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Sawan 2025: शिव भक्ति में क्यों खास मानी जाती है संख्या 3

Sawan 2025: शिव भक्ति में क्यों खास मानी जाती है संख्या 3

सावन का महीना आते ही हर शिव भक्त के मन में भक्ति की गंगा बहने लगती है। मंदिरों में 'बोल बम' की गूंज और शिवालयों में जलाभिषेक की तैयारियों से माहौल पूरी तरह से भक्तिमय हो जाता है। लेकिन क्या आपने कभी गौर किया है कि भगवान शिव से जुड़ी हर एक चीज में ‘तीन’ की विशेष भूमिका होती है? चाहे वह त्रिशूल हो, त्रिनेत्र हो, या फिर त्रिपुंड हर जगह संख्या तीन की झलक मिलती है।

तो आखिर क्या है इस संख्या का रहस्य? क्या केवल प्रतीकात्मक है या इसके पीछे कोई गहरी आध्यात्मिक समझ भी छिपी हुई है? सावन 2025 के इस विशेष मौके पर जानते हैं कि भगवान शिव को क्यों प्रिय है यह अद्भुत संख्या तीन।

त्रिशूल: तीनों लोकों का प्रतिनिधित्व

भगवान शिव के हाथ में जो त्रिशूल रहता है, वह केवल एक हथियार नहीं है बल्कि तीनों लोकों आकाश, धरती और पाताल का प्रतीक माना जाता है। यह त्रिशूल दर्शाता है कि महादेव त्रिलोकनाथ हैं, जिनके अधिकार में संपूर्ण ब्रह्मांड है।

इसके अलावा त्रिशूल को तीन गुणों सात्विक, राजसिक और तामसिक से भी जोड़ा जाता है। ये तीनों गुण हर जीव के अंदर पाए जाते हैं और शिव ही वह शक्ति हैं जो इनका संतुलन बनाए रखते हैं। त्रिशूल इन्हीं तीनों गुणों को नियंत्रित करने का प्रतीक है।

त्रिनेत्र: शिव का ज्ञान और विनाश का द्वार

शिव जी को त्रिनेत्रधारी भी कहा जाता है। उनके माथे पर स्थित तीसरा नेत्र सामान्य नेत्रों से अलग है। यह नेत्र केवल देखने के लिए नहीं है, बल्कि यह चेतना, अंतर्ज्ञान और परम ज्ञान का प्रतीक है।

पुराणों में वर्णित एक कथा के अनुसार, जब कामदेव ने भगवान शिव को मोहित करने की कोशिश की, तो शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया और कामदेव का भस्म हो गया। यही तीसरा नेत्र किसी के विनाश का कारण बन सकता है और किसी को ज्ञान की ऊंचाई तक भी पहुंचा सकता है।

तीन नेत्र मन, बुद्धि और चित्त के संतुलन का प्रतीक भी माने जाते हैं। शिव का त्रिनेत्र यह दर्शाता है कि वह केवल बाहरी संसार नहीं, बल्कि अंतरात्मा की भी निगरानी करते हैं।

त्रिपुंड: शिव के मस्तक पर तीन रेखाओं का संकेत

शिव जी के माथे पर जो सफेद भस्म से तीन क्षैतिज रेखाएं खींची जाती हैं, उसे त्रिपुंड कहा जाता है। यह केवल एक धार्मिक चिह्न नहीं है, बल्कि यह गहराई से आध्यात्मिकता से जुड़ा हुआ है।

त्रिपुंड की तीन रेखाएं भूलोक, भुवर्लोक और स्वर्लोक इन तीनों लोकों का प्रतिनिधित्व करती हैं। साथ ही यह आधिभौतिक (भौतिक संसार), आध्यात्मिक (आत्मा) और आधिदैविक (देवता और प्रकृति) के बीच के संतुलन का भी संकेत देती हैं।

भस्म लगाना शिवभक्ति का प्रतीक माना जाता है। यह भस्म अहंकार, मोह और माया के नाश का सूचक है, जो त्रिपुंड की रेखाओं में निहित है।

बेलपत्र: त्रिदेवों का प्रतीक

शिवलिंग पर जो बेलपत्र चढ़ाया जाता है, वह हमेशा तीन पत्तियों वाला होता है। यह तीन पत्ते ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन त्रिदेवों के प्रतीक होते हैं।

इसके अलावा, कुछ धार्मिक मान्यताओं में इन पत्तियों को इच्छा, क्रिया और ज्ञान तीनों शक्तियों का भी स्वरूप माना जाता है। जब बेलपत्र शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है, तो ऐसा माना जाता है कि भक्त तीनों शक्तियों को शिव को अर्पित करता है।

त्रिशक्ति: तीन देवियां भी हैं जुड़ी शिव से

त्रिशक्ति सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती को भी संख्या तीन से जोड़ा जाता है और ये तीनों देवियां शिव के परिवार से गहराई से जुड़ी हैं। सरस्वती ज्ञान की देवी हैं, लक्ष्मी धन की देवी और पार्वती शक्ति की देवी। इन तीनों के संग शिव का रूप पूर्ण होता है।

तीन की संख्या क्यों बनती है शिव तत्व की पहचान

यदि आप गहराई से देखें तो भगवान शिव के प्रत्येक प्रतीक में तीन की संख्या बार-बार सामने आती है। चाहे वह उनका अस्त्र हो, शरीर की रचना हो या पूजा की विधि हर जगह तीन की उपस्थिति से यह प्रतीत होता है कि भगवान शिव के दर्शन, ज्ञान और चेतना तीन स्तंभों पर आधारित हैं।

तीन केवल एक संख्या नहीं बल्कि एक संतुलन है सृष्टि, पालन और संहार का। यही कारण है कि शिव केवल एक देवता नहीं बल्कि एक संपूर्ण तत्व हैं जो ब्रह्मांड के हर कोने में व्याप्त हैं।

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