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Sarzameen Review: भारत-पाक रिश्तों की भावनात्मक कहानी; पृथ्वीराज, काजोल और इब्राहिम अली खान की दमदार परफॉर्मेंस

Sarzameen Review: भारत-पाक रिश्तों की भावनात्मक कहानी; पृथ्वीराज, काजोल और इब्राहिम अली खान की दमदार परफॉर्मेंस

भारत-पाकिस्तान की दुश्मनी और कश्मीर जैसे संवेदनशील विषयों पर कई फिल्में बन चुकी हैं, लेकिन जियो सिनेमा/हॉटस्टार पर हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्म ‘सरज़मीन’ ने इस जानी-पहचानी कहानी को एक नई ताजगी के साथ पेश किया है।

  • फिल्म: सरजमीन 
  • प्लेटफॉर्म: डिज़्नी+ हॉटस्टार
  • निर्देशक: कायोज़ ईरानी
  • लेखक: आयुष सोनी
  • मुख्य कलाकार: पृथ्वीराज सुकुमारन, काजोल, इब्राहिम अली खान, मिहिर आहूजा
  • रेटिंग: ★★★☆☆ (3/5)

एंटरटेनमेंट: भारत-पाकिस्तान के बीच की जटिल राजनीतिक और सैन्य स्थिति पर केंद्रित कई फिल्में हम देख चुके हैं। फिर चाहे वो युद्ध आधारित हों या कश्मीर से जुड़ी कहानियां। लेकिन ‘सरजमीन’ उन कहानियों से थोड़ा अलग है, क्योंकि यह केवल एक देशभक्ति की फिल्म नहीं है, बल्कि इसमें एक गहरी पारिवारिक भावनात्मक परत भी जुड़ी है।

करण जौहर के धर्मा प्रोडक्शन के बैनर तले बनी और डिज्नी+ हॉटस्टार पर रिलीज हुई यह फिल्म एक ऐसे पिता-बेटे की कहानी है जो देश, परिवार और व्यक्तिगत रिश्तों के बीच फंसे हैं। फिल्म का निर्देशन कायोज़ ईरानी ने किया है, और कहानी आयुष सोनी ने लिखी है।

कहानी का सारांश

‘सरजमीन’ की कहानी केंद्रित है कर्नल विजय मेनन (पृथ्वीराज सुकुमारन) पर, जो एक सच्चे देशभक्त हैं और अपने परिवार—पत्नी मेहर मेनन (काजोल) और बेटे हरमन मेनन (इब्राहिम अली खान)—के साथ कश्मीर में रहते हैं। हरमन एक युवा लड़का है जिसकी ज़िंदगी में सब कुछ सामान्य लगता है, लेकिन सरहद पार बैठे दुश्मन की उस पर बुरी नजर है। 

वे विजय मेनन पर एक ऐसा दबाव बनाते हैं जो उन्हें एक असंभव निर्णय की कगार पर ले आता है। इस तनाव के बीच परिवार टूटने लगता है, रिश्ते परख में आते हैं और एक ऐसा रहस्य सामने आता है जो कहानी को पूरी तरह मोड़ देता है।

फिल्म की खासियतें

  1. भावनात्मक गहराई: ‘सरजमीन’ केवल एक देशभक्ति फिल्म नहीं है, यह एक भावनात्मक ड्रामा है जिसमें पिता-पुत्र, मां-पुत्र और पति-पत्नी के रिश्तों की गहराई दिखाई गई है। फिल्म में पारिवारिक बॉन्डिंग का जो चित्रण है, वह दर्शकों को भावनात्मक रूप से जोड़ता है।
  2. कहानी की गति और ट्विस्ट: फिल्म की रफ्तार संतुलित है। कहीं भी कहानी खिंची हुई या उबाऊ नहीं लगती। एंड में एक ऐसा ट्विस्ट आता है जो दर्शकों को चौंका देता है और फिल्म का असर और गहरा कर देता है।
  3. देशभक्ति का नया दृष्टिकोण: भारत-पाक तनाव और कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दे को फिल्म ने परिपक्वता से दर्शाया है। यह न तो बहुत ड्रामेटिक है और न ही एकतरफा। फिल्म का संदेश है कि देश के लिए कुर्बानी व्यक्तिगत कीमत पर भी दी जा सकती है।

अभिनय प्रदर्शन

पृथ्वीराज सुकुमारन ने कर्नल विजय मेनन के किरदार में जान डाल दी है। उनके चेहरे की दृढ़ता और आंखों की संवेदनशीलता किरदार में गहराई लाती है. काजोल एक बार फिर अपनी दमदार परफॉर्मेंस से प्रभावित करती हैं। क्लाइमैक्स में उनका अभिनय खास तौर पर याद रखने लायक है। इब्राहिम अली खान ने ‘सरजमीन’ में अपने अभिनय में सुधार दिखाया है। 

‘नादानियां’ के बाद उन्हें काफी आलोचना झेलनी पड़ी थी, लेकिन इस फिल्म में वे काफी बेहतर नजर आए हैं। मिहिर आहूजा भी अपने सपोर्टिंग रोल में प्रभावशाली रहे हैं।

तकनीकी पक्ष

  • सिनेमैटोग्राफी: फिल्म के दृश्य खूबसूरती और भावनाओं से भरे हैं, विशेषकर कश्मीर की घाटियों में शूट हुए सीन प्रभावी हैं।
  • बैकग्राउंड म्यूजिक (BGM): फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर जबरदस्त है और भावनात्मक दृश्यों को उभारता है।
  • गाने: संगीत कहानी से मेल खाता है और बिना कहानी की गति को रोके, भावनाओं को गहराई देता है।

आयुष सोनी की लिखी स्क्रिप्ट में देशभक्ति और पारिवारिक भावनाओं का बेहतरीन मिश्रण है। वहीं कायोज़ ईरानी का निर्देशन परिपक्व है, खासकर क्लाइमैक्स और इमोशनल दृश्यों में उनकी पकड़ साफ नजर आती है।

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