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रूस से तेल की रिकॉर्ड खरीद: भारत ने तोड़ा 11 महीने का आंकड़ा, वैश्विक दबावों को किया नजरअंदाज

रूस से तेल की रिकॉर्ड खरीद: भारत ने तोड़ा 11 महीने का आंकड़ा, वैश्विक दबावों को किया नजरअंदाज
अंतिम अपडेट: 30-11--0001

भारत ने एक बार फिर दुनिया को यह दिखा दिया है कि उसकी ऊर्जा जरूरतें किसी दबाव या राजनीतिक समीकरण से नहीं, बल्कि राष्ट्रीय हितों से तय होती हैं। जून 2025 में भारत ने रूस से कच्चे तेल की खरीद में 11 महीने का रिकॉर्ड तोड़ दिया। जहां एक तरफ दुनिया के कई देश रूस से व्यापार करने से बच रहे हैं, वहीं भारत ने इस महीने 20.8 लाख बैरल प्रतिदिन तेल आयात करके ऊर्जा कूटनीति में एक नया संदेश दे दिया है।

भारत की रिफाइनरियों की बड़ी भूमिका

रूस से आए इस तेल में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी भारत की तीन बड़ी रिफाइनिंग कंपनियों की रही है। ये रिफाइनरियां न केवल घरेलू खपत के लिए पेट्रोल, डीजल जैसे ईंधन तैयार करती हैं, बल्कि G7 प्लस देशों को भी रिफाइंड उत्पाद निर्यात करती हैं। इससे यह साफ जाहिर होता है कि भारत केवल उपभोक्ता नहीं, बल्कि तेल प्रसंस्करण का भी वैश्विक केंद्र बनता जा रहा है।

भारत अपनी ज़रूरत का करीब 85 प्रतिशत कच्चा तेल आयात करता है, जिसे देशभर में मौजूद रिफाइनरियों में शुद्ध करके ऊर्जा उत्पाद तैयार किए जाते हैं। पारंपरिक रूप से यह आयात खाड़ी देशों से होता आया है, लेकिन अब रूस की हिस्सेदारी लगातार बढ़ती जा रही है।

जून में रूस से रिकॉर्ड स्तर पर तेल आयात

तेल जहाजों की आवाजाही पर नजर रखने वाली विश्लेषक एजेंसी केप्लर के आंकड़ों के अनुसार, भारत ने जून 2025 में रूस से जो कच्चा तेल आयात किया, वह जुलाई 2024 के बाद सबसे ज्यादा है। बीते साल की तुलना में इस महीने रूस से तेल आयात में आठ प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। यह तब है जब वैश्विक स्तर पर भारत का कुल कच्चा तेल आयात छह प्रतिशत घट गया है।

यह बढ़ोतरी ऐसे समय में हुई है जब इजराइल-ईरान संघर्ष की वजह से वैश्विक बाजारों में अनिश्चितता बनी हुई है और कई देश रूस से दूरी बनाकर चल रहे हैं। लेकिन भारत ने अपने हितों को प्राथमिकता देते हुए रूस से आपूर्ति बनाए रखी।

खाड़ी देशों से कम हुआ आयात

रूस से आयात बढ़ने के साथ ही खाड़ी देशों से भारत का तेल आयात घटा है। जून में भारत ने इराक से केवल 8.93 लाख बैरल प्रतिदिन तेल आयात किया, जो पिछले महीने की तुलना में 17.2 प्रतिशत कम है। इसी तरह, सऊदी अरब से आयात लगभग स्थिर रहा और संयुक्त अरब अमीरात से आयात में मामूली वृद्धि हुई।

इराक भारत का दूसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बना रहा, लेकिन उसकी हिस्सेदारी गिरकर 18.5 प्रतिशत पर आ गई है। सऊदी अरब की हिस्सेदारी 12.1 प्रतिशत और यूएई की 10.2 प्रतिशत दर्ज की गई। यह बदलाव भारत के तेल आयात में एक स्पष्ट झुकाव दिखाता है  रूस की ओर।

अमेरिका से भी हो रहा है तेल आयात

केप्लर के अनुसार, अमेरिका भारत का पांचवां सबसे बड़ा कच्चा तेल आपूर्तिकर्ता बना हुआ है। जून में अमेरिका से भारत ने लगभग 3.03 लाख बैरल प्रतिदिन तेल मंगाया, जिसकी बाजार हिस्सेदारी 6.3 प्रतिशत रही। यानी भारत अपनी तेल आपूर्ति को विविध देशों से बनाए रखने की नीति पर काम कर रहा है।

रूस-भारत साझेदारी पर वैश्विक निगाहें

रूस से भारत का यह बढ़ता हुआ व्यापार केवल ऊर्जा के नजरिए से नहीं देखा जा रहा है, बल्कि इसे भू-राजनीतिक नजरिए से भी विश्लेषित किया जा रहा है। पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका और यूरोप की कई सरकारें रूस के खिलाफ प्रतिबंधों का समर्थन कर रही हैं। लेकिन भारत ने साफ कर दिया है कि वह अपनी ऊर्जा सुरक्षा से समझौता नहीं करेगा।

बीते महीनों में कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की इस नीति को लेकर चर्चा हुई है, लेकिन भारत ने बार-बार यह कहा है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार निर्णय लेता है। रूस से कच्चे तेल की खरीद भी इसी नीति का हिस्सा है।

तेल कूटनीति में भारत की अलग राह

भारत की विदेश नीति हमेशा से ‘रणनीतिक स्वतंत्रता’ पर आधारित रही है। ऊर्जा जैसे संवेदनशील क्षेत्र में भी भारत किसी एक गुट के साथ खड़ा नहीं होता, बल्कि अपनी जरूरतों और लाभ के अनुसार साझेदारी करता है। रूस से तेल खरीद इसी नीति का एक उदाहरण है।

जहां एक ओर अमेरिका और यूरोप रूस से तेल व्यापार को लेकर कड़े रुख अपनाए हुए हैं, वहीं भारत ने अपने हितों को प्राथमिकता दी है। यही वजह है कि रूस अब भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया है, जबकि खाड़ी देश पीछे छूटते जा रहे हैं।

रूस के तेल पर क्यों बढ़ा भरोसा?

रूस भारत को भारी छूट पर तेल देने के लिए जाना जा रहा है। भारत को रूस से मिलने वाला तेल पश्चिमी देशों की तुलना में सस्ता पड़ता है, जिससे रिफाइनरियों को लागत में राहत मिलती है। इससे घरेलू बाजार में पेट्रोल-डीजल की कीमतें स्थिर बनी रहती हैं और भारत को चालू खाता घाटा नियंत्रित रखने में भी मदद मिलती है।

इसके अलावा, रूस ने भारत को दीर्घकालिक अनुबंधों की पेशकश की है, जिससे आपूर्ति श्रृंखला और मूल्य निर्धारण को लेकर अनिश्चितता कम होती है। भारत की सरकारी और निजी रिफाइनरियां इस स्थिरता को काफी महत्व देती हैं।

रिफाइनिंग हब बनने की ओर भारत

भारत न केवल तेल का बड़ा आयातक है, बल्कि वह एक उभरता हुआ रिफाइनिंग हब भी बनता जा रहा है। भारत की कई रिफाइनरियां अब इतने बड़े स्तर पर उत्पादन कर रही हैं कि वे पश्चिमी देशों को भी पेट्रोलियम उत्पाद निर्यात कर रही हैं। यह स्थिति भारत को वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति शृंखला में एक अहम स्थान देती है।

इस तरह भारत ने तेल व्यापार में संतुलन बनाकर रखा है  एक तरफ रणनीतिक साझेदारियों को निभा रहा है, तो दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय दबावों से भी संतुलित दूरी बना रहा है।

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