Pune

सोमनाथ मंदिर: शिवभक्ति, इतिहास और आस्था का अमर प्रतीक जो हर बार टूटकर फिर खड़ा हुआ

सोमनाथ मंदिर: शिवभक्ति, इतिहास और आस्था का अमर प्रतीक जो हर बार टूटकर फिर खड़ा हुआ

भारत की पावन भूमि पर कई ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल हैं, लेकिन उनमें से कुछ ऐसे हैं जो समय की रेत पर अमिट छाप छोड़ते हैं। ऐसा ही एक दिव्य और प्राचीन स्थल है — सोमनाथ मंदिर। यह न केवल एक मंदिर है, बल्कि आस्था, साहस और सांस्कृतिक पुनर्जन्म की गाथा भी है। गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल में स्थित यह मंदिर भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से पहला माना जाता है। इतिहास के अनेक उतार-चढ़ावों के बावजूद सोमनाथ मंदिर बार-बार बना, टूटा और फिर से खड़ा हुआ — जैसे यह स्वयं शिव की तरह अविनाशी हो।

आस्था का अमर दीप: सोमनाथ की शुरुआत

सोमनाथ मंदिर भारत के गुजरात राज्य के समुद्र किनारे स्थित एक प्रसिद्ध और प्राचीन शिव मंदिर है। यह मंदिर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में सबसे पहला माना जाता है। कहा जाता है कि चंद्रदेव ने भगवान शिव की आराधना करके अपने श्राप से मुक्ति पाई थी और फिर इस मंदिर का निर्माण करवाया। 'सोमनाथ' का अर्थ होता है 'चंद्रमा के स्वामी', जो शिवजी का ही एक नाम है। यह मंदिर केवल एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि भारत की आस्था, इतिहास और संस्कृति की जीवंत पहचान है।

प्राचीन ग्रंथों में प्रभास: तीर्थ की पहली गूंज

महाभारत, भागवत पुराण और स्कंद पुराण जैसे अनेक हिंदू ग्रंथों में प्रभास तीर्थ का उल्लेख मिलता है। यह वह भूमि मानी जाती है जहां भगवान श्रीकृष्ण ने अपने अंतिम दिन बिताए और यहीं से वैकुंठ की यात्रा की। यह स्थान वैदिक युग से ही पूजनीय रहा है, जहां तीन नदियाँ—सरस्वती, कपिला और हिरण—एक साथ समुद्र से मिलती हैं, जिसे त्रिवेणी संगम कहते हैं। यह संगम आत्मा को शुद्ध करने का प्रतीक माना जाता है।

मंदिर का पहला निर्माण: इतिहास या रहस्य?

प्रभास तीर्थ भारत का एक बहुत ही पवित्र स्थान है, जिसका वर्णन कई पुराने धार्मिक ग्रंथों जैसे महाभारत, भागवत पुराण और स्कंद पुराण में मिलता है। यही वह जगह है जहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने अपना अंतिम समय बिताया और फिर स्वर्ग को प्रस्थान किया। यह तीर्थ स्थल वैदिक काल से ही श्रद्धा का केंद्र रहा है। यहाँ तीन नदियाँ—सरस्वती, कपिला और हिरण—एक साथ मिलती हैं, जिसे त्रिवेणी संगम कहा जाता है। यह संगम स्थान पापों से मुक्ति और आत्मा की शुद्धि का प्रतीक माना जाता है।

महमूद गजनवी का हमला: आस्था पर पहली चोट

1026 ईस्वी में अफगान शासक महमूद गजनवी भारी फ़ौज और तोप–तलवार लेकर सोमनाथ पहुँचा। उसका मकसद मंदिर की अपार सम्पत्ति लूटना और शिव मूर्ति को तोड़कर लोगों की आस्था को चोट पहुँचाना था। कहा जाता है कि वह सोने–चाँदी से जड़े दरवाज़े, रत्नों से भरे कलश और महँगी मूर्तियाँ उखाड़-उखाड़ कर ऊँटों पर लादकर गजनी ले गया। इस लूट में मंदिर की इमारत भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुई।

हमले के दौरान गजनवी की सेना ने हज़ारों निहत्थे श्रद्धालुओं की निर्ममता से हत्या कर दी। यह घटना गुजरात ही नहीं, पूरे देश के लोगों के लिए गहरी पीड़ा और आक्रोश का कारण बनी। सोमनाथ पर पड़ी यह पहली बड़ी चोट भारतीय इतिहास में ऐसा घाव छोड़ गई जिसे पीढ़ियाँ भूल नहीं सकीं, मगर इसी आघात ने भविष्य में मंदिर के पुनर्निर्माण और आस्था की दृढ़ता को भी नई शक्ति दी।

आक्रमणों की श्रृंखला: आस्था बनाम सत्ता

सोमनाथ मंदिर पर महमूद गजनवी के बाद भी कई आक्रांताओं ने हमले किए। अलाउद्दीन खिलजी, ज़फर खान, महमूद बेगड़ा और अंत में औरंगज़ेब ने भी इस पवित्र स्थल को नष्ट करने की कोशिश की। हर बार मंदिर को तोड़ा गया, लेकिन हर बार श्रद्धालुओं ने उसे फिर से खड़ा कर दिया। यह मंदिर सिर्फ ईंट और पत्थरों का ढांचा नहीं, बल्कि भारतीय जन-आस्था, साहस और संस्कृति की अमर पहचान बन गया।

गुलामी से आज़ादी तक: पुनर्निर्माण की पवित्र भावना

1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ, तब तक सोमनाथ मंदिर पूरी तरह खंडहर में बदल चुका था। देश आज़ादी की नई राह पर चल रहा था, और ऐसे समय में देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने इस मंदिर के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया। उन्होंने तय किया कि मंदिर को सरकारी पैसे से नहीं, बल्कि जनसहयोग से बनाया जाएगा ताकि यह देश की जनता की आस्था का प्रतीक बने।

हालांकि, उस समय के प्रधानमंत्री पंडित नेहरू इस निर्णय से सहमत नहीं थे। लेकिन भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने मंदिर के उद्घाटन में भाग लेकर यह स्पष्ट कर दिया कि यह पुनर्निर्माण केवल धार्मिक नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और आत्मगौरव का भी पुनर्जन्म है। 1951 में जब मंदिर दोबारा भक्तों के लिए खोला गया, तब वह आज़ाद भारत की नई पहचान बन गया।

आधुनिक मंदिर: कला, शिल्प और आत्मा का संगम

आधुनिक सोमनाथ मंदिर एक शानदार धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर है, जिसे मारू-गुर्जर स्थापत्य शैली में बनाया गया है। इसका मुख्य शिखर गर्भगृह से 49 फीट ऊँचा है और इसकी दीवारों पर की गई नक्काशी बेहद सुंदर और बारीकी से की गई है। मंदिर के दक्षिण और पश्चिम भागों में आज भी प्राचीन मंदिर के कुछ मूल स्तंभ और मूर्तियाँ देखी जा सकती हैं, जो इसके गौरवशाली इतिहास की झलक देती हैं। इसकी वास्तुकला लूनावासाही जैसे भव्य जैन मंदिरों से मेल खाती है, जिससे यह मंदिर कला, भक्ति और संस्कृति का अद्वितीय संगम बन जाता है।

आज का सोमनाथ: पर्यटन से तीर्थ तक की यात्रा

आज सोमनाथ केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक विरासत और पर्यटन केंद्र भी बन चुका है। समुद्र के किनारे बसे इस मंदिर की गूंज अब पूरे विश्व में है। यहाँ पर प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु आते हैं, खासकर शिवरात्रि और कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर। सरकार द्वारा प्रस्तावित तीर्थ गलियारा इस मंदिर को भविष्य में और भी व्यापक पहचान दिलाने वाला है।

सोमनाथ केवल एक मंदिर नहीं है, यह भारतीय सभ्यता की जीवंत आत्मा है। इसे जितनी बार गिराया गया, उतनी ही बार खड़ा किया गया। यह स्थान हमें सिखाता है कि विश्वास और श्रद्धा को मिटाया नहीं जा सकता। इतिहास ने इसे बार-बार ललकारा, लेकिन हर बार इसने अपने पुनर्जन्म से यह साबित कर दिया कि आस्था का कोई अंत नहीं होता। यह मंदिर एक प्रेरणा है—हर उस व्यक्ति के लिए जो टूटकर फिर उठने का साहस रखता है।

Leave a comment