भारत अब दुनिया का चौथा सबसे समान देश बन गया है, जिसकी पुष्टि विश्व बैंक द्वारा जारी ताजा आंकड़ों से हुई है। रिपोर्ट में बताया गया कि 2011-12 से 2022-23 के बीच भारत में आय असमानता और अत्यधिक गरीबी में उल्लेखनीय कमी आई है।
नई दिल्ली: भारत ने एक बार फिर वैश्विक मंच पर अपनी सामाजिक-आर्थिक प्रगति का लोहा मनवाया है। विश्व बैंक की नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत दुनिया का चौथा सबसे आय-समान देश बन गया है। आय वितरण में सुधार और अत्यधिक गरीबी में भारी गिरावट के चलते भारत ने यह उपलब्धि हासिल की है। इस मामले में भारत ने अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और चीन जैसे देशों को भी पीछे छोड़ दिया है।
विश्व बैंक द्वारा जारी गिनी इंडेक्स में भारत का स्कोर 25.5 दर्ज हुआ है, जो 2011-12 में 28.8 था। इसका मतलब है कि भारत में आय का वितरण पहले से ज्यादा समान हुआ है। इस सूचकांक में 0 अंक पूर्ण समानता का प्रतीक होता है, जबकि 100 अंक अधिकतम असमानता को दर्शाता है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि 2011-12 में भारत में अत्यधिक गरीबी दर 16.2 प्रतिशत थी, जो अब घटकर 2022-23 में सिर्फ 2.3 प्रतिशत रह गई है। इस दौरान करीब 17 करोड़ 10 लाख लोग गरीबी रेखा से बाहर निकल आए हैं, जो अपने आप में एक ऐतिहासिक बदलाव माना जा सकता है।
किन देशों से बेहतर है भारत, और किनसे पीछे?
गिनी इंडेक्स में भारत को स्लोवाक रिपब्लिक (24.1), स्लोवेनिया (24.3) और बेलारूस (24.4) जैसे देशों से पीछे रखा गया है, जो समानता में सबसे आगे माने जाते हैं। लेकिन अमेरिका (41.8), चीन (35.7) और यूनाइटेड किंगडम (34.2) जैसे विकसित देशों के मुकाबले भारत कहीं बेहतर स्थिति में है। विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत में सरकारी योजनाओं और सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों का असर अब साफ दिखने लगा है। प्रधानमंत्री जन धन योजना, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर, उज्ज्वला योजना और ग्रामीण विकास की विभिन्न पहलों ने गरीब और निम्न आय वर्ग तक राहत पहुंचाई है।
ग्रामीण और शहरी गरीबी में बड़ी गिरावट
रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण गरीबी 2011-12 में 18.4 प्रतिशत थी, जो 2022-23 में घटकर सिर्फ 2.8 प्रतिशत पर आ गई। वहीं, शहरी गरीबी 10.7 प्रतिशत से गिरकर 1.1 प्रतिशत रह गई है। सबसे बड़ी बात यह रही कि ग्रामीण और शहरी गरीबी का अंतर भी कम हुआ है, जो पहले 7.7 प्रतिशत था, अब 1.7 प्रतिशत पर आ गया है।
गरीबी में कमी के लिहाज से उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश जैसे पांच राज्यों ने सबसे बड़ा योगदान दिया है। इन राज्यों में पहले देश की 65% अत्यधिक गरीब आबादी रहती थी, लेकिन अब वहां भी गरीबी में बड़ी गिरावट दर्ज हुई है। हालांकि, अब भी अत्यंत गरीबों की 54 प्रतिशत आबादी इन्हीं राज्यों में रहती है, जो आने वाले वर्षों में चुनौती बना रहेगा।
महिलाओं और युवाओं को लेकर चुनौतियां बरकरार
रिपोर्ट में जहां गरीबी और समानता को लेकर सकारात्मक संकेत हैं, वहीं कई चुनौतियां भी रेखांकित की गई हैं।
- भारत में गैर-कृषि भुगतान वाली नौकरियों का सिर्फ 23% हिस्सा औपचारिक (फॉर्मल) है।
- ज्यादातर कृषि क्षेत्र का रोजगार अब भी अनौपचारिक बना हुआ है।
- महिला रोजगार दर 31% है, और पुरुषों की तुलना में 23 करोड़ 40 लाख ज्यादा पुरुष वेतन वाली नौकरियों में हैं।
- युवाओं में बेरोजगारी दर 13.3% और उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं में यह 29% तक है।
इसके अलावा कोरोना महामारी के बाद शहरी इलाकों में रोजगार में सुधार तो हुआ, लेकिन महिला श्रम शक्ति भागीदारी अभी भी सीमित बनी हुई है। ग्रामीण इलाकों में पुरुषों का शहरी क्षेत्रों की तरफ फिर पलायन शुरू होना भी एक सामाजिक-आर्थिक चुनौती बना हुआ है।
भारत की उपलब्धि का क्या मतलब है?
विश्व बैंक की रिपोर्ट बताती है कि भारत अब निम्न-मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्था से आगे बढ़कर एक उभरती हुई मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्था बन रहा है। बीते एक दशक में 37.8 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर आए हैं, जो वैश्विक स्तर पर भारत की बड़ी कामयाबी है। साथ ही यह संकेत भी मिला है कि अगले कुछ वर्षों में यदि रोजगार सृजन, महिला सशक्तिकरण और शिक्षा पर और ध्यान दिया जाए तो भारत समानता के मामले में शीर्ष तीन देशों में भी जगह बना सकता है।
रिपोर्ट में बताया गया कि 2022-23 के बाद शहरी बेरोजगारी घटकर 6.6% पर आ गई है, जो 2017-18 के बाद सबसे कम स्तर पर है। यह संकेत है कि भारत की अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे मजबूत हो रही है।