भारत सरकार H-1B वीजा फीस में भारी बढ़ोतरी के मुद्दे पर अमेरिकी प्रशासन और आईटी इंडस्ट्री के साथ बातचीत कर रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने H-1B वीजा की सालाना फीस 1,00,000 अमेरिकी डॉलर तक बढ़ा दी है। इससे भारतीय आईटी कंपनियों और पेशेवरों पर गंभीर असर पड़ सकता है।
नई दिल्ली: H-1B वीजा फीस को लेकर भारत सरकार अमेरिकी प्रशासन और आईटी इंडस्ट्री के साथ समाधान खोजने के लिए बातचीत कर रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीजा की सालाना फीस 1,00,000 अमेरिकी डॉलर करने का आदेश जारी किया है, जबकि पहले यह 2,000 से 5,000 डॉलर थी। इस फैसले से भारतीय आईटी कंपनियों और पेशेवरों पर नकारात्मक असर पड़ सकता है, क्योंकि कई कंपनियां इन वीजा का इस्तेमाल हाई-स्किल्ड कर्मचारियों को अमेरिका भेजने के लिए करती हैं।
पहले कितना था H-1B वीजा शुल्क
H-1B वीजा का शुल्क पहले कंपनी के साइज और अन्य लागतों के आधार पर लगभग 2,000 से 5,000 अमेरिकी डॉलर के बीच था। इस फीस में अचानक एक लाख अमेरिकी डॉलर की बढ़ोतरी आई है। इस फैसले का असर मुख्य रूप से भारतीय आईटी और पेशेवर कर्मचारियों पर पड़ने वाला है। सूत्रों ने कहा कि अमेरिकी कंपनियां इस वीजा प्रोग्राम का प्रमुख रूप से उपयोग करती हैं, इसलिए उन्हें भी इस फैसले से गंभीर असर पड़ेगा।
आईटी कंपनियों की स्थिति और H-1B वीजा धारक कर्मचारी
USCIS की वेबसाइट के आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2025 में अमेजन के पास सबसे अधिक H-1B वीजा स्वीकृतियां रही, कुल 10,044। टाटा समूह की आईटी कंपनी टीसीएस ने 5,505 वीजा के साथ दूसरा स्थान हासिल किया। इसके बाद माइक्रोसॉफ्ट कॉर्प (5,189), मेटा (5,123), एप्पल (4,202), गूगल (4,181), कॉग्निजेंट (2,493), जेपी मॉर्गन चेज (2,440), वॉलमार्ट (2,390) और डेलॉयट कंसल्टिंग (2,353) का स्थान रहा। टॉप 20 में इंफोसिस (2,004), एलटीआई माइंडट्री (1,807) और एचसीएल अमेरिका (1,728) शामिल हैं।
विशेषज्ञों और उद्योग के नेताओं का मानना है कि H-1B वीजा पर भारी शुल्क लगाने से अमेरिका में भारतीय आईटी पेशेवरों और कंपनियों पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। इंफोसिस के पूर्व मुख्य वित्तीय अधिकारी मोहनदास पई ने कहा कि एक लाख अमेरिकी डॉलर की सालाना फीस से कंपनियों के नए आवेदन कम होंगे। इसके अलावा, यह कदम अमेरिकी बाजार में आउटसोर्सिंग को प्रभावित कर सकता है और कंपनियों की लागत बढ़ा सकता है।
सरकार और उद्योग की बातचीत
सूत्रों ने बताया कि भारत सरकार इस मामले पर अमेरिकी प्रशासन के साथ लगातार संवाद कर रही है। साथ ही, आईटी कंपनियां और उद्योग संगठन जैसे नैस्कॉम भी इस मसले पर अमेरिकी पक्ष से चर्चा कर रहे हैं। बातचीत का मकसद H-1B वीजा की फीस बढ़ोतरी से उत्पन्न होने वाले आर्थिक और पेशेवर प्रभाव को कम करना है।
फीस बढ़ोतरी के कारण
अमेरिकी प्रशासन का कहना है कि H-1B वीजा की फीस बढ़ोतरी का उद्देश्य वीजा के दुरुपयोग को रोकना और उच्च कौशल वाले पेशेवरों के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ाना है। ट्रंप सरकार का यह कदम अमेरिकी कंपनियों और घरेलू कर्मचारियों के लिए लाभकारी बताया जा रहा है। हालांकि, इस फैसले का असर भारतीय आईटी कंपनियों और पेशेवरों पर सबसे अधिक देखा जा रहा है।
भारतीय आईटी कंपनियां अमेरिका में अपने कर्मचारियों की संख्या और परियोजनाओं के आधार पर रणनीति बदलने की तैयारी कर रही हैं। कंपनियों का ध्यान अब H-1B वीजा आवेदनों की संख्या, लागत और नियोजन पर अधिक होगा। एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह कदम इंडियन आईटी इंडस्ट्री के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है।
आने वाले महीनों में संभावित असर
विशेषज्ञों के अनुसार आने वाले महीनों में अमेरिकी कंपनियों के नए H-1B वीजा आवेदन कम हो सकते हैं। इससे आउटसोर्सिंग बढ़ सकती है और भारतीय आईटी कर्मचारियों के रोजगार अवसर प्रभावित हो सकते हैं। वहीं, कंपनियों को अपने प्रोजेक्ट और बजट का पुनर्मूल्यांकन करना पड़ेगा।