कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया (77) ने अपने राजनीतिक संन्यास की अटकलों पर अब पूरी तरह विराम लगा दिया है। साथ ही, डीके शिवकुमार के मुख्यमंत्री बनने की संभावनाएं भी फिलहाल धुंधली पड़ती नजर आ रही हैं।
बेंगलुरु: कर्नाटक की राजनीति में एक बार फिर हलचल मच गई है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने 2028 के विधानसभा चुनाव में फिर से मैदान में उतरने के संकेत देकर राजनीतिक गलियारों में नई चर्चा छेड़ दी है। यह बयान उस समय आया है जब उनकी सरकार के ढाई साल पूरे होने की तारीख करीब है, और सत्ता हस्तांतरण को लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही थीं।
77 वर्षीय सिद्धारमैया ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अगर कांग्रेस हाईकमान का निर्णय रहा तो वे अपना पूरा पांच साल का कार्यकाल पूरा करेंगे। इससे न केवल उनकी सक्रिय राजनीति जारी रहने का संकेत मिला है, बल्कि डी.के. शिवकुमार की मुख्यमंत्री बनने की संभावनाओं पर भी फिलहाल ब्रेक लग गया है।
'राजनीतिक संन्यास नहीं, 2028 में भी मैदान में उतर सकता हूं’ — सिद्धारमैया
मंगलुरु में एक इंटरव्यू के दौरान सिद्धारमैया ने कहा कि उन्होंने अब तक अगला चुनाव लड़ने पर अंतिम फैसला नहीं किया है, लेकिन उनके करीबी साथी और पार्टी कार्यकर्ता चाहते हैं कि वे 2028 में भी चुनाव मैदान में उतरें। उन्होंने कहा, मेरे सभी मित्र और समर्थक कह रहे हैं कि मुझे फिर से चुनाव लड़ना चाहिए क्योंकि इससे पार्टी को मजबूती मिलेगी। अभी मैंने कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया है।
यह बयान इसलिए भी अहम है क्योंकि 2023 के विधानसभा चुनावों के दौरान सिद्धारमैया ने खुद कहा था कि यह उनका आखिरी चुनाव होगा। लेकिन अब उन्होंने राजनीतिक संकेत बदलते हुए साफ कर दिया है कि वह ‘रिटायरमेंट मोड’ में नहीं हैं।
राष्ट्रीय राजनीति से दूरी, फोकस सिर्फ कर्नाटक पर

सिद्धारमैया ने स्पष्ट किया कि वे राष्ट्रीय राजनीति में जाने के इच्छुक नहीं हैं। उन्होंने कहा कि उनका पूरा ध्यान कर्नाटक की राजनीति और राज्य के विकास पर है। इसके साथ ही उन्होंने मंत्रिमंडल फेरबदल के सवाल पर कहा कि यह फैसला कांग्रेस आलाकमान ही करेगा। दिल्ली में जो तय होगा, वही अंतिम होगा। तीन-चार महीने पहले फेरबदल की बात हुई थी, लेकिन मैंने कहा था कि इसे ढाई साल बाद किया जाए।
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, सिद्धारमैया का यह बयान कांग्रेस नेतृत्व को यह संदेश देने के लिए है कि वे अब भी पार्टी के भीतर मजबूत और लोकप्रिय नेता हैं, जिन्हें नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता।
'उत्तराधिकारी विवाद’ पर बेटे का बयान और मचा बवाल
हाल ही में सिद्धारमैया के बेटे और एमएलसी यतिंद्र सिद्धारमैया ने एक बयान देकर सियासत गर्मा दी थी। उन्होंने सार्वजनिक निर्माण मंत्री सतीश जारकिहोली को अपने पिता का "उत्तराधिकारी" बताया था। हालांकि विवाद बढ़ने के बाद उन्होंने सफाई दी कि उनका मतलब राजनीतिक उत्तराधिकारी से नहीं, बल्कि सिद्धारमैया की ‘अहिंदा’ विचारधारा (अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग और दलित) से था।
इसके बाद यतिंद्र ने स्पष्ट कहा कि उनके पिता न केवल अपना कार्यकाल पूरा करेंगे बल्कि राज्य में कांग्रेस को और मजबूत करेंगे। सूत्रों के मुताबिक, सिद्धारमैया ने पार्टी और सरकार के भीतर अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए रणनीतिक कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। हाल ही में उन्होंने मंत्रियों और विधायकों के लिए एक डिनर मीटिंग का आयोजन किया था, जिसमें कई अहम मुद्दों पर चर्चा हुई।
इसके अलावा, उन्होंने 28 अक्टूबर को राज्योत्सव पुरस्कार चयन प्रक्रिया के बहाने मंत्रियों और विधायकों की एक अनौपचारिक बैठक बुलाई है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि यह कदम “सॉफ्ट पावर शो” के तहत पार्टी में अपनी पकड़ मजबूत करने का प्रयास है।











