सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति संदर्भ सुनवाई के दौरान नेपाल और बांग्लादेश में हुई हिंसा का उल्लेख किया गया। न्यायालय ने राज्यों को विधेयकों को समय पर मंजूरी देने और संविधान के नियमों का पालन करने की चेतावनी दी।
New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के संदर्भ पर सुनवाई के दौरान नेपाल और बांग्लादेश में हुई हिंसक घटनाओं का जिक्र किया। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने 12 अप्रैल के आदेश पर सुनवाई के दौरान यह बात कही जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए राज्यों के विधेयकों को मंजूरी देने की समय-सीमा तय करने की चर्चा थी। कोर्ट ने इस मामले में संविधान और कानून के महत्व पर जोर दिया और यह भी कहा कि पड़ोसी देशों में हुई हिंसा हमें सावधान करती है।
CJI ने नेपाल की घटनाओं का उल्लेख किया
मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा कि नेपाल में हाल के दिनों में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन और प्रदर्शन हुए, जिनमें कई लोग मारे गए और प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा। उन्होंने यह उदाहरण देते हुए बताया कि पड़ोसी देशों में संविधान और कानून की प्रक्रिया में ढिलाई कितनी गंभीर समस्याएं पैदा कर सकती है।
जस्टिस विक्रम नाथ ने बांग्लादेश हिंसा की याद दिलाई
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ ने बांग्लादेश में पिछले साल हुए छात्रों के नेतृत्व वाले विरोध प्रदर्शनों का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि इस आंदोलन में सरकारी भवनों पर कब्जा और तोड़फोड़ हुई थी। इस हिंसा के कारण 100 से अधिक लोगों की मौत हुई और सरकार ने सत्ता अंतरिम प्रशासन को सौंप दी। न्यायाधीश ने यह उदाहरण देकर बताया कि कानून और संविधान की प्रक्रिया में किसी भी तरह की ढिलाई गंभीर परिणाम ला सकती है।
संविधान और राष्ट्रपति का अधिकार
कोर्ट में यह भी चर्चा हुई कि भारतीय संविधान राष्ट्रपति को किसी भी कानूनी मुद्दे पर सलाह लेने का अधिकार देता है, खासकर जब यह मुद्दा सार्वजनिक महत्व का हो या जनता को प्रभावित करता हो। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हमें अपने संविधान पर गर्व होना चाहिए और कानून के शासन का पालन करना अनिवार्य है।
सॉलिसिटर जनरल ने राज्यों और राज्यपालों का किया बचाव
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के राज्यपालों द्वारा विधेयकों की मंजूरी में विलंब असामान्य है। उन्होंने कहा कि 1970 से 2025 तक केवल 20 ऐसे विधेयक हैं जिन्हें विलंबित किया गया। उन्होंने यह भी बताया कि किसी भी राज्य सरकार द्वारा पारित सभी विधेयकों में से 90 प्रतिशत को एक महीने के भीतर मंजूरी मिल जाती है।
गैर-भाजपा शासित राज्यों के आरोप
इस मामले में गैर-भाजपा शासित राज्यों जैसे तमिलनाडु, केरल और पंजाब ने आरोप लगाया कि उनके राज्यपाल जानबूझकर विधेयकों पर सहमति नहीं दे रहे हैं या उन्हें राष्ट्रपति के पास भेजकर विलंब कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर ध्यान दिया और राज्यों को संविधान और कानून के अनुसार कार्य करने की चेतावनी दी।
सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा कि पड़ोसी देशों की घटनाओं को देखकर यह स्पष्ट होता है कि लोकतंत्र और कानून की प्रक्रिया को नज़रअंदाज करना गंभीर परिणाम ला सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि आंकड़े लेना जरूरी नहीं है, बल्कि संविधान के अनुशासन का पालन हर हाल में होना चाहिए।