महाराष्ट्र के ठाणे जिले से एक बड़ी राजनीतिक हलचल की खबर सामने आई है। कल्याण शहर में शिवसेना (ठाकरे गुट) को एक बड़ा झटका लगा है, जहां पार्टी के कई पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं ने इस्तीफा देकर शिवसेना (शिंदे गुट) का दामन थाम लिया है।
मुंबई: महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर बड़ा घटनाक्रम देखने को मिला है। शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) को ठाणे जिले के कल्याण शहर में उस समय जबरदस्त झटका लगा, जब पार्टी से जुड़े सैकड़ों पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं ने पार्टी छोड़ दी और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गुट में शामिल हो गए। यह घटनाक्रम ना केवल स्थानीय स्तर पर, बल्कि राज्य की राजनीति में भी शिवसेना की आंतरिक स्थिति पर सवाल खड़ा कर रहा है।
ऑपरेशन टाइगर की पकड़ मजबूत
यह सामूहिक इस्तीफा और शिंदे गुट में शामिल होना, सीधे तौर पर एकनाथ शिंदे के 'ऑपरेशन टाइगर' का हिस्सा माना जा रहा है। शिंदे गुट का यह अभियान, खासकर ठाकरे गुट को कमजोर करने और संगठन की पकड़ को जमीनी स्तर पर मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा है। कल्याण शहर में आयोजित एक बड़े कार्यक्रम में विधायक विश्वनाथ भोईर की मौजूदगी में इन सभी कार्यकर्ताओं का औपचारिक तौर पर स्वागत किया गया।
विश्वनाथ भोईर ने कहा, एकनाथ शिंदे और उनके बेटे श्रीकांत शिंदे की कार्यशैली, पारदर्शिता और जनसेवा ने लोगों को प्रभावित किया है। आज जो UBT के वरिष्ठ पदाधिकारी और समर्पित कार्यकर्ता हमारे साथ आए हैं, वो इस बदलाव के प्रतीक हैं।
कल्याण में क्यों अहम है यह घटनाक्रम?
कल्याण शहर, ठाणे जिले का एक महत्वपूर्ण राजनीतिक केंद्र है और यह इलाका लंबे समय से शिवसेना का गढ़ रहा है। 2022 में शिवसेना के विभाजन के बाद ठाकरे गुट ने कोशिश की थी कि वह यहां अपना जनाधार बचाए रखे। लेकिन अब जिस प्रकार से बड़ी संख्या में लोगों ने पाला बदला है, उससे साफ है कि जमीनी कार्यकर्ता भी अब ठाकरे गुट से असंतुष्ट हो रहे हैं।
शिवसेना के टूटने के बाद उद्धव ठाकरे गुट को पार्टी के नाम और चुनाव चिन्ह के लिए चुनाव आयोग से झटका मिल चुका है। इसके बाद संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने की कोशिश में ठाकरे गुट लगातार संघर्ष कर रहा है। लेकिन अब शिंदे गुट की पैठ बढ़ती जा रही है, खासकर ठाणे, नासिक और मराठवाड़ा जैसे क्षेत्रों में। यह घटनाक्रम उस दिशा में एक और कदम है।
18 जून को कांग्रेस को भी लगा झटका
यह पहला मौका नहीं जब महाराष्ट्र की राजनीति में बड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं ने दल बदल किया हो। 18 जून को सांगली जिले में कांग्रेस को करारा झटका लगा, जब वसंत दादा पाटिल की बहू जयश्री पाटिल ने सैकड़ों समर्थकों के साथ बीजेपी की सदस्यता ली। इस कार्यक्रम में सीएम देवेंद्र फडणवीस और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले भी शामिल हुए।
जयश्री पाटिल का कांग्रेस छोड़ना न केवल प्रतीकात्मक था, बल्कि इससे बीजेपी ने मराठा वोट बैंक पर भी दावा ठोंका। वसंत दादा पाटिल, महाराष्ट्र के लोकप्रिय और कद्दावर नेता रहे हैं। ऐसे में उनके परिवार का कांग्रेस से अलग होना, राजनीतिक समीकरणों को नए सिरे से गढ़ सकता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि महाराष्ट्र की राजनीति फिलहाल "आंतरिक पुनर्गठन" के दौर से गुजर रही है। चाहे वह शिंदे गुट हो, फडणवीस की बीजेपी या एनसीपी के गुटबाजी वाले समीकरण — सभी पार्टियां आने वाले 2026 स्थानीय निकाय चुनाव और फिर 2029 विधानसभा चुनाव की लंबी तैयारी में जुटी हैं।