कर्नाटक सरकार ने बिहार की तरह जातीय जनगणना की तर्ज पर सामाजिक-आर्थिक सर्वे शुरू किया है। डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने कहा कि सर्वे में किसी की निजता का उल्लंघन नहीं होगा और इसमें भाग लेना पूरी तरह स्वैच्छिक रहेगा।
Karnataka: बिहार के बाद अब कर्नाटक सरकार ने राज्य स्तर पर सामाजिक और आर्थिक सर्वे शुरू किया है, जिसे जातीय जनगणना का नाम दिया गया है। इस सर्वे को लेकर डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने स्पष्ट किया है कि किसी भी व्यक्ति से निजी सवाल नहीं पूछे जाएंगे। साथ ही, किसी को भी सर्वे में जवाब देने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा।
सर्वे का उद्देश्य
कर्नाटक सरकार का यह सर्वे राज्य की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का विस्तृत आकलन करने के लिए किया जा रहा है। इसका मकसद है यह जानना कि समाज के विभिन्न वर्गों की स्थिति क्या है और किन क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता है। सरकार का दावा है कि यह प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी और स्वैच्छिक (voluntary) होगी।
डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार का बयान
कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने बताया कि इस सर्वे को लेकर कुछ लोगों में गलतफहमियां हैं। उन्होंने कहा कि सरकार किसी की निजता का उल्लंघन नहीं करेगी। किसी व्यक्ति से उसकी संपत्ति, आय या घरेलू चीजों से जुड़े सवाल नहीं पूछे जाएंगे। डीके शिवकुमार ने यह भी कहा कि उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे ऐसे सवाल न पूछें जिनसे नागरिकों की निजी जानकारी उजागर हो।
लोगों से की गई अपील
डीके शिवकुमार ने राज्य के नागरिकों से अपील की है कि वे सर्वे में हिस्सा लें ताकि सरकार को सटीक जानकारी मिल सके। उन्होंने कहा कि समाज के हर वर्ग की स्थिति का सही आंकलन तभी संभव है जब ज्यादा से ज्यादा लोग इसमें भाग लेंगे। उनका कहना है कि यह सर्वे राज्य के भविष्य की नीतियों को आकार देने में मदद करेगा।
आयोग को मिली जिम्मेदारी
कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को इस सर्वे की जिम्मेदारी सौंपी गई है। यह आयोग एक स्वतंत्र निकाय है और सरकार के हस्तक्षेप से मुक्त होकर कार्य करता है। आयोग के पास यह अधिकार है कि वह सर्वे से संबंधित प्रश्न तय करे। डीके शिवकुमार ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि आयोग कौन से प्रश्न पूछेगा, परंतु यह सुनिश्चित है कि किसी की निजता प्रभावित नहीं होगी।
सर्वे की समयावधि और प्रक्रिया
यह सामाजिक और आर्थिक सर्वे 22 सितंबर से शुरू हुआ है और 7 अक्तूबर तक चलने वाला है। सर्वे के दौरान आयोग के कर्मचारी घर-घर जाकर जानकारी एकत्र करेंगे। इसमें भाग लेना पूरी तरह स्वैच्छिक है। यदि कोई व्यक्ति किसी प्रश्न का उत्तर नहीं देना चाहता, तो उसे मजबूर नहीं किया जाएगा।
अदालत का रुख
कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस सर्वे को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए साफ कहा था कि सर्वे को रोका नहीं जाएगा। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि कोई भी व्यक्ति इसमें शामिल होना चाहे तो हो सकता है, लेकिन उसे इसके लिए बाध्य नहीं किया जाएगा। अदालत ने इस पहल को संवैधानिक अधिकारों के अनुरूप बताया है।
राज्य सरकार ने इस सर्वे के लिए लगभग 420 करोड़ रुपये का बजट तय किया है। बताया गया है कि कुल 60 प्रश्नों के साथ यह सर्वे तैयार किया गया है। प्रत्येक प्रश्न का उद्देश्य नागरिकों की सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक स्थिति की जानकारी प्राप्त करना है। इस सर्वे से पहले वर्ष 2015 में भी एक सामाजिक-आर्थिक सर्वे किया गया था, जिस पर लगभग 165 करोड़ रुपये का खर्च हुआ था।