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सिंधी तीजड़ी व्रत 2025: कब और कैसे मनाएं यह पवित्र उत्सव? जानिए धार्मिक और पारंपरिक महत्व

सिंधी तीजड़ी व्रत 2025: कब और कैसे मनाएं यह पवित्र उत्सव? जानिए धार्मिक और पारंपरिक महत्व

सिंधी समाज की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराएं देश भर में अपनी विशेष पहचान रखती हैं। इन्हीं परंपराओं में एक महत्वपूर्ण व्रत है तीजड़ी, जिसे सिंधी तीज के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत विवाहित महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है, जो अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए उपवास रखती हैं। साल 2025 में यह व्रत 12 अगस्त को मनाया जाएगा।

क्या होता है तीजड़ी व्रत और कब रखा जाता है

तीजड़ी व्रत भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। यह सावन की पूर्णिमा के तीन दिन बाद आता है। इस दिन सिंधी समाज की महिलाएं पूरी श्रद्धा और नियम से उपवास रखती हैं। यह पर्व हरियाली तीज, कजरी तीज और करवा चौथ की ही तरह सुहाग की रक्षा के लिए मनाया जाता है, लेकिन इसका तरीका और परंपराएं विशिष्ट सिंधी परंपरा को दर्शाती हैं।

तीजड़ी व्रत का धार्मिक और पारंपरिक महत्व

सिंधी समाज में तीजड़ी माता को उर्वरता की देवी माना जाता है। मान्यता है कि जो स्त्रियां इस दिन पूरे नियम और विधि से व्रत करती हैं, उन्हें पति की लंबी उम्र, अच्छा स्वास्थ्य और संतान सुख की प्राप्ति होती है। साथ ही जिन कन्याओं का विवाह तय हो चुका होता है, वे भी इस व्रत को रखती हैं ताकि उनका वैवाहिक जीवन सुखमय हो।

व्रत से जुड़ी प्रमुख परंपराएं और रस्में

तीजड़ी व्रत में कई पारंपरिक रस्में निभाई जाती हैं, जो इस पर्व को अन्य व्रतों से अलग बनाती हैं। इस दिन महिलाएं विशेष रूप से पारंपरिक परिधान पहनती हैं, अपने हाथों में मेहंदी रचाती हैं और सोलह श्रृंगार करके पूजा में भाग लेती हैं।

असुर की रस्म

जैसे करवा चौथ में सरगी का महत्व होता है, उसी तरह तीजड़ी में ‘असुर’ की रस्म निभाई जाती है। व्रती महिलाएं सूर्योदय से पहले लोल (गुड़ या शक्कर से बनी मोटी रोटी), कोकी, रबड़ी और मिठाई का सेवन करती हैं। यह भोजन व्रत के दौरान शरीर को ऊर्जा देने के लिए होता है, लेकिन इसे सूरज निकलने से पहले ही पूरा कर लिया जाता है।

टिकाना और पूजा स्थल की परंपरा

तीजड़ी व्रत की पूजा टिकाने पर की जाती है। टिकाना सिंधी समाज का वह स्थल होता है जहां धार्मिक अनुष्ठान संपन्न किए जाते हैं। टिकाने पर मिट्टी के एक पात्र में गेहूं के अंकुर या आम का छोटा पौधा लगाया जाता है। इसे पूजनीय माना जाता है। पूजा के दौरान वहां चीनी मिले जल, तुलसी के पत्ते, गाजर के टुकड़े और अन्य पूजन सामग्री अर्पित की जाती है।

शाम को होती है तीजड़ी माता की पूजा

पूरे दिन निर्जला व्रत रखने के बाद शाम को महिलाएं सजधज कर तीजड़ी माता की पूजा करती हैं। इस दौरान पारंपरिक कथा का पाठ भी किया जाता है जिसमें व्रत की महिमा, तीजड़ी माता की कृपा और व्रती स्त्रियों की श्रद्धा का वर्णन होता है।

चंद्रमा को अर्घ्य देना

तीजड़ी व्रत की पूर्ति चंद्रमा को अर्घ्य देकर होती है। जब चंद्रमा दिखाई देता है, तब महिलाएं उसे साबूत चावल, दूध, चीनी और खीरा अर्पित करती हैं। इसी समय एक विशेष वाक्य बोला जाता है जो इस व्रत की पारंपरिक पहचान बन चुका है –
“तीजड़ी आये, खुम्बरा वेसा करे, आयों जो गोरियों, लोटियों खीर भरे।”
इसका भाव है कि तीजड़ी आए और सभी घरों में सुख-समृद्धि की वर्षा हो।

पारण के साथ व्रत पूर्ण होता है

चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद महिलाएं सात्विक भोजन करके व्रत का पारण करती हैं। इस भोजन में अधिकतर फल, दूध और परंपरागत व्यंजन शामिल होते हैं। पारण के समय भी विशेष विधि का पालन किया जाता है।

तीजड़ी माता की विशेष मान्यता

तीजड़ी माता को सिंधी समाज में विशेष स्थान प्राप्त है। उनकी पूजा में मूर्ति की जगह मिट्टी के पात्र में उगाए गए अंकुरों को ही प्रतीक रूप में पूजा जाता है। यह माना जाता है कि अंकुरण जीवन की शुभ शुरुआत का संकेत होता है। इसी कारण इस दिन गेहूं, मूंग या अन्य बीज बोए जाते हैं। जब ये अंकुरित होते हैं, तो माना जाता है कि माता की कृपा प्राप्त हुई है।

2025 में कब है तीजड़ी व्रत

साल 2025 में यह व्रत 12 अगस्त को पड़ रहा है। यह दिन भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि है। इस दिन देशभर में सिंधी समाज की महिलाएं पूरे उत्साह और श्रद्धा से यह व्रत रखेंगी।

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