उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी को उम्मीदवार बनाया है। सर्वोच्च न्यायालय में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई अहम फैसले सुनाए, जिनमें से कुछ को अब सत्तापक्ष विपक्ष के खिलाफ राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने की तैयारी कर रहा है।
नई दिल्ली: भारत में होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव ने राजनीतिक हलचल को और तेज कर दिया है। विपक्ष ने इस बार सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी. सुदर्शन रेड्डी को उम्मीदवार बनाकर मैदान दिलचस्प बना दिया है। वहीं सत्तारूढ़ एनडीए ने महाराष्ट्र के राज्यपाल सी. पी. राधाकृष्णन को प्रत्याशी घोषित किया है। आंकड़ों का समीकरण एनडीए के पक्ष में है, लेकिन विपक्ष के इस कदम से चुनाव चर्चा में आ गया है। साथ ही, बी. सुदर्शन रेड्डी के कुछ पुराने फैसलों को लेकर बीजेपी अब उन्हें विपक्ष के खिलाफ हथियार के तौर पर पेश कर रही है।
भोपाल गैस त्रासदी केस और विवाद
बीजेपी जिस फैसले को सबसे बड़ा मुद्दा बना रही है, वह है भोपाल गैस त्रासदी मामला। मई 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने इस त्रासदी से जुड़े आरोपियों के खिलाफ हल्के किए गए आरोपों को दोबारा कड़ा करने की सीबीआई की याचिका खारिज कर दी थी। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच का था, जिसमें जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी भी शामिल थे।
बीजेपी नेताओं का आरोप है कि इस फैसले से हजारों मृतकों और पीड़ित परिवारों को न्याय नहीं मिल पाया। बीजेपी प्रवक्ता तेजिंदर बग्गा ने सोशल मीडिया पर लिखा:
'एंडरसन ने भोपाल गैस त्रासदी में 25,000 भारतीयों की जान ली। राजीव गांधी ने उसे भागने में मदद की और जब सीबीआई ने केस दोबारा खोलने की अपील की तो जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी ने उसे खारिज कर दिया।'
सलवा जुडूम पर रोक: सुरक्षा बनाम मानवाधिकार
जुलाई 2011 में जस्टिस रेड्डी और जस्टिस एस.एस. निज्जर की बेंच ने छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा आदिवासी युवाओं को स्पेशल पुलिस ऑफिसर (SPOs) नियुक्त करने की नीति को असंवैधानिक घोषित किया। इस योजना के तहत युवाओं को सलवा जुडूम या कोया कमांडो के रूप में नक्सलवाद से निपटने के लिए तैयार किया जा रहा था।
जस्टिस रेड्डी ने अपने आदेश में कहा कि यह कदम न केवल संवैधानिक सिद्धांतों के खिलाफ है, बल्कि इससे मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन होता है।
बीजेपी ने उनकी उम्मीदवारी घोषित होते ही इसे विपक्ष पर हमला करने का बड़ा हथियार बना लिया। पार्टी नेता अमित मालवीय ने कहा कि यह फैसला नक्सल विरोधी अभियान को कमजोर करने वाला था और माओवादियों के प्रति “न्यायिक सहानुभूति” का उदाहरण है।
आर्मी मेडिकल कॉलेज में आरक्षण नीति पर फैसला
एक अन्य अहम फैसले में जस्टिस रेड्डी ने आर्मी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज की सभी सीटों को केवल सैन्यकर्मियों के बच्चों के लिए आरक्षित करने की नीति को असंवैधानिक करार दिया। उन्होंने कहा कि यह नीति अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन करती है और इससे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्गों के छात्रों को उच्च शिक्षा से वंचित किया जा सकता है। यह फैसला 2011 में दिया गया था।
बीजेपी का कहना है कि इस फैसले से सेना के जवानों के परिवारों के अधिकार प्रभावित हुए, जबकि विपक्ष इसे सामाजिक न्याय के पक्ष में दिया गया ऐतिहासिक फैसला बताता है। रिटायरमेंट से कुछ समय पहले जस्टिस रेड्डी ने केंद्र सरकार को ब्लैक मनी जांच को लेकर कड़ी फटकार लगाई थी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज बी.पी. जीवन रेड्डी की अध्यक्षता में एक विशेष जांच दल (SIT) गठित करने का आदेश दिया था ताकि विदेशी बैंकों में जमा काले धन की जांच हो सके। यह कदम विपक्ष अक्सर अपनी दलीलों में “कठोर और निष्पक्ष न्यायपालिका” का उदाहरण बताते हुए उठाता है।