष्प, रोली, मिठाई, खील-बताशा और नए सिक्के रखे जाते हैं।
लक्ष्मी पूजन वृषभ लग्न में करना सबसे शुभ माना गया है। पूजा के दौरान लक्ष्मी जी के मंत्र “ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः” का जाप करें। गणेश जी के मंत्र “ॐ गं गणपतये नमः” का उच्चारण करें। पूजा के बाद दीपक जलाकर घर के हर कोने को रोशन करें और मां लक्ष्मी का स्वागत करें।