वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ जांच पर सवाल उठाते हुए केंद्र सरकार को घेरा। कहा, न्यायाधीश को सुने बिना रिपोर्ट बनाना न्याय के खिलाफ है।
Yashwant Verma: न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट की जांच पर वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सवाल खड़े किए हैं। उनका आरोप है कि न्यायाधीश को सुने बिना ही रिपोर्ट तैयार कर दी गई, जो न्यायिक प्रक्रिया और पारदर्शिता के खिलाफ है।
दिल्ली हाई कोर्ट के जज के घर मिली थी नकदी
मार्च 2025 में दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन जज यशवंत वर्मा के घर में आग लगने की घटना के बाद एक जांच शुरू हुई थी। आग बुझाने के दौरान उनके दिल्ली स्थित आउट हाउस से नकदी मिलने की बात सामने आई थी। इसी घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट की ओर से एक तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की गई थी। केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट की इस जांच पर अब कपिल सिब्बल ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने इसे न्यायपालिका पर दबाव बनाने की कोशिश बताया है।
सिब्बल ने कहा- “न्यायाधीश को नहीं सुना गया”
राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने रविवार को कहा कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ रिपोर्ट तैयार करने से पहले उन्हें सुनने का अवसर तक नहीं दिया गया। उन्होंने कहा कि यह न केवल गलत है, बल्कि न्याय के मूल सिद्धांतों के भी खिलाफ है।
सिब्बल ने कहा, “जब आपने जांच की और रिपोर्ट बनाई, तब आपने न्यायाधीश की बात ही नहीं सुनी। यह पारदर्शिता और निष्पक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन है। अगर सरकार को कोई आपत्ति है, तो उसे संवैधानिक तरीके से, संसद के माध्यम से महाभियोग प्रस्ताव लाकर कार्य करना चाहिए।”
NJAC को फिर से लाने की साजिश?
कपिल सिब्बल ने इस मामले को लेकर केंद्र सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि यह सब ऐसे समय पर हो रहा है जब सरकार NJAC (नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट कमीशन) को दोबारा लाने की कोशिश कर रही है।
सिब्बल का कहना है कि सरकार का यह प्रयास न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्रभावित करने वाला है। उन्होंने आरोप लगाया कि इस प्रकार की जांच प्रक्रिया के ज़रिए सरकार न्यायिक संस्थाओं पर दबाव बनाना चाहती है।
जज शेखर कुमार यादव का उदाहरण भी दिया
सिब्बल ने एक और मामला सामने रखते हुए न्यायिक प्रक्रिया में दोहरे मापदंड की बात कही। उन्होंने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज शेखर कुमार यादव का हवाला दिया, जिनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव की जांच पिछले छह महीने से लंबित है।
उन्होंने कहा कि राज्यसभा सचिवालय ने तकनीकी आधार पर जांच को रोका हुआ है और सिग्नेचर सत्यापन जैसी औपचारिकताओं में देरी की जा रही है। सिब्बल ने पूछा, “क्या यह दोहरा रवैया नहीं है?”
जांच समिति में कौन-कौन हैं शामिल?
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित इस तीन सदस्यीय समिति में शामिल न्यायाधीश निम्नलिखित हैं:
- न्यायमूर्ति शील नागू, मुख्य न्यायाधीश, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट
- न्यायमूर्ति जीएस संधवाला, मुख्य न्यायाधीश, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट
- न्यायमूर्ति अनु शिवरामन, कर्नाटक हाई कोर्ट
इस समिति ने बीते महीने अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को सौंप दी थी। हालांकि, इस रिपोर्ट की सामग्री को अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया है।