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हवा में छिपे जहर का पता लगाएगा पॉकेट-साइज सेंसर, जानिए कैसे काम करता है यह सेंसर

हवा में छिपे जहर का पता लगाएगा पॉकेट-साइज सेंसर, जानिए कैसे काम करता है यह सेंसर

यह सेंसर बेहद कम मात्रा में मौजूद सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) गैस का सटीक रूप से पता लगाने में सक्षम है। यह गैस अत्यंत जहरीली होती है और श्वसन तंत्र पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है। विशेषज्ञों के अनुसार, SO2 गैस से सांस लेने में जलन, अस्थमा के दौरे और लंबे समय तक फेफड़ों को नुकसान पहुंचने का खतरा होता है।

बेंगलुरु के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा छोटा और सस्ता सेंसर तैयार किया है जो हवा में मौजूद खतरनाक सल्फर डाइऑक्साइड जैसी जहरीली गैस का तुरंत पता लगा सकता है। यह सेंसर इतना संवेदनशील है कि यह बहुत ही कम मात्रा में भी गैस की मौजूदगी को पहचान लेता है। इस तकनीक से वायु प्रदूषण की समय रहते पहचान और नियंत्रण में मदद मिल सकती है।

क्या है सल्फर डाइऑक्साइड और क्यों है खतरनाक

सल्फर डाइऑक्साइड यानी SO2 एक जहरीली गैस है जो ज्यादातर वाहनों, फैक्ट्रियों और बिजली उत्पादन इकाइयों से निकलती है। यह गैस सांस के ज़रिए शरीर में पहुंचकर फेफड़ों को नुकसान पहुंचा सकती है। इससे अस्थमा के दौरे, सांस की जलन और लंबे समय में गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। हवा में इसकी बहुत कम मात्रा भी सेहत के लिए नुकसानदायक होती है।

हवा में मौजूद SO2 का तुरंत चलेगा पता

इस सेंसर की खास बात यह है कि यह हवा में मौजूद सल्फर डाइऑक्साइड को 320 पीपीबी (पार्ट पर बिलियन) की बेहद कम सांद्रता पर भी पकड़ सकता है। अभी तक बाजार में मौजूद ज्यादातर गैस सेंसर इतने संवेदनशील नहीं होते कि वे इतनी कम मात्रा में गैस की मौजूदगी को पकड़ सकें। लेकिन बेंगलुरु के सेंटर फॉर नैनो एंड सॉफ्ट मैटर साइंसेज (CeNS) के वैज्ञानिकों ने इस कमी को दूर कर दिखाया है।

कौन सी तकनीक से बना है यह सेंसर

इस सेंसर को बनाने में दो तरह की धातु ऑक्साइड का इस्तेमाल किया गया है। पहला है निकल ऑक्साइड (NiO), जो सेंसर का रिसेप्टर हिस्सा है यानी यह गैस को पहचानने का काम करता है। दूसरा है नियोडिमियम निकेल ऑक्साइड (NdNiO3), जो ट्रांसड्यूसर की तरह काम करता है यानी गैस के सिग्नल को पढ़ने और उसे आउटपुट में बदलने का काम करता है। इन दोनों को मिलाकर तैयार किया गया यह सेंसर बेहद कुशलता से काम करता है।

छोटा सा सेंसर, पर काम बहुत बड़ा

यह सेंसर पॉकेट साइज है यानी इसे आसानी से कहीं भी ले जाया जा सकता है। इसे मोबाइल फोन की तरह जेब में रखा जा सकता है और किसी भी जगह की हवा की जांच की जा सकती है। यह सेंसर रियल टाइम में गैस की मौजूदगी बताता है और खतरे की स्थिति में रंगों के जरिए अलर्ट देता है।

डॉ. अंगप्पन के नेतृत्व में तैयार हुआ सेंसर

इस अनोखे गैस सेंसर को तैयार करने वाली टीम का नेतृत्व किया है डॉ. एस. अंगप्पन ने। उनके साथ कई वैज्ञानिकों ने मिलकर इस रिसर्च को अंजाम दिया है। इस सेंसर की तकनीकी रूपरेखा तैयार करने में विष्णु जी नाथ की मुख्य भूमिका रही है। इसके अलावा डॉ. शालिनी तोमर, श्री निखिल एन. राव, डॉ. मुहम्मद सफीर नादुविल कोविलकाथ, डॉ. नीना एस. जॉन, डॉ. सतदीप भट्टाचार्य और प्रोफेसर सेउंग-चेओल ली भी इस शोध में शामिल रहे।

औद्योगिक इलाकों में खास मददगार साबित हो सकता है यह सेंसर

भारत के कई शहरों में औद्योगिक गतिविधियां तेज़ हैं और वहां पर वायु प्रदूषण का स्तर भी काफी ज्यादा होता है। ऐसे इलाकों में इस तरह का सेंसर बड़ी भूमिका निभा सकता है। इसकी मदद से उद्योगों के आसपास के इलाकों की हवा की गुणवत्ता की निगरानी की जा सकती है और समय रहते जरूरी कदम उठाए जा सकते हैं।

सेंसर का डिजाइन बेहद सरल और उपयोग में आसान

इस गैस सेंसर का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसे किसी विशेष तकनीकी जानकारी के बिना भी आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है। इसका डिजाइन बहुत ही सरल और उपयोगकर्ता के अनुकूल है। यह एक तरह से आम लोगों को खुद से हवा की गुणवत्ता जांचने का अधिकार देता है।

शहरों के साथ-साथ घरों और दफ्तरों में भी होगा इस्तेमाल

इस सेंसर की खासियतों को देखते हुए इसे सिर्फ औद्योगिक क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि घरों, दफ्तरों, स्कूलों और अस्पतालों जैसे बंद स्थानों में भी लगाया जा सकता है। यह वहां की हवा में मौजूद जहरीले तत्वों का तुरंत पता लगाकर चेतावनी दे सकता है।

रिसर्च को मिली अंतरराष्ट्रीय मान्यता

इस शोध को ‘स्मॉल’ नामक अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक जर्नल में प्रकाशित किया गया है। इस रिसर्च को विश्व स्तर पर भी सराहना मिल रही है क्योंकि यह वायु प्रदूषण से निपटने की दिशा में एक ठोस तकनीकी कदम माना जा रहा है।

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