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प्रेमानंद महाराज ने धीरेंद्र शास्त्री के सामने कही चौंकाने वाली बात, बोले- ‘हर जन्म मेरी किडनी खराब हो जाए’

प्रेमानंद महाराज ने धीरेंद्र शास्त्री के सामने कही चौंकाने वाली बात, बोले- ‘हर जन्म मेरी किडनी खराब हो जाए’

प्रेमानंद महाराज ने वृंदावन में धीरेंद्र शास्त्री से मुलाकात के दौरान कहा कि उनका बार-बार जन्म हो और हर बार किडनी फेल हो जाए। उन्होंने भक्ति और भगवान पर अटूट विश्वास का महत्व बताते हुए स्वास्थ्य को गौण बताया।

मथुरा: उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी वृंदावन में हाल ही में एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक संवाद हुआ। प्रेमानंद महाराज और बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की मुलाकात ने भक्तों और सामाजिक जनमानस का ध्यान खींचा। इस दौरान प्रेमानंद महाराज ने अपने गंभीर स्वास्थ्य और बार-बार किडनी फेल होने की बात को लेकर एक चौंकाने वाला बयान दिया, जो भक्ति और श्रद्धा के दृष्टिकोण से गहरा संदेश देता है।

स्वास्थ्य के बावजूद भक्ति को प्राथमिकता

प्रेमानंद महाराज ने कहा कि बार-बार जन्म हो और हर बार उनकी किडनी फेल हो जाए, तब भी भक्ति का महत्व कम नहीं होता। उन्होंने शारीरिक कष्टों को भक्ति मार्ग में महत्वहीन बताया और बताया कि सच्चा साधक इन कठिनाइयों को भगवान की कृपा के रूप में स्वीकार करता है।

महाराज ने कहा कि उनका चित्त पूरी तरह प्रिया प्रीतम (राधा रानी) में लगा हुआ है और उनका विश्वास है कि राधा रानी स्वयं सब कुछ संभाल रही हैं। उनके इन शब्दों ने स्वास्थ्य संकट में भी भक्ति की अटलता और आत्मसमर्पण का संदेश स्पष्ट किया।

प्रेमानंद महाराज की कठिन और नियमित दिनचर्या

प्रेमानंद महाराज ने अपनी दिनचर्या का भी खुलासा किया। उन्होंने बताया कि उनकी दिनचर्या रात 1 बजे से शुरू होकर रात 9 बजे तक चलती है, जिसमें नियमित पूजा, भजन और ध्यान शामिल है। महाराज ने स्वीकार किया कि यह दिनचर्या स्वस्थ शरीर वाले व्यक्ति के लिए भी कठिन है।

इस कठिनाई के बावजूद उन्होंने इसे श्रीजी (राधा रानी) की कृपा बताया। महाराज के अनुसार, कठिनाई और कष्टों के बावजूद भक्ति और आध्यात्मिक साधना से जीवन का असली उद्देश्य प्राप्त होता है।

किडनी फेल होने के बावजूद भक्ति का संदेश

प्रेमानंद महाराज ने किडनी फेल होने जैसी गंभीर समस्या के बावजूद अपने विश्वास और भक्ति को कभी नहीं छोड़ा। उन्होंने कहा कि साधक को यह समझना चाहिए कि शारीरिक परेशानियां अंतिम लक्ष्य के मार्ग में बाधा नहीं बन सकती।

उनके इस वक्तव्य ने स्वास्थ्य और भक्ति के बीच संतुलन का उदाहरण प्रस्तुत किया। महाराज ने स्पष्ट किया कि भगवान पर अटूट भरोसा और साधना ही जीवन में वास्तविक लाभ देती है, जबकि शरीर की परेशानियां क्षणिक हैं।

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