सुप्रीम कोर्ट ने आज शिवसेना (यूबीटी) की उस याचिका पर सुनवाई की, जिसमें पार्टी ने महाराष्ट्र में होने वाले निकाय चुनावों को ध्यान में रखते हुए अपने चुनाव चिन्ह को लेकर जल्द फैसला देने की मांग की थी।
Supreme Court: महाराष्ट्र की राजनीति में पिछले दो वर्षों से लगातार जारी घमासान अब एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर है। उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में जोर देकर कहा कि उसके चुनाव चिन्ह से जुड़े विवाद की जल्द सुनवाई की जाए, क्योंकि राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव सिर पर हैं और अगर अधिसूचना जारी हो गई, तो पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच के सामने पेश हुए शिवसेना (यूबीटी) के वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत ने स्पष्ट कहा कि पार्टी का चुनाव चिन्ह ही उनकी पहचान है, और निकाय चुनाव की अधिसूचना एक बार जारी होने के बाद उसमें बदलाव करना असंभव होगा। उन्होंने अदालत से अपील की कि या तो इस हफ्ते या अगले हफ्ते ही सुनवाई कर दी जाए, ताकि स्थिति स्पष्ट हो सके।
दो साल से अटका विवाद, आयोग के फैसले पर सवाल
दरअसल, जून 2022 में शिवसेना के टूटने के बाद ही चुनाव चिन्ह को लेकर विवाद गहराया। एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) दोनों ने पारंपरिक ‘धनुष-बाण’ चुनाव चिन्ह पर अपना दावा जताया था। मामला चुनाव आयोग पहुंचा, जिसने एक लंबी सुनवाई के बाद फरवरी 2023 में शिंदे गुट को असली शिवसेना करार देते हुए ‘धनुष-बाण’ चिन्ह उन्हें दे दिया।
चुनाव आयोग के इस फैसले को उद्धव ठाकरे गुट ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जो अब तक लंबित है। देवदत्त कामत ने दलील में कहा, हम दो साल से न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं, लेकिन अब निकाय चुनाव बेहद नजदीक हैं। यदि चुनाव चिन्ह का मामला अधूरा रहा और अधिसूचना जारी हो गई, तो हमारी पार्टी को अपूरणीय क्षति होगी।
14 जुलाई को होगी अगली सुनवाई
सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल तत्काल अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार करते हुए कहा कि मामला 14 जुलाई 2025 को दोबारा सूचीबद्ध किया जाएगा। अदालत ने कहा कि वह उस दिन सभी पक्षों की दलीलें सुनकर आगे का रास्ता तय करेगी। महाराष्ट्र के निकाय चुनाव, खासकर मुंबई, ठाणे, पुणे जैसे बड़े महानगरों में, शिवसेना (यूबीटी) के लिए जीवन-मरण का सवाल बने हुए हैं। पार्टी नेताओं का कहना है कि कार्यकर्ता और मतदाता ‘धनुष-बाण’ चिन्ह से दशकों से जुड़ाव महसूस करते हैं, ऐसे में चुनाव के वक्त कोई और प्रतीक चिन्ह देना सीधे तौर पर नुकसान की वजह बनेगा।
पार्टी सूत्रों के अनुसार, ठाकरे खेमे की योजना निकाय चुनाव के जरिए अपनी राजनीतिक पकड़ फिर मजबूत करने की है, जिसके लिए पारंपरिक चुनाव चिन्ह का मिलना बेहद जरूरी है।
शिंदे खेमे की दलील
उधर, एकनाथ शिंदे खेमे का कहना है कि चुनाव आयोग ने पूरी प्रक्रिया का पालन करते हुए उनका पक्ष मजबूत माना और चिन्ह दिया, इसलिए अब इसमें कोई बदलाव नहीं होना चाहिए। शिंदे गुट के नेता पहले भी कह चुके हैं कि सुप्रीम कोर्ट में बार-बार सुनवाई टालने का मकसद सिर्फ राजनीतिक लाभ उठाना है।विशेषज्ञ मानते हैं कि निकाय चुनाव शिवसेना के दोनों गुटों के लिए ताकत की असली परीक्षा होंगे। यदि उद्धव ठाकरे गुट को चुनाव चिन्ह पर राहत नहीं मिली, तो उसे स्थानीय स्तर पर संगठन विस्तार और वोटरों को जोड़ने में बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।