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राघोपुर विधानसभा सीट! लालू यादव के गढ़ में तेजस्वी के सामने कड़ी चुनौती, बदला चुनावी माहौल

राघोपुर विधानसभा सीट! लालू यादव के गढ़ में तेजस्वी के सामने कड़ी चुनौती, बदला चुनावी माहौल

राघोपुर विधानसभा सीट पर इस बार मुकाबला तेजस्वी यादव और BJP के सतीश यादव के बीच है। लालू यादव का यह गढ़ अब चुनौतीपूर्ण बन गया है। जनता के बीच विकास, बेरोजगारी और परिवारवाद जैसे मुद्दे चुनावी चर्चा में हैं।

Bihar Election: राघोपुर विधानसभा सीट कभी लालू प्रसाद यादव का अजेय गढ़ मानी जाती थी, लेकिन अब वही सीट उनके पुत्र और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के लिए चुनौती बन गई है। इस बार का चुनावी माहौल काफी अलग है। गंगा किनारे बसे इस इलाके में लोगों के बीच विकास, बाढ़, कटाव और बेरोजगारी जैसे मुद्दे गूंज रहे हैं। तेजस्वी यादव के लिए यहां जीत आसान नहीं दिख रही।

दो यदुवंशियों के बीच सीधी टक्कर

राघोपुर में इस बार मुकाबला दो यदुवंशियों के बीच है। एक ओर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) से तेजस्वी यादव हैं, तो दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी (BJP) से सतीश कुमार यादव। दोनों नेता यादव समुदाय से आते हैं, जिससे मुकाबला और दिलचस्प हो गया है। वहीं, जन सुराज पार्टी के चंचल कुमार की उपस्थिति भी त्रिकोणीय मुकाबले का संकेत दे रही है।

यह क्षेत्र राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील है क्योंकि यहीं से लालू और राबड़ी जैसे नेताओं ने बिहार की राजनीति की दिशा तय की थी। इसलिए हर चुनाव में यहां का नारा यही रहता है – “यह मेरा मुख्यमंत्री।”

विकास बनाम जंगलराज का नैरेटिव

इस बार राघोपुर का चुनावी मुद्दा पूरी तरह बदल गया है। एक ओर महागठबंधन के समर्थक तेजस्वी को “भविष्य का मुख्यमंत्री” बता रहे हैं, तो दूसरी ओर एनडीए समर्थक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विकास नीतियों को गिनवा रहे हैं।

गंगा नदी पर बने सिक्स लेन पुल ने इस इलाके की तस्वीर बदल दी है। पहले जो राघोपुर पटना से दूर लगता था, अब वह राजधानी से सीधे जुड़ गया है। भूमि के बढ़ते मूल्य और बेहतर संपर्क व्यवस्था के कारण लोग विकास का श्रेय नीतीश कुमार को दे रहे हैं।

तेजस्वी यादव के लिए चुनौतीपूर्ण माहौल

2015 और 2020 में तेजस्वी यादव ने राघोपुर से जीत हासिल की थी। 2020 में उन्होंने बीजेपी उम्मीदवार सतीश कुमार यादव को 38,174 वोटों से हराया था। लेकिन इस बार माहौल कुछ अलग है। स्थानीय लोगों की नाराजगी, विपक्ष की रणनीति और परिवार के भीतर के मतभेद उनके लिए चुनौती बन गए हैं।

2010 में सतीश कुमार ने राबड़ी देवी को पराजित किया था। इस बार सतीश फिर से मैदान में हैं और उन्होंने “विकास बनाम परिवारवाद” का मुद्दा उठाकर तेजस्वी के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं।

तेजप्रताप की एंट्री से बढ़ी सरगर्मी

तेजस्वी यादव के लिए इस बार की चुनौती सिर्फ विपक्ष से नहीं, बल्कि घर से भी है। उनके बड़े भाई तेजप्रताप यादव ने हाल ही में राघोपुर में अपनी जनसभा कर राजद खेमे में हलचल मचा दी। तेजप्रताप की इस रैली में भीड़ उमड़ी, जिससे साफ हुआ कि परिवार के अंदर भी राजनीतिक खींचतान जारी है।

कुछ दिन पहले तेजस्वी ने महुआ में अपने भाई के खिलाफ प्रचार किया था। जवाब में तेजप्रताप ने राघोपुर में शक्ति प्रदर्शन कर यह संकेत दे दिया कि वह अब “साइलेंट प्लेयर” नहीं रहेंगे। इससे तेजस्वी के लिए समीकरण और जटिल हो गए हैं।

विपक्ष की रणनीति और यादव वोट बैंक पर सेंध

एनडीए की रणनीति इस बार बेहद सोच-समझकर बनाई गई है। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय समेत कई वरिष्ठ नेताओं ने राघोपुर का दौरा किया और “विकास बनाम जंगलराज” का नैरेटिव सेट करने की कोशिश की।

भाजपा इस बार यादव वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है। जबकि अनुसूचित जाति और सवर्ण मतदाता अब भी इस सीट पर हार-जीत के निर्णायक कारक बने हुए हैं। शुक्रवार को नित्यानंद राय ने यहां जदयू नेता सुरेश राय के घर सभा की, और अगले ही दिन तेजस्वी उसी घर पहुंचे। बाद में सुरेश राय तेजस्वी के समर्थन में आ गए।

राघोपुर का राजनीतिक इतिहास

राघोपुर का राजनीतिक इतिहास बताता है कि पिछले 63 वर्षों से यह सीट यदुवंशी नेताओं के कब्जे में रही है। लालू यादव 1995 और 2000 में यहां से विधायक चुने गए। 2005 में राबड़ी देवी ने जीत दर्ज की, जबकि 2010 में उन्हें जदयू के सतीश कुमार ने हराया।

2015 और 2020 में तेजस्वी यादव ने यह सीट फिर से राजद के खाते में लाकर पिता की विरासत को संभाला। अब वह तीसरी बार यानी हैट्रिक बनाने के लिए मैदान में हैं। लेकिन इस बार जनता का मूड पूरी तरह साफ नहीं है।

राघोपुर में लालू परिवार की जड़ें

राघोपुर की पहचान लालू यादव और राबड़ी देवी से जुड़ी है। 1995 में जब लालू ने इस सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया, तो स्थानीय नेता उदय नारायण राय उर्फ भोला राय ने उनके लिए अपनी सीट छोड़ दी थी। इसके बदले में लालू ने उन्हें राज्य मंत्री बनाया और कई बार एमएलसी भी रहने का मौका दिया।

जनता के बीच विकास

राघोपुर के ग्रामीणों के बीच बातचीत में विकास के साथ-साथ नाराजगी भी झलकती है। पुल, सड़कों और नई योजनाओं की चर्चा के साथ लोग बाढ़ और कटाव की समस्या को लेकर सवाल उठा रहे हैं।

एक ग्रामीण राजाराम कहते हैं, “नेता पुल की बात करते हैं, लेकिन बाढ़ और कटाव का जिक्र नहीं करते।” वहीं एक अन्य ग्रामीण गौतम बताते हैं कि “5 हजार करोड़ का पुल तो बना, पर किनारे के गांव आज भी बर्बाद हो रहे हैं।”

महिला रधिया बताती हैं कि “10 हजार रुपये मिले हैं, पेंशन की राशि बढ़ी है और मुफ्त अनाज भी मिलता है।” लेकिन दूसरी महिला बीच में टोकते हुए कहती है, “हमें तो कुछ नहीं मिला।”

युवाओं की शिकायत है कि इलाके में सरकारी कॉलेज या उच्च शिक्षण संस्थान (Higher Education Institute) नहीं है। वे कहते हैं कि शिक्षा और रोजगार दोनों के लिए अब भी पटना जाना पड़ता है।

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