भारत ने अक्टूबर में अमेरिका से कच्चे तेल का आयात 2022 के बाद अपने उच्चतम स्तर पर पहुंचाया, जो 540,000 बैरल प्रतिदिन तक रहा। यह कदम रूस पर निर्भरता कम करने, सप्लाई में विविधता लाने और अमेरिका के साथ व्यापारिक तनाव घटाने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। रूस अब भी भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता है।
Crude Oil Import: भारत ने अक्टूबर 2025 में अमेरिका से कच्चे तेल का आयात तीन साल के रिकॉर्ड स्तर तक बढ़ा दिया है। केप्लर के आंकड़ों के अनुसार, यह आयात 540,000 बैरल प्रतिदिन तक पहुंच गया, जबकि नवंबर में यह 400,000-450,000 बैरल प्रतिदिन रहने की उम्मीद है। यह बढ़ोतरी रूस पर निर्भरता घटाने और ट्रंप प्रशासन के साथ व्यापारिक तनाव कम करने के प्रयासों का हिस्सा है। रूस अभी भी भारत का सबसे बड़ा कच्चा तेल सप्लायर बना हुआ है, जबकि इराक और सऊदी अरब क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं।
अक्टूबर में अमेरिका से रिकॉर्ड आयात
ऊर्जा विश्लेषण एजेंसी केप्लर के आंकड़ों के अनुसार, 27 अक्टूबर तक भारत ने अमेरिका से करीब 5.40 लाख बैरल प्रतिदिन के हिसाब से कच्चा तेल खरीदा। यह 2022 के बाद से सबसे अधिक स्तर है। अमेरिकी निर्यात आंकड़े बताते हैं कि अक्टूबर का पूरा महीना औसतन 5.75 लाख बैरल प्रतिदिन के स्तर पर समाप्त हो सकता है। नवंबर में यह आंकड़ा कुछ घटकर 4 से 4.5 लाख बैरल प्रतिदिन तक रहने की संभावना है। यह मात्रा पिछले साल के औसत 3 लाख बैरल प्रतिदिन से काफी अधिक है।
इस बढ़ोतरी को भारत की सप्लाई चेन में विविधता लाने और रूस पर निर्भरता घटाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। अमेरिका से तेल की खरीद बढ़ने के पीछे मुख्य कारण आर्थिक लाभ और वैश्विक बाजार में फैले दामों का अंतर बताया जा रहा है।
रूस अब भी सबसे बड़ा तेल सप्लायर
हालांकि अमेरिका से खरीदारी बढ़ी है, लेकिन रूस अभी भी भारत का सबसे बड़ा कच्चा तेल सप्लायर बना हुआ है। रूस से भारत का कुल तेल आयात करीब एक-तिहाई हिस्से के बराबर है। इराक दूसरे और सऊदी अरब तीसरे स्थान पर हैं।
केप्लर के रिफाइनिंग, सप्लाई और मॉडलिंग विशेषज्ञ सुमित रिटोलिया ने बताया कि अमेरिकी तेल आयात में बढ़ोतरी अर्थशास्त्र से प्रेरित है। इसके पीछे ब्रेंट और डब्ल्यूटीआई तेल की कीमतों के बीच बड़ा अंतर, चीन की ओर से कम मांग और भारत की रिफाइनरियों का तेज निर्णय प्रमुख कारण रहे।
रिफाइनरियों ने बढ़ाई अमेरिकी तेल की बुकिंग

भारत की सरकारी और निजी रिफाइनरियों ने हाल के महीनों में अमेरिकी ग्रेड के तेलों, जैसे मिडलैंड डब्ल्यूटीआई और मार्स, की बुकिंग में इजाफा किया है। इसका उद्देश्य न केवल रूस पर निर्भरता कम करना है, बल्कि अमेरिका को सहयोग का संकेत देना भी है।
जानकारी के अनुसार, भारतीय रिफाइनर रूसी तेल कंपनियों रोसनेफ्ट और लुकोइल से खरीद में चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। रूस पर लगे पश्चिमी प्रतिबंधों की वजह से पेमेंट और बीमा जैसी प्रक्रियाएं कठिन हो गई हैं। ऐसे में अमेरिकी सप्लाई एक स्थिर विकल्प के रूप में सामने आई है।
व्यापार तनाव घटाने की कोशिश
भारत द्वारा अमेरिकी तेल आयात बढ़ाने के पीछे एक और बड़ा कारण व्यापारिक संबंधों में सुधार भी माना जा रहा है। हाल ही में ट्रंप प्रशासन ने भारत से आने वाले कई सामानों पर 50 प्रतिशत तक का टैरिफ बढ़ा दिया था। इस कदम से दोनों देशों के बीच व्यापारिक तनाव बढ़ गया था। अब अमेरिकी तेल की खरीद बढ़ाकर भारत वॉशिंगटन के साथ तालमेल मजबूत करने की कोशिश कर रहा है।
नई दिल्ली की यह रणनीति ऊर्जा सुरक्षा को बनाए रखते हुए अमेरिका और रूस दोनों के साथ संतुलन बनाए रखने पर केंद्रित है। भारत ने हमेशा ऊर्जा स्रोतों में विविधता को प्राथमिकता दी है ताकि किसी एक देश पर निर्भरता का जोखिम कम किया जा सके।
क्यों सीमित रह सकती है यह बढ़त
हालांकि अमेरिकी तेल की खरीद में यह उछाल उल्लेखनीय है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि आगे इसमें बहुत बड़ी वृद्धि की संभावना नहीं है। सुमित रिटोलिया के मुताबिक यह उछाल स्थायी नहीं बल्कि आर्बिट्रेज आधारित है, यानी कीमतों के अंतर का फायदा उठाने के लिए अस्थायी रूप से की गई बढ़ोतरी है।
अमेरिका से तेल लाने में लंबी यात्रा, अधिक माल ढुलाई खर्च और डब्ल्यूटीआई ग्रेड के हल्के नेफ्था-समृद्ध तेल की प्रकृति भी सीमाएं पैदा करती हैं। भारतीय रिफाइनरियों को भारी ग्रेड का तेल ज्यादा उपयुक्त लगता है क्योंकि इससे डीजल और अन्य उत्पादों का उत्पादन बेहतर होता है।













