Pune

ताले से पूरी होती हैं मुरादें? जानिए प्रयागराज के इस मंदिर का अनोखा राज

ताले से पूरी होती हैं मुरादें? जानिए प्रयागराज के इस मंदिर का अनोखा राज

प्रयागराज के मुट्ठीगंज इलाके में स्थित नाथेश्वर महादेव मंदिर में सावन सोमवार के दिन कुछ अलग ही नज़ारा देखने को मिलता है। सुबह चार बजे से ही भक्तों की लंबी कतार लग जाती है। कोई गंगाजल लेकर आता है, तो कोई दूध, बेलपत्र और धतूरा लेकर बारी का इंतज़ार करता है। लेकिन सबसे अनोखी बात यह है कि यहां हर भक्त पूजा के साथ एक ताला भी लाता है, जिसे मंदिर की दीवार या रेलिंग पर लगाता है।

क्यों लगाते हैं भक्त ताले

इस मंदिर को लोग 'ताले वाले महादेव मंदिर' के नाम से भी जानते हैं। यहां आने वाला हर श्रद्धालु किसी न किसी मनोकामना के साथ आता है और उसे ताले में बांधकर भोलेनाथ को सौंप देता है। मान्यता है कि ताला लगाने से मन की बात भगवान तक पहुंचती है और इच्छाएं पूरी होती हैं। भक्त जब दोबारा मंदिर आता है, तो या तो उसी ताले को खोल देता है या फिर दूसरा ताला लगाकर भगवान का धन्यवाद करता है।

हर ताले के पीछे छुपी होती है एक कहानी

मंदिर परिसर में सैकड़ों ताले लटके रहते हैं। कोई विवाह की कामना लेकर आया है, कोई संतान सुख के लिए, तो कोई नौकरी या मानसिक शांति के लिए। हर ताला अपने भीतर एक दुआ, एक आस और एक श्रद्धा को समेटे हुए होता है। यह परंपरा केवल ताला लगाने तक सीमित नहीं, बल्कि यह उस विश्वास का प्रतीक है जो भक्त शिव जी पर रखते हैं।

भोलेनाथ के जयघोष से गूंजता है मंदिर परिसर

सावन सोमवार की सुबह मंदिर में शिव भक्तों की गूंज सुनाई देती है। 'हर हर महादेव' और 'बोल बम' के नारों से वातावरण भक्तिमय हो जाता है। भक्त जन महादेव के शिवलिंग पर गंगाजल, दूध, भांग, धतूरा और बेलपत्र अर्पित करते हैं। महिलाएं, युवा, बुजुर्ग – हर वर्ग के लोग अपने मन की मुराद लेकर भोलेनाथ के दरबार में हाजिरी लगाते हैं।

मंदिर समिति ने की भक्तों की सुविधा की व्यवस्था

सावन के सोमवार को आने वाली भीड़ को देखते हुए नाथेश्वर महादेव मंदिर समिति ने व्यापक इंतज़ाम किए हैं। मंदिर के आसपास छांव, जलपान और आराम की सुविधा उपलब्ध कराई गई है। साथ ही पुलिस प्रशासन और स्वयंसेवकों की सहायता से दर्शन और पूजा में व्यवस्था बनी रहती है। किसी प्रकार की अफरा-तफरी न हो इसके लिए सख्त निगरानी रखी जा रही है।

आस्था और परंपरा का अद्भुत संगम

नाथेश्वर महादेव मंदिर में यह परंपरा नई नहीं है। कई वर्षों से भक्त यहां आकर ताला लगाते आ रहे हैं। इस मंदिर की प्रसिद्धि केवल प्रयागराज तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि आसपास के जिलों से लेकर दूर-दराज़ के राज्य जैसे बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश से भी श्रद्धालु यहां आते हैं।

तालों से सजी रहती है मंदिर की दीवारें और रेलिंग

मंदिर की दीवारें और रेलिंगें छोटे-बड़े रंग-बिरंगे तालों से भरी होती हैं। कुछ नए लगते हैं, तो कुछ पर धूल जमी होती है – जो यह बताता है कि कोई सालों पहले अपनी मुराद लेकर आया था और उसका ताला अब भी वहां लटका है। यह दृश्य मंदिर में प्रवेश करते ही श्रद्धालुओं के मन को आस्था से भर देता है।

शिवभक्तों के लिए यह मंदिर बन चुका है विशेष तीर्थ

प्रयागराज आने वाले श्रद्धालु संगम स्नान के बाद अब इस मंदिर में दर्शन के लिए भी आते हैं। धीरे-धीरे यह मंदिर सावन के दौरान विशेष तीर्थ स्थान बन गया है जहां ताले में बंद हर दुआ भोलेनाथ के चरणों में सहेजी जाती है।

तालों के साथ जुड़ी हैं उम्मीदें और विश्वास

हर ताले के साथ एक उम्मीद जुड़ी होती है। यह केवल एक धार्मिक रिवाज नहीं, बल्कि भक्तों की भावनाओं का प्रतीक है। शिवलिंग पर जलाभिषेक के साथ जब भक्त ताला लगाता है, तो वह अपने जीवन की कठिनाइयों, दुखों और इच्छाओं को भगवान शिव को सौंप देता है।

नाथेश्वर महादेव मंदिर में हर ताला एक कहानी कहता है

इस मंदिर में आने वाला हर व्यक्ति अपने साथ एक कहानी लाता है – कोई अधूरी पढ़ाई की, कोई टूटे रिश्ते की, कोई जीवन की दिशा खोने की। और जब वह ताला खोलता है, तो मानो भगवान शिव स्वयं उसे यह संदेश देते हैं कि उसकी कामना पूरी हो चुकी है।

हर सावन सोमवार मंदिर में दिखता है श्रद्धा का विशाल स्वरूप

सावन के सोमवार को यहां आने वाले भक्तों की संख्या हजारों में होती है। सभी लोग एक ही उद्देश्य लेकर आते हैं – अपने मन की बात भोलेनाथ तक पहुंचाना। और मंदिर परिसर में लटकते ये ताले इस बात के साक्षी होते हैं कि यहां सिर्फ पूजा नहीं होती, यहां भरोसा पनपता है। 

Leave a comment